US-China Trade War: ट्रंप की हर चाल नाकाम क्यों? चीन की ताकत का राज क्या है?
- April 14, 2025
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अमेरिका और चीन के बीच चल रही ट्रेड वॉर अब एक साधारण आर्थिक विवाद नहीं रह गई है, बल्कि यह एक वैश्विक शक्ति संतुलन की लड़ाई में तब्दील
अमेरिका और चीन के बीच चल रही ट्रेड वॉर अब एक साधारण आर्थिक विवाद नहीं रह गई है, बल्कि यह एक वैश्विक शक्ति संतुलन की लड़ाई में तब्दील
अमेरिका और चीन के बीच चल रही ट्रेड वॉर अब एक साधारण आर्थिक विवाद नहीं रह गई है, बल्कि यह एक वैश्विक शक्ति संतुलन की लड़ाई में तब्दील हो चुकी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस संघर्ष को आक्रामक मोड़ दिया था—टैरिफ, तकनीकी प्रतिबंध, कंपनियों पर पाबंदी, और यहां तक कि राजनीतिक दबाव। लेकिन इसके बावजूद चीन न तो झुका, न टूटा।
आखिर क्यों? क्या है उस ‘ड्रैगन’ की ताकत जो दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को भी पीछे हटने पर मजबूर कर देती है? इस लेख में हम इसी सवाल की तह में जाएंगे।
ट्रंप प्रशासन ने 2018 में चीन से आयातित 200 अरब डॉलर से अधिक के उत्पादों पर भारी टैरिफ लगाए। इसके पीछे तर्क था:
इन फैसलों का उद्देश्य था चीन की अर्थव्यवस्था को दबाव में लाना ताकि वह अमेरिका की शर्तों पर समझौता करे।
ट्रंप के हमलों के बावजूद चीन ने न सिर्फ प्रतिक्रिया दी, बल्कि अपना दृष्टिकोण बेहद रणनीतिक रखा:
चीन ने न सिर्फ अमेरिका के वार झेले, बल्कि लंबे गेम के तहत नई ताकतें बनाई।
चीन दुनिया की फैक्ट्री है। इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर फार्मा, स्टील से लेकर कपड़े—हर क्षेत्र में उसकी उत्पादन क्षमता बेजोड़ है।
Huawei, Alibaba, BYD, TikTok जैसी कंपनियों ने दिखाया कि चीन सिर्फ ‘कॉपी’ नहीं करता, वह इनोवेट भी करता है।
चीन अब AI, 5G, EVs और सेमीकंडक्टर्स में भी बड़े स्तर पर निवेश कर रहा है।
चीन का राजनीतिक ढांचा उसे लंबी अवधि की रणनीति बनाने की छूट देता है। शी जिनपिंग की नीतियों में निरंतरता है, जबकि अमेरिका में सरकार बदलते ही नीतियों में बदलाव आ जाता है।
चीन के पास $3 ट्रिलियन से अधिक का विदेशी मुद्रा भंडार है, जिससे वह लंबे समय तक वैश्विक दबावों को झेल सकता है।
चीन की जनता को सरकार की नीतियों का समर्थन हासिल है। अमेरिका के विपरीत, वहां आंतरिक विरोध अपेक्षाकृत कम होता है।
चीन ने वैश्विक व्यापार में नई गठजोड़ बनाए:
चीन ने पश्चिमी देशों के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए समांतर ढांचे खड़े कर लिए हैं।
आज अमेरिका की प्रमुख चिंता केवल ट्रेड नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी लीडरशिप और जियोपॉलिटिक्स है। ट्रंप के बाद बाइडन प्रशासन ने भी चीन को चुनौती देना जारी रखा है लेकिन:
ट्रंप 2024 चुनावों में दोबारा मैदान में उतर चुके हैं और फिर से ‘अमेरिका फर्स्ट’ और ‘चीन पर सख्ती’ जैसे नारों के साथ वापसी की तैयारी कर रहे हैं।
लेकिन इस बार हालात पहले जैसे नहीं हैं:
US China Trade War अब सिर्फ एक आर्थिक लड़ाई नहीं रह गई है। यह तकनीक, राजनीति और वैश्विक दबदबे की होड़ बन चुकी है। ट्रंप ने भले ही हर दांव आजमाया हो, लेकिन चीन ने धैर्य, दूरदर्शिता और रणनीति से खुद को न सिर्फ टिकाए रखा, बल्कि और ताकतवर बना लिया।
भविष्य में यह टकराव और गहराएगा, लेकिन एक बात तय है—यह लड़ाई सिर्फ डॉलर और युआन की नहीं, दो वैश्विक सोचों की है। एक तेज़ लेकिन अस्थिर लोकतंत्र, और दूसरा धीमा लेकिन रणनीतिक तानाशाही मॉडल।
और इसी द्वंद्व से तय होगा कि 21वीं सदी का नेतृत्व किसके हाथ में होगा—ईगल या ड्रैगन?