इन्वर्टर और नॉन-इन्वर्टर AC में क्या अंतर है? जानिए आपके लिए कौन सा रहेगा सही
- April 22, 2025
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गर्मियों का मौसम आते ही एयर कंडीशनर (AC) की मांग काफी बढ़ जाती है। भारत जैसे देश में जहां तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाता है,
गर्मियों का मौसम आते ही एयर कंडीशनर (AC) की मांग काफी बढ़ जाती है। भारत जैसे देश में जहां तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाता है,
गर्मियों का मौसम आते ही एयर कंडीशनर (AC) की मांग काफी बढ़ जाती है। भारत जैसे देश में जहां तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाता है, वहां एक AC अब लग्जरी नहीं बल्कि जरूरत बन चुका है। लेकिन जब भी कोई व्यक्ति AC खरीदने की सोचता है, तो उसके सामने एक आम सवाल खड़ा होता है – इन्वर्टर एसी लें या नॉन-इन्वर्टर एसी?
बहुत से लोग दोनों के बीच के तकनीकी अंतर को ठीक से नहीं समझ पाते, जिससे वे सही चुनाव नहीं कर पाते। आज हम आपको विस्तार से बताएंगे कि इन्वर्टर और नॉन-इन्वर्टर एसी में क्या अंतर है, किसकी कार्यप्रणाली कैसी होती है, बिजली की खपत पर दोनों का क्या असर पड़ता है, और किसे लेना आपके लिए ज्यादा फायदेमंद रहेगा।
इन्वर्टर और नॉन-इन्वर्टर AC के बीच सबसे बड़ा अंतर इनके कंप्रेसर (Compressor) की कार्यप्रणाली में होता है। कंप्रेसर वह हिस्सा होता है जो एसी की कूलिंग के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार होता है।
इन्वर्टर एसी में कंप्रेसर की स्पीड को जरूरत के अनुसार कम या ज्यादा किया जा सकता है। जैसे-जैसे कमरे का तापमान बदलता है, वैसे-वैसे कंप्रेसर की गति भी ऑटोमैटिकली एडजस्ट हो जाती है। इससे न केवल बिजली की बचत होती है, बल्कि कूलिंग भी बेहतर होती है।
नॉन-इन्वर्टर एसी में कंप्रेसर की स्पीड फिक्स रहती है। इसका मतलब है कि यह या तो पूरी तरह से चालू (ON) होता है या पूरी तरह से बंद (OFF)। जब तापमान बढ़ता है तो यह चालू होता है और जैसे ही सेट टेम्परेचर तक पहुंचता है, यह बंद हो जाता है। यह प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाती है जिससे बिजली की खपत अधिक होती है और कूलिंग में उतार-चढ़ाव आता है।
आज की दुनिया में जहां बिजली की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं, वहां AC खरीदते समय उसकी एनर्जी एफिशिएंसी को देखना बहुत जरूरी होता है।
इन्वर्टर एसी बिजली की खपत के मामले में काफी किफायती होते हैं। क्योंकि इसका कंप्रेसर लगातार चलता है लेकिन जरूरत के अनुसार अपनी स्पीड कम या ज्यादा करता रहता है, जिससे अनावश्यक बिजली खर्च नहीं होती।
वहीं नॉन-इन्वर्टर एसी बार-बार चालू और बंद होता है जिससे ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होती है। इसका नतीजा ये होता है कि बिजली का बिल बढ़ जाता है।
इन्वर्टर एसी की एक और बड़ी खासियत यह है कि यह कमरे के तापमान को लगातार एक समान बनाए रखता है। जब एक बार कमरा ठंडा हो जाता है, तो यह धीरे-धीरे कूलिंग करता रहता है ताकि सेट टेम्परेचर बना रहे। इससे न केवल आराम मिलता है, बल्कि नींद में भी कोई खलल नहीं आता।
नॉन-इन्वर्टर एसी तापमान को स्थिर नहीं रख पाता क्योंकि जैसे ही सेट टेम्परेचर पहुंचता है, यह बंद हो जाता है और फिर दोबारा चालू होता है जब तापमान फिर से बढ़ता है। इससे कमरे में कभी ज्यादा ठंड और कभी ज्यादा गर्मी का अहसास होता है।
इन्वर्टर एसी में एक आधुनिक तकनीक PWM (Pulse Width Modulation) का इस्तेमाल होता है। यह तकनीक सुनिश्चित करती है कि कंप्रेसर की स्पीड लगातार नियंत्रित बनी रहे। इससे एसी बिना ज्यादा ज़ोर लगाए कूलिंग करता है, जिससे मशीन पर दबाव नहीं पड़ता और इसकी कार्यक्षमता बनी रहती है।
PWM तकनीक के कारण इन्वर्टर एसी की लाइफ भी ज्यादा होती है और इसके खराब होने की संभावना कम रहती है।
इन्वर्टर एसी में आमतौर पर R32 जैसे इको-फ्रेंडली रेफ्रिजरेंट का इस्तेमाल किया जाता है जो पर्यावरण के लिए कम हानिकारक होता है और ओजोन लेयर को नुकसान नहीं पहुंचाता। साथ ही यह बेहतर कूलिंग भी प्रदान करता है।
इसके उलट, कई नॉन-इन्वर्टर एसी अभी भी पुराने और अधिक प्रदूषणकारी रेफ्रिजरेंट का इस्तेमाल करते हैं, जो न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं बल्कि कूलिंग एफिशिएंसी भी कम होती है।
इन्वर्टर एसी एक और बड़े फायदे के साथ आता है – यह कमरे की नमी को बेहतर तरीके से कंट्रोल करता है। विशेषकर ऐसे इलाकों में जहां उमस ज्यादा होती है, जैसे कि समुद्री तटीय क्षेत्र या मॉनसून के मौसम में, वहां इन्वर्टर एसी बेहतरीन काम करता है। यह कमरे में मौजूद एक्स्ट्रा ह्यूमिडिटी को कम करके एक ठंडा और आरामदायक माहौल बनाता है।
इन्वर्टर एसी की देखभाल आसान होती है। इसके कॉम्पोनेन्ट्स पर ज्यादा दबाव नहीं पड़ता, इसलिए यह लंबे समय तक सही से चलता है। इसका मेंटेनेंस कॉस्ट भी कम होता है।
नॉन-इन्वर्टर एसी में बार-बार चालू-बंद होने की वजह से मशीन जल्दी घिसती है और उसकी उम्र कम होती है। साथ ही इसकी सर्विसिंग में भी अधिक खर्च आता है।
अब बात करते हैं सबसे महत्वपूर्ण बिंदु की – कीमत। इन्वर्टर एसी की शुरुआती कीमत थोड़ी ज्यादा होती है, लेकिन यह एक लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट है। बिजली की बचत, कम मेंटेनेंस और लंबे समय तक चलने की क्षमता इसे एक बेहतर विकल्प बनाते हैं।
नॉन-इन्वर्टर एसी की कीमत शुरुआत में कम होती है, जिससे लोग उसे ज्यादा खरीदते हैं। लेकिन लंबे समय में बिजली का बिल और मेंटेनेंस कॉस्ट मिलाकर खर्च ज्यादा हो जाता है।
अगर आप रोज़ाना लंबे समय तक एसी चलाते हैं, बिजली बिल की चिंता करते हैं और चाहते हैं कि आपका एसी सालों तक बिना किसी परेशानी के चले, तो इन्वर्टर एसी आपके लिए बेहतर विकल्प है।
लेकिन अगर आपका इस्तेमाल सीमित है, जैसे कि हफ्ते में कुछ घंटे ही एसी चलाना होता है और बजट बहुत टाइट है, तो नॉन-इन्वर्टर एसी भी एक विकल्प हो सकता है।
हर व्यक्ति की जरूरत अलग होती है, इसलिए एसी खरीदते समय सिर्फ कीमत नहीं, बल्कि उसकी कार्यक्षमता, बिजली की खपत, रखरखाव और लंबे समय की लागत को भी ध्यान में रखना चाहिए।
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