Names of 15 Places Changed in Uttarakhand: सांस्कृतिक विरासत को संजोने की पहल
- April 1, 2025
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उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 1 अप्रैल को एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए राज्य के 15 प्रमुख स्थानों के नाम बदलने की घोषणा की। यह निर्णय
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 1 अप्रैल को एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए राज्य के 15 प्रमुख स्थानों के नाम बदलने की घोषणा की। यह निर्णय
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 1 अप्रैल को एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए राज्य के 15 प्रमुख स्थानों के नाम बदलने की घोषणा की। यह निर्णय हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल और उधमसिंह नगर जिलों में लागू किया गया है। सरकार का कहना है कि यह परिवर्तन भारतीय संस्कृति, परंपरा और जनभावनाओं के अनुरूप किया जा रहा है।
हरिद्वार जिले में कई स्थानों के नाम बदले गए हैं, जिनमें प्रमुख रूप से:
इसके अलावा, देहरादून, नैनीताल और उधमसिंह नगर जिलों में भी कुछ स्थानों के नाम बदलने का फैसला लिया गया है, जिनकी सूची जल्द ही जारी की जाएगी।
उत्तराखंड सरकार के अनुसार, यह कदम भारतीय संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहर को सहेजने के उद्देश्य से उठाया गया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि इन नामों को उन महापुरुषों के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने भारतीय समाज और संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसके अलावा, यह निर्णय स्थानीय जनता की भावनाओं का सम्मान करने के लिए भी लिया गया है।
नाम बदलने की यह प्रक्रिया कई मायनों में महत्वपूर्ण मानी जा रही है। उत्तराखंड एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राज्य है, और यहां की जनता भारतीय परंपराओं और मूल्यों को लेकर जागरूक है। राज्य सरकार का मानना है कि नए नामों से लोगों में प्रेरणा जागेगी और वे भारतीय इतिहास से जुड़ाव महसूस करेंगे।
जहां एक ओर सरकार के इस फैसले को व्यापक समर्थन मिल रहा है, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इसे अनावश्यक बदलाव मान रहे हैं। विपक्षी दलों ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा है कि सरकार को नाम बदलने के बजाय बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान देना चाहिए। हालांकि, सरकार का मानना है कि यह कदम सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और राष्ट्रीय गौरव को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।
उत्तराखंड में स्थानों के नाम बदलने का यह निर्णय राज्य की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल भारतीय महापुरुषों का सम्मान किया जाएगा, बल्कि स्थानीय जनता को अपनी जड़ों से भी जोड़ा जाएगा। यह बदलाव आने वाले समय में राज्य की सांस्कृतिक पहचान को और मजबूत करने में सहायक सिद्ध हो सकता है।