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Ground Zero Review: एक जांबाज अफसर की सच्ची कहानी, जो दिल को छू जाती है

  • April 25, 2025
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पहलगाम की खूबसूरत वादियां जहां सैलानी सुकून की तलाश में आते हैं, वहीं कभी-कभी वही वादियां गोलियों की आवाज़ से गूंज उठती हैं। कुछ ऐसा ही हुआ जब

Ground Zero Review: एक जांबाज अफसर की सच्ची कहानी, जो दिल को छू जाती है

पहलगाम की खूबसूरत वादियां जहां सैलानी सुकून की तलाश में आते हैं, वहीं कभी-कभी वही वादियां गोलियों की आवाज़ से गूंज उठती हैं। कुछ ऐसा ही हुआ जब ‘ग्राउंड ज़ीरो‘ की कहानी शुरू होती है, एक ऐसी सच्ची घटना पर आधारित फिल्म जो आपको झकझोर कर रख देगी। यह फिल्म सिर्फ एक मिशन की दास्तान नहीं, बल्कि उस अफसर की कहानी है जिसने देश के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी। यह कहानी है बीएसएफ ऑफिसर नरेंद्र नाथ धर दुबे की, जिसे इमरान हाशमी ने निभाया है।

कहानी का सार:

वर्ष 2001, श्रीनगर। आतंकवाद अपने चरम पर है। जैश-ए-मोहम्मद का टॉप आतंकी गाजी बाबा भारतीय सुरक्षाबलों के लिए सिरदर्द बना हुआ है। आतंकियों की एक पूरी गैंग सरहद पार से घुसपैठ कर रही है और हमारे जवानों को निशाना बना रही है। इन्हीं हालातों में नरेंद्र नाथ दुबे की पोस्टिंग श्रीनगर में होती है, जहां वो अपनी पत्नी और बेटे के साथ रहते हैं। दुबे एक ईमानदार, सख्त लेकिन संवेदनशील ऑफिसर हैं जो अपने ड्यूटी से ज्यादा अपने जवानों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं।

गाजी बाबा और उसकी गैंग अब तक करीब 70 से ज़्यादा जवानों को मार चुकी थी। नरेंद्र इस बात से अंदर ही अंदर टूटने लगते हैं। उनका अपना जवान और खास सिपाही हुसैन भी गाजी बाबा के हमले का शिकार हो जाता है। नरेंद्र खुद को इस नुकसान का जिम्मेदार मानने लगते हैं और तबादले की मांग करते हैं। लेकिन यही तो कहानी की शुरुआत है। कैसे वो दुबारा मिशन पर जाते हैं, कैसे गाजी बाबा को ट्रैक करते हैं और अंत में कैसे उसे मार गिराते हैं, यही है ‘ग्राउंड ज़ीरो’ की असली जान।

निर्देशन:

तेजस प्रभा विजय देओस्कर का निर्देशन बेहद प्रभावशाली है। उन्होंने फिल्म के हर सीन को बेहद बारीकी और समझदारी से पेश किया है। चाहे वो पहलगाम की वादियों में छुपे हुए आतंकियों का पीछा करना हो या फिर दुबे के अंदर की उथल-पुथल दिखाना—हर फ्रेम में एक उद्देश्य झलकता है। तेजस ने इस विषय को गंभीरता और सम्मान के साथ दर्शाया है। उनका निर्देशन कहीं भी ड्रामा या मेलोड्रामा में नहीं फिसलता।

एक्शन सीन खासतौर पर तारीफ के काबिल हैं। मिलिट्री ऑपरेशन्स के छोटे-छोटे डिटेल्स जैसे हथियार चलाना, रणनीति बनाना, ट्रैकिंग करना—इन सबको रियलिस्टिक टच दिया गया है। क्लाइमेक्स का एक्शन सीक्वेंस तो देखने लायक है, जहां भावनाएं और गोलियां दोनों साथ-साथ चलते हैं।

स्क्रीनप्ले और लेखन:

संचित गुप्ता और प्रियदर्शी श्रीवास्तव का स्क्रीनप्ले फिल्म की सबसे मजबूत कड़ी है। उन्होंने एक सच्ची घटना को जिस तरह से संवेदनशीलता और संतुलन के साथ लिखा है, वह काबिले तारीफ है। कहानी के किरदार ज़मीन से जुड़े हैं, कोई सुपरहीरो नहीं है। नरेंद्र नाथ दुबे जैसे अधिकारी आपके और हमारे बीच के ही इंसान हैं, जिनकी जद्दोजहद हमें सोचने पर मजबूर करती है।

फिल्म के डायलॉग्स भी बहुत दमदार हैं, खासकर वो लाइन — “तुझे लाई यहां तेरी मौत फौजी, कश्मीर का बदला लेगा गाजी” को बदलकर “तुझे लाई यहां तेरी मौत गाजी, कश्मीर का बदला लेगा फौजी” कर देना—इस बदलाव में ही पूरी फिल्म का सार छिपा है।

अभिनय:

इमरान हाशमी ने नरेंद्र नाथ दुबे के किरदार को पूरी ईमानदारी से निभाया है। वो इस फिल्म में ग्लैमर हीरो नहीं बल्कि एक आम मगर बहादुर अफसर के रूप में नजर आते हैं। उनके चेहरे पर संघर्ष, डर, गुस्सा और ज़िम्मेदारी का जो मिश्रण दिखता है, वह दिल को छू जाता है।

सई ताम्हणकर ने जया दुबे का किरदार निभाया है, जो कम स्क्रीन टाइम के बावजूद असर छोड़ती हैं। एक सैनिक की पत्नी का किरदार निभाते हुए उन्होंने दर्शाया है कि देश के लिए लड़ने वालों के पीछे एक मजबूत दिल भी होता है जो हर रोज़ डर में जीता है।

जोया हुसैन ने आईबी अफसर आदिला का किरदार निभाया है। उन्होंने अपने रोल को गंभीरता और आत्मविश्वास से निभाया है, लेकिन उनका किरदार थोड़ा और विस्तार मांगता था। वहीं, मुकेश तिवारी की कास्टिंग कमजोर रही। वो किरदार में गंभीरता नहीं ला सके और एक आर्मी ऑफिसर से ज्यादा विलेन टाइप लगते हैं, जो फिल्म की ग्रेविटी को थोड़ा कमजोर करता है।

तकनीकी पक्ष:

फिल्म की सिनेमैटोग्राफी शानदार है। कश्मीर की वादियां जितनी खूबसूरत हैं, उतनी ही खतरनाक भी, और इस विरोधाभास को कैमरे ने बखूबी कैद किया है। बैकग्राउंड स्कोर थ्रिल को बनाए रखता है और एक्शन सीन्स में एड्रेनालिन को बढ़ाता है। एडिटिंग थोड़ी और क्रिस्प हो सकती थी, खासकर सेकेंड हाफ में फिल्म थोड़ी खिंचती है, लेकिन क्लाइमेक्स इन कमियों को भूलने पर मजबूर कर देता है।

फिल्म क्यों देखें:

‘ग्राउंड ज़ीरो’ उन अनसंग हीरोज़ को सलाम है जो देश की रक्षा में अपने परिवार और जान तक को पीछे छोड़ देते हैं। ये सिर्फ एक एक्शन फिल्म नहीं, बल्कि एक सच्ची भावना है, एक प्रेरणा है। इमरान हाशमी ने इस फिल्म के जरिए साबित किया है कि वो सिर्फ रोमांटिक या थ्रिलर हीरो नहीं, एक गंभीर किरदार को भी मजबूती से निभा सकते हैं।

निष्कर्ष:

अगर आप ऐसी फिल्में पसंद करते हैं जो सच्ची घटनाओं पर आधारित हों, जिनमें मनोरंजन के साथ-साथ देशभक्ति और सच्चाई हो, तो ‘ग्राउंड ज़ीरो’ आपके लिए एक परफेक्ट चॉइस है। यह फिल्म दिल को छूती है, सोचने पर मजबूर करती है और अंत में एक गर्व का भाव छोड़ जाती है।

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