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World Circus Day: जानिए सर्कस की दिलचस्प शुरुआत और कैसे पहुंचा ये भारत तक

  • April 19, 2025
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भले ही आज की जेनरेशन ज़ी और अल्फा का सर्कस से कोई खास जुड़ाव न हो, लेकिन एक समय था जब सर्कस भारतीयों के लिए मनोरंजन का सबसे

World Circus Day: जानिए सर्कस की दिलचस्प शुरुआत और कैसे पहुंचा ये भारत तक

भले ही आज की जेनरेशन ज़ी और अल्फा का सर्कस से कोई खास जुड़ाव न हो, लेकिन एक समय था जब सर्कस भारतीयों के लिए मनोरंजन का सबसे बड़ा ज़रिया हुआ करता था। बच्चे, युवा, और बुज़ुर्ग – सभी को अपने शहर में सर्कस के आने का इंतज़ार रहता था। लोग परिवार और दोस्तों के साथ टिकट लेकर सर्कस देखने जाते थे और इसका खूब आनंद लेते थे। अब आप सोच रहे होंगे कि अचानक सर्कस की बात क्यों हो रही है? दरअसल, हर साल अप्रैल के तीसरे शनिवार को ‘विश्व सर्कस दिवस’ (World Circus Day) मनाया जाता है।

इस साल यानी 2025 में यह दिन 19 अप्रैल को पड़ रहा है। यह दिन सर्कस कलाकारों, उनके हुनर और लोगों का मनोरंजन करने के उनके समर्पण को सलाम करने का मौका है। ऐसे में चलिए जानते हैं सर्कस का दिलचस्प इतिहास और भारत में इसकी पहुंच के बारे में…

सदियों पुरानी है सर्कस की कहानी

सर्कस और उसमें शामिल जोकरों की परंपरा बेहद पुरानी है। माना जाता है कि सर्कस की शुरुआत रोम से हुई थी, लेकिन जोकरों के अस्तित्व के प्रमाण 2200 ईसा पूर्व के मिस्र में भी मिलते हैं। प्राचीन ग्रीस और रोम में जोकर शाही दरबारों में लोगों को हंसाने का काम करते थे। उनका पहनावा और भाव-भंगिमा इतनी अलग होती थी कि हर कोई उन्हें देखकर मुस्कुरा उठता था। कहा जाता है कि ग्रीस के जोकर गंजे होते थे और खुद को बड़ा दिखाने के लिए गद्देदार कपड़े पहनते थे, जबकि रोम के जोकर नुकीली टोपियां पहनते थे।

आधुनिक सर्कस की नींव कैसे रखी गई

आज जिस सर्कस को हम जानते हैं, उसकी नींव इंग्लैंड के फिलिप एस्टली ने रखी थी। एस्टली का जन्म 1742 में हुआ था और वे एक कुशल घुड़सवार थे। वे घोड़े की पीठ पर खड़े होकर हैरतअंगेज़ करतब दिखाया करते थे। हालांकि उनसे पहले भी लोग ऐसे करतब करते थे, लेकिन एस्टली पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 1768 में एक एम्फीथिएटर यानी मंच स्थापित किया, जहां लोग एकत्र होकर उनके शो देख सकें। बाद में उन्होंने तलवारबाज़ी, कलाबाजी और मनोरंजन के अन्य तत्व भी जोड़े। इसी समय दर्शकों को हंसाने के लिए जोकर को भी शामिल किया गया, और यहीं से आधुनिक सर्कस की शुरुआत मानी जाती है।

भारत में भी रहा सर्कस का स्वर्णिम दौर

भारत में सर्कस सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा रहा है। हमारे देश में कई ऐसे सर्कस कलाकार हुए हैं जिन्होंने अपनी कला से लोगों का दिल जीता है। इन्हीं में शामिल है ‘ग्रेट बॉम्बे सर्कस’, जिसे 1920 में शुरू किया गया था। यह सर्कस अपनी अद्भुत कलाबाजियों और जानवरों के करतबों के लिए जाना जाता है। इसके बाद 1951 में शुरू हुआ ‘जेमिनी सर्कस’ भी बेहद लोकप्रिय रहा, जिसमें हाथी, घोड़े और बाघ जैसे जानवर भी करतब दिखाते थे। 1991 में शुरू हुआ ‘रैम्बो सर्कस’ भी लंबे समय तक भारतीयों के बीच लोकप्रिय बना रहा।

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