India US Trade Agreement: पहले चरण की तैयारी शुरू, राजेश अग्रवाल 23 अप्रैल से करेंगे अहम वार्ता
April 22, 2025
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भारत और अमेरिका के बीच बहुप्रतीक्षित व्यापार समझौते (Indo-US Trade Deal) को लेकर बड़ी हलचल शुरू हो गई है। इस डील का उद्देश्य दोनों देशों के बीच व्यापार
भारत और अमेरिका के बीच बहुप्रतीक्षित व्यापार समझौते (Indo-US Trade Deal) को लेकर बड़ी हलचल शुरू हो गई है। इस डील का उद्देश्य दोनों देशों के बीच व्यापार बाधाओं को खत्म करना और निवेश के नए रास्ते खोलना है। भारत के चीफ ट्रेड निगोशिएटर राजेश अग्रवाल 23 अप्रैल को अमेरिका के लिए रवाना हो रहे हैं, जहां वे तीन दिन की महत्वपूर्ण बैठकें करेंगे। यह वार्ता पहले चरण की ट्रेड डील को 90 दिनों के भीतर अंतिम रूप देने की दिशा में पहला कदम मानी जा रही है।
भारत-अमेरिका व्यापार संबंध: एक संक्षिप्त पृष्ठभूमि
भारत और अमेरिका लंबे समय से रणनीतिक और आर्थिक साझेदार रहे हैं। दोनों देशों के बीच 2023 में द्विपक्षीय व्यापार $192 बिलियन तक पहुंच चुका था, जो यह दर्शाता है कि ये दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र आपस में कितने गहरे आर्थिक रूप से जुड़े हुए हैं। लेकिन इसके बावजूद कई ऐसे मुद्दे हैं जो व्यापार को प्रभावित करते रहे हैं—जैसे टैरिफ विवाद, डेटा सुरक्षा, डिजिटल टैक्स और कृषि उत्पादों पर पाबंदियां।
राजेश अग्रवाल की भूमिका क्यों अहम?
राजेश अग्रवाल, भारत सरकार के वाणिज्य विभाग में एक अनुभवी और सुलझे हुए अधिकारी हैं। उन्हें इस वार्ता में भारत की ओर से प्रमुख वार्ताकार (Chief Negotiator) की जिम्मेदारी दी गई है। वे अमेरिका के वाणिज्य विभाग और USTR (United States Trade Representative) के साथ बैठकों में हिस्सा लेंगे।
उनका मिशन है:
पहले चरण के व्यापार समझौते को 90 दिनों में तैयार करना
भारत की प्राथमिकताओं को मजबूती से रखना
विवादित बिंदुओं पर व्यावहारिक समाधान खोजना
पहले चरण में किन क्षेत्रों पर हो सकती है चर्चा?
पहले चरण की डील को लेकर दोनों देशों के बीच कई बिंदुओं पर सहमति बनने की संभावना है। इनमें प्रमुख हैं:
औद्योगिक टैरिफ में कमी इलेक्ट्रॉनिक सामान, ऑटो पार्ट्स और स्टील जैसे क्षेत्रों में आयात शुल्क को कम करने पर बातचीत होगी।
फार्मास्युटिकल और हेल्थकेयर भारत चाहता है कि US FDA भारतीय फार्मा कंपनियों के लिए लाइसेंसिंग में तेजी लाए।
IT और डिजिटल व्यापार डिजिटल डेटा फ्लो, क्लाउड सर्विसेस और डेटा लोकलाइजेशन जैसे मुद्दे मुख्य रहेंगे।
कृषि उत्पाद अमेरिका चाहता है कि भारत अपने कृषि उत्पादों पर लगाए गए निर्यात प्रतिबंधों में ढील दे।
राजेश अग्रवाल का अमेरिका दौरा – क्या है शेड्यूल?
23 अप्रैल: वॉशिंगटन डीसी में अमेरिकी ट्रेड अधिकारियों के साथ द्विपक्षीय बैठक
24 अप्रैल: थिंक टैंक और इंडस्ट्री चैम्बर से मुलाकात
25 अप्रैल: संयुक्त प्रेस ब्रीफिंग और डील के संभावित बिंदुओं की घोषणा
राजेश अग्रवाल के साथ भारतीय प्रतिनिधिमंडल में वाणिज्य मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और नीति आयोग के अधिकारी भी शामिल होंगे।
🇺🇸 अमेरिका की प्राथमिकताएं क्या हैं?
अमेरिका इस ट्रेड डील को इंडो-पैसिफिक रणनीति के तहत देख रहा है, जिससे वह चीन के प्रभाव को संतुलित करना चाहता है। इसके तहत वह भारत जैसे लोकतांत्रिक और विकासशील देश के साथ:
टेक्नोलॉजी ट्रांसफर बढ़ाना चाहता है
डिजिटल इकोनॉमी में साझेदारी मजबूत करना चाहता है
ईवी और ग्रीन एनर्जी क्षेत्रों में मिलकर काम करना चाहता है
डील की चुनौतियां क्या हैं?
यूं तो दोनों देशों की मंशा सहयोग की है, लेकिन कुछ मुद्दे अब भी डील के रास्ते में रोड़े अटका सकते हैं:
कृषि सब्सिडी पर मतभेद
US द्वारा भारत को GSP से बाहर रखना
ई-कॉमर्स कंपनियों पर भारत की सख्त नीतियां
भारत की डेटा लोकलाइजेशन पॉलिसी
इन मुद्दों पर संतुलन बनाना राजेश अग्रवाल और उनकी टीम के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।
इस डील से क्या लाभ होगा?
भारत के लिए:
अमेरिकी बाजार तक अधिक पहुंच
IT, फार्मा और टेक कंपनियों को बढ़त
निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा
रोजगार के नए अवसर
अमेरिका के लिए:
भारतीय बाजार में अधिक प्रवेश
चीन पर निर्भरता कम करने में मदद
इंडो-पैसिफिक में रणनीतिक साझेदारी को बल
वैश्विक नजरों में भारत
भारत इस समय वैश्विक आर्थिक मंचों पर बड़ी भूमिका निभा रहा है—चाहे वह G20 की अध्यक्षता हो या QUAD की बैठकों में उसकी भागीदारी। अमेरिका के साथ ट्रेड डील को अंतिम रूप देना इस रणनीतिक कूटनीति का अगला बड़ा कदम होगा।
क्या यह डील RCEP जैसी होगी?
कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह डील RCEP (Regional Comprehensive Economic Partnership) जैसी नहीं होगी, जिससे भारत 2020 में बाहर हो गया था। इस बार भारत सतर्क है, और अपनी शर्तों को लेकर स्पष्ट नजरिया रख रहा है।
निष्कर्ष
भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की यह पहली किस्त दोनों देशों के लिए ऐतिहासिक और रणनीतिक महत्व रखती है। राजेश अग्रवाल की अगुवाई में यह वार्ता भारत की आर्थिक दृष्टि को वैश्विक मंच पर मजबूती से प्रस्तुत करने का अवसर है।
अब सबकी निगाहें इस दौरे पर हैं—क्या 90 दिनों में पहले फेज की डील हो पाएगी? क्या पुराने विवाद खत्म होंगे? जवाब आने वाले हफ्तों में मिल जाएगा।