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Sitapur Journalist Murder Case: मंदिर का पुजारी ही निकला मास्टरमाइंड, नाबालिग के यौन शोषण का हुआ था गवाह

  • April 12, 2025
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उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने समाज, धर्म, कानून और पत्रकारिता की आत्मा को झकझोर कर रख दिया है। पत्रकारिता को

Sitapur Journalist Murder Case: मंदिर का पुजारी ही निकला मास्टरमाइंड, नाबालिग के यौन शोषण का हुआ था गवाह

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने समाज, धर्म, कानून और पत्रकारिता की आत्मा को झकझोर कर रख दिया है। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, लेकिन जब सच्चाई सामने लाने की कीमत जान से चुकानी पड़े, तो यह सवाल खड़ा करता है—क्या समाज सच सुनने को तैयार है?

सीतापुर में पत्रकार बाजपेयी की निर्मम हत्या कर दी गई, और जांच में जो सच सामने आया, वह किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को झकझोर देने वाला है।

Sitapur Journalist Murder Case

कौन थे पत्रकार बाजपेयी?

बाजपेयी एक स्थानीय स्तर के पत्रकार थे, जो अक्सर सामाजिक मुद्दों और भ्रष्टाचार पर रिपोर्टिंग करते थे। उनका क्षेत्र सीमित जरूर था, लेकिन उनकी पत्रकारिता निडर थी। वे अपनी रिपोर्टिंग के लिए जाने जाते थे और समाज में व्याप्त गलत कार्यों को उजागर करने में पीछे नहीं हटते थे।

हत्या की गुत्थी: पुलिस जांच से निकला चौंकाने वाला सच

सीतापुर के पुलिस अधीक्षक चक्रेश मिश्रा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में हत्या की साजिश का पर्दाफाश करते हुए बताया कि:

  • मंदिर के पुजारी विकास राठौर उर्फ शिवानंद ने पत्रकार की हत्या की सुपारी दी थी।
  • पत्रकार बाजपेयी ने पुजारी को मंदिर परिसर में एक नाबालिग लड़के का यौन शोषण करते हुए देख लिया था।
  • इस राज को छिपाने के लिए पुजारी ने अपने जानकारों निर्मल सिंह और असलम गाजी की मदद से सुपारी दिलवाई।
  • हत्या के लिए 4 लाख रुपए की सुपारी दी गई थी।
  • निर्मल और असलम ने इस कार्य को अंजाम देने के लिए दो शूटरों को हायर किया, जिन्होंने पत्रकार की हत्या कर दी।

हत्या की योजना: एक संगठित अपराध

इस घटना को केवल एक ‘क्राइम ऑफ पैशन’ कहना गलत होगा। यह एक सुनियोजित अपराध था, जिसमें:

  • पहले पत्रकार पर नज़र रखी गई।
  • फिर उन्हें अलग-थलग जगह पर निशाना बनाया गया।
  • हत्या को दुर्घटना या लूट जैसा दिखाने की भी कोशिश की गई।

पुलिस ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए तकनीकी जांच, सीसीटीवी फुटेज, कॉल डिटेल्स और स्थानीय मुखबिरों की मदद ली।

मंदिर परिसर में अपराध: धर्म के नाम पर अधर्म?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि मंदिर, जिसे श्रद्धा और विश्वास का केंद्र माना जाता है, वहां एक पुजारी द्वारा नाबालिग का यौन शोषण किया जाना कितना भयावह है? यह न सिर्फ धार्मिक भावनाओं का अपमान है, बल्कि समाज में धर्मगुरुओं पर से विश्वास उठाने का कारण बन सकता है।

ऐसे मामलों में यह ज़रूरी है कि धर्म की आड़ में हो रहे अपराधों को बेनकाब किया जाए, और दोषियों को कड़ी सजा मिले।

नाबालिग यौन शोषण: एक छुपी हुई त्रासदी

इस पूरे मामले की नींव उसी शर्मनाक घटना में छुपी है, जिसमें एक नाबालिग लड़का पुजारी की हवस का शिकार हुआ। दुर्भाग्य की बात है कि कई बार पीड़ित बच्चे डर, शर्म और सामाजिक दबाव की वजह से चुप रहते हैं।

यह समय है जब समाज को बच्चों के साथ हो रहे शोषण के प्रति जागरूक और संवेदनशील बनना होगा।

Sitapur Journalist Murder Case

पत्रकारों की सुरक्षा: लोकतंत्र पर सीधा हमला

पत्रकार बाजपेयी की हत्या एक और उदाहरण है कि सच्चाई की रिपोर्टिंग करना कितना खतरनाक हो चुका है, खासकर छोटे शहरों और गांवों में। जहां न तो पर्याप्त सुरक्षा मिलती है और न ही उनके लिए कोई ठोस सुरक्षा नीति होती है।

भारत में हर साल दर्जनों पत्रकारों को धमकियां मिलती हैं, कुछ पर हमले होते हैं और कुछ की जान भी चली जाती है।

समाज की भूमिका: चुप्पी भी अपराध है

कई बार ऐसे मामलों में स्थानीय लोग सब कुछ जानते हैं, लेकिन डर, दबाव या धार्मिक आस्था के कारण चुप रह जाते हैं। लेकिन चुप्पी अपराध को बढ़ावा देती है। यदि पत्रकार की रिपोर्टिंग को समाज ने पहले ही गंभीरता से लिया होता, तो शायद यह हत्या टाली जा सकती थी।

पुलिस की कार्यवाही: त्वरित और प्रभावी

इस केस में सीतापुर पुलिस की भूमिका सराहनीय रही है। उन्होंने कुछ ही दिनों में न सिर्फ हत्यारों को पकड़ा, बल्कि इस गहरे षड्यंत्र का भी खुलासा कर दिया। हालांकि आगे की जांच में यह देखना जरूरी होगा कि क्या नाबालिग के यौन शोषण के आरोपों पर भी कानूनी कार्यवाही तेज़ी से होती है या नहीं।

क्या अब समय नहीं आ गया बदलाव का?

इस मामले ने कई पहलुओं को उजागर किया है:

  • धार्मिक स्थानों की निगरानी व्यवस्था मजबूत होनी चाहिए।
  • बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ कड़े कदम उठाने होंगे।
  • पत्रकारों की सुरक्षा के लिए विशेष कानून बनाने की जरूरत है।
  • समाज को अब चुप्पी तोड़कर आवाज़ उठानी होगी।

निष्कर्ष: सच्चाई की कीमत कितनी भारी?

पत्रकार बाजपेयी ने एक अपराध देखा और उसे उजागर करने की कोशिश की। बदले में उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी। यह मामला सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि सच, धर्म, और इंसानियत पर हमला है। अब जरूरत है कि दोषियों को कड़ी सजा मिले, ताकि भविष्य में कोई और पुजारी या प्रभावशाली व्यक्ति कानून से ऊपर समझने की गलती न करे।

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