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Caste of Muslims will be counted in caste census: कौन आ सकता है OBC कैटेगरी में?

  • May 2, 2025
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भारत में पहली बार स्वतंत्रता के बाद केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना (Caste Census) कराने की घोषणा की है। इस जनगणना की खास बात यह है कि इसमें

Caste of Muslims will be counted in caste census: कौन आ सकता है OBC कैटेगरी में?

भारत में पहली बार स्वतंत्रता के बाद केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना (Caste Census) कराने की घोषणा की है। इस जनगणना की खास बात यह है कि इसमें मुस्लिम समुदाय की जातियों की भी गिनती की जाएगी। अब तक की जनगणनाओं में केवल धर्म के आधार पर आंकड़े एकत्र किए जाते थे, लेकिन अब जाति के स्तर पर भी जानकारी जुटाई जाएगी। इसका उद्देश्य समाज के हर वर्ग को सही प्रतिनिधित्व देना और पिछड़े तबकों के विकास के लिए योजनाएं बनाना है।

मुस्लिम समाज में जाति व्यवस्था

हालांकि इस्लाम धर्म में जाति व्यवस्था को मान्यता नहीं है, लेकिन भारत में ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से मुस्लिम समुदाय के भीतर भी जातीय विभाजन देखा गया है। जैसे- अशराफ (उच्च वर्ग जैसे सैयद, पठान), अजलाफ (कुशल कारीगर, व्यापारी), और अर्फजल (पसमांदा यानी सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग) जैसी श्रेणियां।

पसमांदा मुसलमानों में जुलाहा, धोबी, कुंजड़ा, हजाम, रंगरेज, बंजारा, कसाई, हलवाई, मछुआरे जैसे अनेक जातीय समूह आते हैं। इन जातियों को सामाजिक रूप से हाशिए पर रखा गया है और आर्थिक-सामाजिक रूप से वे पिछड़े हुए हैं। इन्हीं पसमांदा मुसलमानों को ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) कैटेगरी में शामिल करने पर विचार किया जा रहा है।

क्यों जरूरी है जातिगत जनगणना?

जातिगत जनगणना से सरकार को यह जानने में मदद मिलेगी कि समाज के किस वर्ग की कितनी संख्या है और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति क्या है। इससे यह स्पष्ट होगा कि आरक्षण और विकास योजनाओं का लाभ वास्तव में किन तक पहुंच रहा है और किन्हें अभी भी सहायता की जरूरत है।

विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय में पसमांदा जातियों की पहचान होने से यह तय करने में आसानी होगी कि उन्हें ओबीसी या अन्य आरक्षित वर्गों में किस आधार पर शामिल किया जाए। इससे सरकार को नीतिगत फैसले लेने में मदद मिलेगी।

Caste of Muslims

कौन आ सकते हैं OBC कैटेगरी में?

ओबीसी सूची में पहले से कई मुस्लिम जातियां शामिल हैं। जैसे कि:

  • अंसारी/जुलाहा (बुनकर समुदाय)
  • राईनी (माली जाति से जुड़े)
  • धोबी, नाई, कसाई, मछुआरे, हलवाई, हज्जाम, कुंजड़ा, नदाफ, मीरासी, मोची, भंगी जैसे समुदाय

सरकार पसमांदा मुसलमानों की व्यापक पहचान करके उनकी सामाजिक स्थिति का अध्ययन करेगी। इसके आधार पर नई जातियों को ओबीसी सूची में जोड़ा जा सकता है या पहले से शामिल जातियों को विशेष योजनाओं का लाभ दिया जा सकता है।

राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव

जातिगत जनगणना से पसमांदा मुसलमानों की संख्या और उनकी स्थिति का स्पष्ट आंकड़ा सामने आएगा, जिससे राजनीतिक दलों को भी नीतियां बनाने में दिशा मिलेगी। इससे पिछड़े वर्गों को सशक्त करने के प्रयासों को बल मिलेगा। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम पसमांदा मुसलमानों को मुख्यधारा में लाने का एक ठोस प्रयास है।

साथ ही, इससे यह भी सामने आएगा कि मुस्लिम समुदाय के भीतर ही किस जाति को कितनी सामाजिक और राजनीतिक भागीदारी मिली है। इस डेटा से यह मूल्यांकन भी हो सकेगा कि क्या वास्तव में आरक्षण और सरकारी योजनाएं सही लाभार्थियों तक पहुंच रही हैं।

चुनौतियां भी कम नहीं

हालांकि यह कदम स्वागतयोग्य है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में कई चुनौतियां सामने आ सकती हैं:

  • पहचान की जटिलता: मुसलमानों में जातियों की स्पष्ट परिभाषा और वर्गीकरण करना आसान नहीं होगा।
  • राजनीतिक विवाद: जातिगत जनगणना को लेकर अलग-अलग समुदायों में मतभेद उत्पन्न हो सकते हैं।
  • डेटा की संवेदनशीलता: सामाजिक समरसता बनाए रखते हुए इन आंकड़ों का उपयोग करना अत्यंत आवश्यक होगा।

निष्कर्ष

जातिगत जनगणना का यह निर्णय ऐतिहासिक और सामाजिक रूप से एक बड़ा बदलाव है, खासकर मुस्लिम समुदाय के लिए। पसमांदा मुसलमानों को ओबीसी कैटेगरी में उचित स्थान देने और उनके सामाजिक-आर्थिक उत्थान की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम है। यह पहल तभी सफल होगी जब इसे पारदर्शिता, संवेदनशीलता और समावेशी दृष्टिकोण के साथ लागू किया जाए।

क्या आप जानना चाहेंगे कि आपके राज्य में किन मुस्लिम जातियों को ओबीसी में शामिल किया गया है?

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