कर्नल सोफिया कुरैशी पर विजय शाह की टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार – क्या है पूरा मामला?
May 15, 2025
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भारत के संविधान और लोकतंत्र में संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों से मर्यादित और जिम्मेदार व्यवहार की अपेक्षा की जाती है। लेकिन हाल ही में मध्य प्रदेश के
भारत के संविधान और लोकतंत्र में संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों से मर्यादित और जिम्मेदार व्यवहार की अपेक्षा की जाती है। लेकिन हाल ही में मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह ने भारतीय सेना की अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर एक आपत्तिजनक बयान दिया, जिसे लेकर न सिर्फ आम जनता बल्कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी सख्त रुख अपनाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस टिप्पणी को “अस्वीकार्य”, “संवेदनशील समय में अनुचित” और “संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ” बताया है। मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने विजय शाह को सीधे फटकार लगाते हुए उनसे हाई कोर्ट में माफी मांगने को कहा।
इस लेख में हम समझेंगे यह पूरा विवाद क्या है, कर्नल सोफिया कुरैशी कौन हैं, विजय शाह ने क्या टिप्पणी की, और इस पर अदालत की क्या प्रतिक्रिया रही।
1. कौन हैं कर्नल सोफिया कुरैशी?
कर्नल सोफिया कुरैशी भारतीय सेना की प्रतिष्ठित अधिकारी हैं।
वे पहली भारतीय महिला अधिकारी हैं जिन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय सैन्य अभ्यास (2016 UN Peacekeeping Drill) में पूरी टुकड़ी की कमान संभाली थी।
हाल ही में उन्होंने विंग कमांडर व्योमिका सिंह के साथ “ऑपरेशन सिंदूर” के दौरान भारतीय सेना का प्रतिनिधित्व किया और विदेश सचिव विक्रम मिस्री के साथ कई उच्चस्तरीय कार्यक्रमों में शामिल रही हैं।
उनकी छवि एक सशक्त, प्रोफेशनल और अनुशासित सैन्य अधिकारी की है।
2. विजय शाह ने क्या कहा?
मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री विजय शाह ने कर्नल सोफिया कुरैशी के विदेशी कार्यक्रमों और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ उपस्थिति को लेकर अनुचित और शंका उत्पन्न करने वाली टिप्पणी की। हाई कोर्ट ने इसे एक “खतरनाक और अपमानजनक टिप्पणी” माना है, जो एक महिला अधिकारी की गरिमा और पेशेवर छवि को नुकसान पहुंचाती है।
हालांकि मंत्री का यह बयान राजनीतिक मकसद से प्रेरित बताया गया, लेकिन यह भारतीय सेना जैसी संस्था की गरिमा और महिला अधिकारियों की प्रतिष्ठा पर सीधा हमला माना गया।
3. सुप्रीम कोर्ट का रुख: “थोड़ी समझदारी दिखाइए”
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने विजय शाह की टिप्पणी पर सख्त असहमति जताई और कहा:
“आप किस तरह की टिप्पणी कर रहे हैं? आपको थोड़ी समझदारी दिखानी चाहिए। जाकर हाई कोर्ट में माफी मांगें।”
CJI ने आगे कहा कि:
इस तरह की भाषा संवैधानिक पद की गरिमा के अनुकूल नहीं है।
जब देश संवेदनशील स्थिति से गुजर रहा हो, तो नेताओं को बयानबाजी में सावधानी और संयम बरतना चाहिए।
4. हाई कोर्ट की टिप्पणी
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने पहले ही इस बयान को:
“खतरनाक”
“गंभीर रूप से अपमानजनक”
“सैन्य अनुशासन और गरिमा के खिलाफ” बताया था।
हाई कोर्ट ने कहा था कि यदि नेताओं को अपनी बात कहनी है तो तथ्य और गरिमा के साथ कहें, न कि संवेदनशील पदों पर बैठे अधिकारियों की छवि को धूमिल कर।
5. सेना की गरिमा और महिला अधिकारियों की प्रतिष्ठा
भारतीय सेना एक गैर-राजनीतिक और अनुशासित संस्था है, और उसके अधिकारियों को किसी राजनीतिक बहस में घसीटना न केवल अनुचित है, बल्कि खतरनाक भी।
कर्नल सोफिया कुरैशी जैसी महिला अधिकारी देश का गौरव हैं।
उनकी उपलब्धियों को लेकर संदेह जताना, खासकर सार्वजनिक मंच से, राष्ट्रविरोधी मानसिकता को बढ़ावा देता है।
6. राजनीतिक नेताओं की जिम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से यह स्पष्ट संदेश गया है कि:
राजनीतिक और संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को बोलने से पहले सोचने की जरूरत है।
चुनावी फायदे के लिए बयानबाजी करते समय यह नहीं भूलना चाहिए कि इससे देश की संस्थाओं की साख और सामाजिक सद्भाव प्रभावित हो सकता है।
7. क्या यह मामला महिला सम्मान से भी जुड़ा है?
बिलकुल। कर्नल सोफिया कुरैशी एक महिला सैन्य अधिकारी हैं जिन्होंने देश और सेना के लिए कई उपलब्धियाँ अर्जित की हैं। उनके खिलाफ इस तरह की टिप्पणी न सिर्फ पेशेवर असम्मान है बल्कि लैंगिक भेदभाव और स्त्री गरिमा पर भी आघात है।
भारत में महिला सशक्तिकरण की बात करने वाले नेताओं को यह समझना होगा कि किसी महिला को सार्वजनिक मंच पर इस तरह अपमानित करना गंभीर अपराध के समान है।
8. आगे क्या हो सकता है?
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद अब इस मामले में:
विजय शाह को हाई कोर्ट में व्यक्तिगत माफी देनी पड़ सकती है।
मीडिया और राजनीतिक दलों को भी बयानबाजी में जिम्मेदारी बरतने की जरूरत है।
संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए ऐसे मामलों में कोर्ट की दखल जरूरी साबित हो रही है।
निष्कर्ष: गरिमा, मर्यादा और जिम्मेदारी जरूरी
भारत जैसे लोकतंत्र में वाणी की स्वतंत्रता का अधिकार सभी को है, लेकिन जब यह अधिकार दूसरों की प्रतिष्ठा और संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा पर हमला करने लगे, तब उसे सीमित करना जरूरी हो जाता है।
कर्नल सोफिया कुरैशी पर विजय शाह की टिप्पणी से एक बार फिर यह स्पष्ट हुआ कि लोकतंत्र में मर्यादा और जिम्मेदारी सबसे बड़ी पूंजी है।