When I asked for leave and my boss crossed all limits: एक महिला कर्मचारी का वायरल एक्सपीरियंस
- April 24, 2025
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आज के दौर में नौकरीपेशा जिंदगी जितनी जरूरी है, उतनी ही चुनौतीपूर्ण भी बन गई है। खासकर जब बात हो ऑफिस के टॉक्सिक वर्क कल्चर की। हाल ही
आज के दौर में नौकरीपेशा जिंदगी जितनी जरूरी है, उतनी ही चुनौतीपूर्ण भी बन गई है। खासकर जब बात हो ऑफिस के टॉक्सिक वर्क कल्चर की। हाल ही
आज के दौर में नौकरीपेशा जिंदगी जितनी जरूरी है, उतनी ही चुनौतीपूर्ण भी बन गई है। खासकर जब बात हो ऑफिस के टॉक्सिक वर्क कल्चर की। हाल ही में एक महिला कर्मचारी ने सोशल मीडिया पर अपना अनुभव शेयर किया, जिसमें उसने बताया कि कैसे उसने इमरजेंसी छुट्टी मांगी और उसके मैनेजर ने एक ऐसी डिमांड रख दी, जिसने हर किसी को हैरान कर दिया। इस पोस्ट ने तेजी से लोगों का ध्यान खींचा और सोशल मीडिया पर वायरल हो गई।
इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया कि क्या एक कर्मचारी को इमरजेंसी में छुट्टी लेने का अधिकार भी नहीं है? आइए इस घटना के बहाने ऑफिस के टॉक्सिक कल्चर, कर्मचारियों की मानसिक स्थिति, और छुट्टी मांगने के संघर्ष को गहराई से समझते हैं।
छुट्टी लेना एक कर्मचारी का हक होता है, लेकिन कई ऑफिसों में यह हक किसी इनाम से कम नहीं लगता। खासकर तब जब छुट्टी की वजह कोई पर्सनल या इमरजेंसी हो। कई बार कर्मचारी सही वजह बताकर भी छुट्टी नहीं ले पाते क्योंकि बॉस को उन पर भरोसा नहीं होता।
कई कंपनियों में तो यह रूल भी बना दिया गया है कि अगर किसी को मेडिकल छुट्टी चाहिए, तो डॉक्टर का सर्टिफिकेट लाओ। किसी की मौत हो जाए, तो डेथ सर्टिफिकेट दिखाओ। सवाल ये है कि क्या इंसानियत से बड़ा अब सिस्टम हो गया है?
इस महिला कर्मचारी ने अपने पोस्ट में बताया कि उसकी फैमिली में अचानक एक मेडिकल इमरजेंसी आ गई थी। उसने अपने मैनेजर से छुट्टी मांगी ताकि वो अस्पताल जाकर अपने परिजन की मदद कर सके।
लेकिन बॉस ने बिना किसी सहानुभूति के कहा, “पहले मेडिकल रिपोर्ट भेजो, फिर छुट्टी मिलेगी।” महिला ने समझाने की कोशिश की कि अभी रिपोर्ट लेना भी संभव नहीं है, बस अस्पताल जाना जरूरी है। इस पर बॉस ने फिर से वही बात दोहराई — “नो प्रूफ, नो लीव।”
इस बेहूदगी से तंग आकर महिला ने वहीं पर लिखा, “ये लो इस्तीफा।” और उसने जॉब छोड़ दी।
ऐसे हालात तभी पैदा होते हैं जब कंपनी का कल्चर सिर्फ ‘परफॉर्मेंस’ पर फोकस करता है, लेकिन ‘ह्यूमैनिटी’ पर नहीं। यह घटना कोई एक व्यक्ति के साथ नहीं हुई है। हजारों लोग हर दिन इसी तरह की मानसिक उत्पीड़न से गुजरते हैं।
मैनेजर्स और बॉस अक्सर ‘ट्रस्ट’ की बजाय ‘डाउट’ के मोड में रहते हैं। उन्हें लगता है कि हर कर्मचारी झूठ बोलकर छुट्टी लेना चाहता है, चाहे उसकी परेशानी कितनी भी असली क्यों न हो।
जब किसी कर्मचारी को वक्त पर छुट्टी नहीं मिलती, तो उसका सीधा असर उसके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। चिंता, गुस्सा, फ्रस्ट्रेशन और डिप्रेशन जैसी समस्याएं बढ़ने लगती हैं। ऐसे में न तो कर्मचारी अच्छा परफॉर्म कर पाता है और न ही कंपनी को उसका पूरा आउटपुट मिल पाता है।
इसके अलावा, एक कर्मचारी अगर मानसिक रूप से परेशान हो, तो उसके बाकी टीम मेंबर्स पर भी इसका असर होता है।
इस कहानी में महिला कर्मचारी ने इस्तीफा दे दिया। सवाल यह है कि कितनी बार महिलाएं, खासकर कामकाजी महिलाएं, इस तरह के टॉक्सिक बर्ताव का शिकार बनती हैं?
महिलाओं से अक्सर यह उम्मीद की जाती है कि वे हर हालत में काम करें — चाहे घर में कुछ भी चल रहा हो। जब वे अपने अधिकार की बात करती हैं, तो उन्हें ‘इमोशनल’ और ‘अनप्रोफेशनल’ कह दिया जाता है।
भारतीय लेबर लॉ में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि हर कर्मचारी को मेडिकल और पर्सनल छुट्टियों का अधिकार है। कोई भी एम्प्लॉयर बिना उचित कारण के छुट्टी से इनकार नहीं कर सकता।
हालांकि, यह कानून किताबों में रह जाता है और जमीन पर इसका पालन बहुत कम ऑफिसों में होता है।
इस घटना के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद हजारों लोगों ने अपने-अपने अनुभव शेयर किए। कई लोगों ने कहा कि उन्होंने भी इमरजेंसी में छुट्टी मांगी थी और बदले में शक, टोंट और डांट ही मिली।
एक यूजर ने लिखा, “कभी-कभी लगता है कि हम लोग मशीन हैं, इंसान नहीं। ऑफिस को बस आउटपुट चाहिए, हमारी परेशानी से किसी को मतलब नहीं।”
हर मैनेजर को इमोशनल इंटेलिजेंस की ट्रेनिंग मिलनी चाहिए ताकि वह समझ सके कि कब सहानुभूति दिखाना जरूरी है।
कंपनियों को अपनी लीव पॉलिसी में फ्लेक्सिबिलिटी लानी चाहिए, खासकर इमरजेंसी सिचुएशंस के लिए।
कर्मचारी बिना डर के अपनी शिकायत दर्ज कर सकें, इसके लिए फीडबैक सिस्टम को मजबूत बनाना होगा।
एक हेल्दी वर्क कल्चर जहां कर्मचारी को भरोसेमंद और मूल्यवान समझा जाए, वह आज की सबसे बड़ी जरूरत है।
इस घटना ने एक बार फिर हमें सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या हमारी कंपनियों में इंसानियत की जगह सिर्फ प्रोडक्टिविटी ने ले ली है? क्या एक कर्मचारी के तौर पर हम सिर्फ एक नंबर बनकर रह गए हैं?
अगर हम चाहते हैं कि ऑफिस एक बेहतर जगह बने, तो हमें ऐसे टॉक्सिक कल्चर के खिलाफ आवाज उठानी ही होगी। और शायद वही कर्मचारी, जिसने “ये लो इस्तीफा” कहा, उसने एक नई शुरुआत की है — सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि हम सबके लिए भी।