The horrifying face of motherhood and fatherhood in Jodhpur: तीन मासूमों की हत्या कर माता-पिता ने की आत्महत्या की कोशिश
April 16, 2025
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राजस्थान के जोधपुर शहर में एक दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे इलाके को स्तब्ध कर दिया है। मां-बाप, जो बच्चों की सबसे बड़ी सुरक्षा माने जाते
राजस्थान के जोधपुर शहर में एक दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे इलाके को स्तब्ध कर दिया है। मां-बाप, जो बच्चों की सबसे बड़ी सुरक्षा माने जाते हैं, वही अपने तीन मासूम बच्चों की निर्मम हत्या कर बैठे। इस दुखद घटना में बच्चों को पहले जहर दिया गया, फिर उनका गला घोंटा गया, और अंत में चाकू से गला रेतकर उनकी जान ले ली गई। इतना ही नहीं, इसके बाद माता-पिता ने खुद भी आत्महत्या करने का प्रयास किया।
यह घटना समाज, मानसिक स्वास्थ्य और पारिवारिक दबावों को लेकर गंभीर सवाल खड़े करती है। आइए इस भयावह घटना को विस्तार से समझते हैं।
घटना का विवरण: कब और कैसे हुआ सब कुछ?
यह दर्दनाक मामला सोमवार की रात का है। जोधपुर शहर के एक क्षेत्र में रहने वाले दंपति और उनके तीन बच्चों के घर में अचानक खामोशी छा गई। अगली सुबह जब पड़ोसियों ने घर से खून बहता देखा, तो उन्होंने पुलिस को सूचना दी।
पुलिस जब मौके पर पहुंची तो घर के अंदर का मंजर रोंगटे खड़े कर देने वाला था। तीनों बच्चे मृत पड़े थे—कुछ के गले पर निशान थे, तो कुछ की नसें कटी हुई थीं। पुलिस ने बताया कि पहले बच्चों को जहर दिया गया, फिर गला दबाया गया, और अंत में चाकू से गला रेता गया। यह हिंसा की पराकाष्ठा थी।
दंपति (माता-पिता) भी गंभीर अवस्था में घायल थे, जिनका स्थानीय अस्पताल में इलाज चल रहा है।
मासूमों की पहचान और उम्र
पुलिस ने जानकारी दी कि मृत बच्चों की उम्र 4 से 10 साल के बीच थी। एक बेटा और दो बेटियां थीं। बच्चे मासूम, हंसमुख और पड़ोसियों के अनुसार “सुनहरे भविष्य वाले” थे।
उनकी निर्दयी हत्या ने हर किसी की आंखों में आंसू ला दिए।
माता-पिता ने क्यों उठाया ऐसा कदम?
प्रारंभिक जांच में यह बात सामने आई है कि परिवार आर्थिक तंगी, आपसी कलह और तनाव से गुजर रहा था। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार पिता का व्यवसाय ठप पड़ चुका था, और मां भी मानसिक तनाव में थी।
हालांकि अब तक कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है, लेकिन पुलिस को शक है कि मानसिक तनाव, भविष्य की चिंता और जीवन की निराशा ने उन्हें इस चरमपंथी कदम के लिए प्रेरित किया।
मानसिक स्वास्थ्य: एक अनदेखा पहलू
इस घटना ने एक बार फिर मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे को उजागर किया है। भारत जैसे समाज में जहां मानसिक बीमारियों को अब भी कलंक की तरह देखा जाता है, वहां ऐसे मामले चुपचाप पनपते रहते हैं।
यदि समय रहते परिवार को मनोचिकित्सक या काउंसलर की सहायता मिलती, तो शायद यह त्रासदी टाली जा सकती थी। समाज को चाहिए कि मानसिक बीमारी को बीमारी की तरह ही स्वीकारे, और जरूरतमंदों को समर्थन और मार्गदर्शन दे।
पड़ोसियों की प्रतिक्रिया: अविश्वास और दुख
पड़ोसियों ने बताया कि यह परिवार आम तौर पर शांत और मिलनसार था। किसी ने कभी सोचा नहीं था कि इस घर में ऐसी भीषण घटना घटेगी।
एक पड़ोसी ने कहा, “बच्चे रोज़ खेलते थे। हम सब उन्हें अपने बच्चों की तरह मानते थे। कल रात कुछ भी असामान्य नहीं लगा, लेकिन आज सुबह का नजारा भूलना मुश्किल है।”
पुलिस की कार्रवाई और अगली जांच की दिशा
पुलिस ने तीनों बच्चों के शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है और माता-पिता से पूछताछ करने की कोशिश कर रही है। उनकी हालत गंभीर है, लेकिन होश में आने के बाद बयान लिया जाएगा।
समाज की भूमिका: कहां हो रही चूक?
ऐसी घटनाएं केवल पारिवारिक असफलता नहीं, बल्कि सामाजिक असंवेदनशीलता का परिणाम भी हैं। जब किसी परिवार पर आर्थिक या मानसिक दबाव होता है, तो अक्सर समाज उन्हें सहारा देने की बजाय अकेला छोड़ देता है।
जरूरत है कि हम अपने आसपास के लोगों पर ध्यान दें, संवेदनशील बनें और समय पर मानवता दिखाएं। शायद किसी एक बातचीत या मदद से ऐसी त्रासदी रोकी जा सकती है।
बच्चों के अधिकार और सुरक्षा
यह मामला बच्चों की सुरक्षा और उनके अधिकारों को लेकर भी चिंता बढ़ाता है। माता-पिता ही जब बच्चों की जान के दुश्मन बन जाएं, तो कानून और समाज की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।
सरकार और समाज को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी बच्चे को ऐसी स्थिति का सामना न करना पड़े, और समय पर मदद मिल सके।
निष्कर्ष: यह केवल एक खबर नहीं, एक चेतावनी है
जोधपुर की यह घटना एक खबर भर नहीं है, यह समाज के लिए चेतावनी है। यह हमें बताती है कि मानसिक स्वास्थ्य, आर्थिक दबाव और सामाजिक समर्थन कितने अहम हैं।
माता-पिता का बच्चों की जान लेना कोई तात्कालिक गुस्से का परिणाम नहीं, बल्कि लंबे समय से जमी मानसिक पीड़ा का नतीजा है। ऐसे में हमें अधिक संवेदनशील, सहयोगी और सतर्क समाज बनना होगा।
अगर आप या आपके आसपास कोई भी व्यक्ति मानसिक दबाव से गुजर रहा है, तो उसे अकेला न छोड़ें। काउंसलिंग, बातचीत और भावनात्मक सहारा किसी की जान बचा सकता है।