मेडिकल साइंस का कमाल हाल ही में एक बार फिर देखने को मिला जब 46 साल की एक महिला ने आईवीएफ की मदद से तीन बच्चियों को जन्म दिया। खास बात ये रही कि ये महिला डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रही थीं और तीनों बच्चियां सिर्फ 25 हफ्ते में पैदा हुई थीं। कुल मिलाकर इन तीनों का वजन सिर्फ ढाई किलो था। फरीदाबाद के एक निजी अस्पताल में बच्चियों को करीब 225 दिनों तक एनआईसीयू (NICU) में रखा गया।
डॉक्टर्स और नर्सों की दिन-रात की मेहनत ने वो करिश्मा कर दिखाया, जिसकी उम्मीद बेहद कम थी। आखिरकार 225 दिन बाद तीनों बच्चियां पूरी तरह स्वस्थ होकर घर पहुंचीं। यह भारत का पहला ऐसा मामला माना जा रहा है, जहां इतने कम समय में पैदा हुए ट्रिपलेट्स बिना किसी गंभीर समस्या के पूरी तरह ठीक हो गए।
46 साल की प्रोफेसर की संघर्षभरी मां बनने की कहानी
यह कहानी दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर ज्योत्सना की है, जिन्होंने शादी के बाद सालों तक मां बनने की कोशिश की। लेकिन तमाम प्रयासों और इलाज के बावजूद वे मां नहीं बन सकीं। समाज की बातों और मानसिक तनाव के बीच उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। आखिरकार उन्होंने IVF का सहारा लिया और यह फैसला उनकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा मोड़ बन गया।
डायबिटीज और हाई बीपी जैसी हेल्थ कंडीशंस के चलते उनकी प्रेग्नेंसी हाई रिस्क में थी। आखिरी दिनों में उन्हें निमोनिया और कई अन्य संक्रमण हो गए, जिससे उनकी हालत बिगड़ गई और उन्हें ICU में भर्ती करना पड़ा। ऐसे में इमरजेंसी सी-सेक्शन के जरिए तीन बच्चियों का जन्म हुआ।
प्रीमैच्योर बच्चियों का 225 दिन का संघर्ष
तीनों बच्चियों का जन्म महज 25 हफ्ते में हुआ और उनकी हालत काफी नाज़ुक थी। आमतौर पर इतने कम समय में जन्मे बच्चों का बचना मुश्किल होता है, लेकिन डॉक्टर हेमंत शर्मा और उनकी टीम ने दिन-रात मेहनत करके चमत्कार कर दिखाया। टीम में 6 डॉक्टर और 20 नर्सें थीं, जिन्होंने बच्चियों को प्यार से ‘त्रिदेवी’ नाम दिया।
खास बात यह रही कि किसी भी बच्ची को वेंटिलेटर पर नहीं रखना पड़ा। जन्म के 9 घंटे के अंदर उन्हें दूध दिया गया और चौथे दिन तक वे मां का दूध पीने लगीं। 225 दिनों तक एनआईसीयू में रहने के दौरान ना तो उन्हें कोई इंफेक्शन हुआ और ना ही कोई न्यूरोलॉजिकल दिक्कत।
मां की ममता ने भी निभाई अहम भूमिका
प्रोफेसर ज्योत्सना की हालत खुद भी गंभीर थी, लेकिन ICU में रहते हुए भी उन्होंने अपनी बच्चियों के लिए दूध निकालना नहीं छोड़ा। यही मां का दूध उनकी इम्यूनिटी बढ़ाने में सबसे ज्यादा मददगार साबित हुआ। उन्होंने कहा, “अस्पताल की पूरी टीम ने मेरी बच्चियों को बचाने में जो समर्पण दिखाया, वह मैं कभी नहीं भूल सकती।”
क्यों खास है यह मामला?
भारत में हर साल करीब 35 लाख बच्चे समय से पहले जन्म लेते हैं, जिनमें से 3 लाख से ज्यादा की पांच साल की उम्र से पहले मौत हो जाती है। ऐसे में यह केस उम्मीद की किरण की तरह है, जो बताता है कि सही देखभाल, मां की ममता और मेडिकल टीम के समर्पण से कोई भी नामुमकिन नहीं।
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