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Confrontation between Amazon and the White House: ट्रंप टैरिफ की लागत दिखाने पर मचा बवाल, शेयर गिरे और UPS ने की छंटनी

  • April 30, 2025
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Amazon vs White House: अमेरिका में ई-कॉमर्स की दिग्गज कंपनी अमेजन (Amazon) और व्हाइट हाउस के बीच नया राजनीतिक विवाद छिड़ गया है। मामला अमेरिकी उपभोक्ताओं को उत्पादों

Confrontation between Amazon and the White House: ट्रंप टैरिफ की लागत दिखाने पर मचा बवाल, शेयर गिरे और UPS ने की छंटनी

Amazon vs White House: अमेरिका में ई-कॉमर्स की दिग्गज कंपनी अमेजन (Amazon) और व्हाइट हाउस के बीच नया राजनीतिक विवाद छिड़ गया है। मामला अमेरिकी उपभोक्ताओं को उत्पादों की कीमत में टैरिफ (Tariff) यानी आयात शुल्क की जानकारी देने का है। अमेजन की यह योजना जहां पारदर्शिता का दावा कर रही है, वहीं व्हाइट हाउस ने इसे राजनीतिक हमला करार देते हुए नाराज़गी जाहिर की है। इस विवाद ने न केवल राजनीति, बल्कि अमेरिकी व्यापार और रोज़गार बाजार पर भी असर डाला है।

इस मुद्दे की जड़ें अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उस टैरिफ नीति से जुड़ी हैं, जो उन्होंने चीन सहित कई देशों के आयातित उत्पादों पर लागू की थी। अब जब अमेजन इन शुल्कों की जानकारी उपभोक्ताओं को सीधे देना चाहती है, तो व्हाइट हाउस इसे सरकार की छवि बिगाड़ने की साजिश बता रहा है।

क्या है अमेजन की योजना?

अमेजन ने हाल ही में संकेत दिए हैं कि वह अपनी वेबसाइट पर बेचे जाने वाले आयातित उत्पादों की कीमत में शामिल टैरिफ शुल्क को स्पष्ट रूप से दिखाना चाहती है। यानी उपभोक्ताओं को यह बताया जाएगा कि किसी सामान की कीमत में कितना हिस्सा सरकार द्वारा लगाए गए टैरिफ का है।

अमेजन का कहना है कि यह पहल ग्राहकों के लिए पारदर्शिता बढ़ाने और यह समझाने के लिए है कि उन्हें कोई प्रोडक्ट महंगा क्यों मिल रहा है।

व्हाइट हाउस का विरोध: ‘राजनीतिक हमला’

व्हाइट हाउस ने इस कदम को सख्त लहजे में खारिज करते हुए कहा है कि यह एक “दुश्मनी भरा राजनीतिक कदम” है, जो पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियों को निशाना बनाने के इरादे से उठाया गया है।

एक प्रवक्ता के अनुसार, “यह एक कॉर्पोरेट चाल है जिससे उपभोक्ताओं को भ्रमित किया जाए और एक खास राजनीतिक दृष्टिकोण को बढ़ावा मिले।”

व्हाइट हाउस की यह प्रतिक्रिया दिखाती है कि सरकार इस तरह की पारदर्शिता को एक छवि खराब करने वाली रणनीति मान रही है, जो विशेष रूप से राष्ट्रपति चुनाव से पहले काफी संवेदनशील मुद्दा बन सकता है।

Amazon and the White House

अमेजन के शेयर गिरे, UPS में नौकरियों पर असर

इस विवाद का असर केवल शब्दों की जंग तक सीमित नहीं रहा। इसके बाद अमेजन के शेयरों में गिरावट दर्ज की गई, जिससे निवेशकों में चिंता का माहौल बन गया।

वहीं, UPS (United Parcel Service) ने इस बीच 20,000 कर्मचारियों की छंटनी का ऐलान किया। UPS का कहना है कि वह ऑपरेशनल खर्च कम कर रहा है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला भी मौजूदा आर्थिक और राजनीतिक तनाव से जुड़ा हो सकता है।

टैरिफ का सीधा असर ग्राहक पर

डोनाल्ड ट्रंप की अध्यक्षता के दौरान, अमेरिका ने चीन और अन्य देशों से आने वाले कई उत्पादों पर भारी-भरकम आयात शुल्क लगाए थे। इन शुल्कों का असर सीधा उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ा, क्योंकि कंपनियों ने बढ़े हुए खर्च को ग्राहकों पर ही डाल दिया।

यदि अमेजन अब यह लागत ग्राहकों को साफ-साफ दिखाएगी, तो इससे जनता में सरकार की नीतियों के प्रति असंतोष बढ़ सकता है। यही वजह है कि व्हाइट हाउस इस कदम को राजनीतिक खतरे के रूप में देख रहा है।

पारदर्शिता बनाम राजनीति

इस पूरे विवाद ने एक बड़ा सवाल खड़ा किया है — क्या कंपनियों को उपभोक्ताओं को पूरी कीमत का ब्रेकडाउन बताने का अधिकार है?

जहां अमेजन जैसी कंपनियां पारदर्शिता और ग्राहक जागरूकता की बात कर रही हैं, वहीं सरकार इसे जनमत को प्रभावित करने की कोशिश मान रही है। यह लड़ाई अब केवल मूल्य नीति की नहीं, बल्कि बिजनेस बनाम पॉलिटिक्स की बन चुकी है।

क्या हो सकते हैं इसके दूरगामी प्रभाव?

  1. राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ेगा:
    अमेजन और सरकार के बीच यह टकराव अन्य कंपनियों को भी अपनी स्थिति स्पष्ट करने को मजबूर करेगा।
  2. ग्राहकों में जागरूकता बढ़ेगी:
    अगर टैरिफ की जानकारी खुले तौर पर दी जाती है, तो ग्राहक जान पाएंगे कि महंगाई का असली जिम्मेदार कौन है — कंपनी या सरकार?
  3. कॉर्पोरेट पॉलिसी में बदलाव:
    अन्य बड़ी कंपनियां भी अब पारदर्शिता की तरफ कदम बढ़ा सकती हैं, जिससे सरकारों की नीतियों पर दबाव बढ़ेगा।

निष्कर्ष

Amazon बनाम White House की यह लड़ाई अमेरिका में व्यापार और राजनीति की परस्पर जटिलता को उजागर करती है। अमेजन का टैरिफ दिखाने का प्रस्ताव उपभोक्ताओं के लिए भले ही उपयोगी हो, लेकिन सरकार इसे अपनी नीतियों के खिलाफ साजिश मान रही है।

आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अन्य कंपनियां भी इस दिशा में आगे बढ़ती हैं, या फिर सरकारी दबाव में पीछे हटती हैं।

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