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Why are rich Indians spending 183 days in Dubai?? कोटक एएमसी के नीलेश शाह ने खोले राज

  • April 14, 2025
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भारत में टैक्स व्यवस्था को लेकर समय-समय पर चर्चा होती रहती है। खासकर जब बात आती है हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल्स (HNIs) यानी अमीर लोगों की, जो टैक्स

Why are rich Indians spending 183 days in Dubai?? कोटक एएमसी के नीलेश शाह ने खोले राज

भारत में टैक्स व्यवस्था को लेकर समय-समय पर चर्चा होती रहती है। खासकर जब बात आती है हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल्स (HNIs) यानी अमीर लोगों की, जो टैक्स प्लानिंग के नाम पर विदेशों की ओर रुख कर लेते हैं। हाल ही में कोटक एसेट मैनेजमेंट कंपनी (Kotak AMC) के एमडी नीलेश शाह ने इसी मुद्दे पर ध्यान दिलाते हुए कुछ अहम बातें साझा कीं। उन्होंने बताया कि कैसे भारत की टैक्स नीति में मौजूद एक ‘लूपहोल’ यानी खामी के कारण कई अमीर भारतीय नागरिक 183 दिन दुबई जैसे देशों में बिता रहे हैं ताकि उन्हें भारत में टैक्स न भरना पड़े।

इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि आखिर क्या है यह 183 दिनों का नियम, क्यों दुबई बन रहा है अमीरों की पहली पसंद, नीलेश शाह का इस पर क्या कहना है, और भारत को इससे कैसे निपटना चाहिए।

Indians spending 183 days in Dubai

क्या है ‘183 दिन’ का नियम?

भारत में टैक्स रेजीडेंसी का निर्धारण एक व्यक्ति के यहां बिताए गए समय के आधार पर होता है। यदि कोई व्यक्ति एक वित्तीय वर्ष में 183 दिन या उससे अधिक भारत में रहता है, तो उसे भारत का टैक्स रेजीडेंट माना जाता है और उसकी ग्लोबल इनकम पर टैक्स लगता है।

लेकिन अगर वह व्यक्ति भारत से बाहर 183 दिन या अधिक समय बिताता है, तो वह नॉन-रेजीडेंट (NRI) की श्रेणी में आ जाता है और केवल भारत से अर्जित आय पर ही टैक्स देना होता है। यही नियम आज कई अमीर भारतीयों के लिए एक आसान रास्ता बन गया है टैक्स बचाने का।

दुबई क्यों बन रहा है पहली पसंद?

नीलेश शाह के अनुसार, अमीर भारतीय बड़ी संख्या में दुबई जैसे टैक्स-फ्री या लो-टैक्स देशों में 183 दिन बिताकर NRI का दर्जा हासिल कर रहे हैं। इसके पीछे कई कारण हैं:

  1. टैक्स बचत: दुबई में इनकम टैक्स नहीं लगता। भारत में 30% तक की टैक्स स्लैब को देखते हुए यह बहुत आकर्षक विकल्प है।
  2. लाइफस्टाइल और कनेक्टिविटी: दुबई भारत से बेहद करीब है और यहां का जीवनस्तर भी काफी ऊंचा है। परिवार और कारोबार के बीच संतुलन बनाए रखना आसान होता है।
  3. ग्लोबल बिजनेस हब: दुबई एक अंतरराष्ट्रीय व्यापार केंद्र है, जिससे वैश्विक स्तर पर व्यापार करने वालों को फायदा होता है।

नीलेश शाह का बयान क्यों है अहम?

नीलेश शाह ने कहा, “अमेरिका में यदि कोई नागरिक वहां से बाहर बसता है या नागरिकता छोड़ता है, तो उसे एक ‘एग्जिट टैक्स’ देना होता है। भारत में ऐसा कोई टैक्स नहीं है, जिससे अमीरों को विदेश जाकर टैक्स बचाने की छूट मिल जाती है।”

उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि भारत को अपनी टैक्स नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए ताकि देश को राजस्व की हानि न हो और नागरिकों को फेयर सिस्टम मिले।

Indians spending 183 days in Dubai

क्या है ‘एग्जिट टैक्स’ और क्या भारत को इसकी ज़रूरत है?

एग्जिट टैक्स एक ऐसा टैक्स है जो किसी व्यक्ति द्वारा किसी देश की नागरिकता छोड़ने या टैक्स रेजीडेंसी समाप्त करने पर वसूला जाता है। अमेरिका इस मामले में सख्त है। वहां यदि कोई करोड़पति देश छोड़ता है, तो उसे अपने ग्लोबल असेट्स पर टैक्स देना होता है।

भारत में फिलहाल ऐसा कोई टैक्स नहीं है, जिससे यह loophole खुला रह जाता है। नीलेश शाह के अनुसार, इस स्थिति का फायदा उठाकर कई लोग भारत की नागरिकता तो नहीं छोड़ते लेकिन टैक्स रेजीडेंसी से बाहर हो जाते हैं।

इससे भारत को क्या नुकसान हो रहा है?

  1. टैक्स रेवेन्यू में कमी: अमीर लोग विदेश जाकर अपनी आय को भारत से बाहर रखते हैं, जिससे सरकार को करोड़ों रुपये के टैक्स का नुकसान होता है।
  2. इनकम इनइक्वलिटी: मध्यम वर्ग टैक्स देता है जबकि सबसे ज्यादा कमाने वाले लोग टैक्स से बच निकलते हैं।
  3. ब्रेन और वेल्थ ड्रेन: जब सक्षम और धनी लोग भारत से बाहर बसते हैं, तो उनकी पूंजी और प्रतिभा देश को नहीं मिलती।

क्या हो सकता है समाधान?

नीलेश शाह जैसे विशेषज्ञों के अनुसार, भारत को अब ऐसे नियमों की ज़रूरत है जिससे टैक्स से बचने के रास्ते बंद हों:

  1. एग्जिट टैक्स लागू करना: जो लोग टैक्स रेजीडेंसी छोड़ते हैं, उनकी संपत्ति पर एक बार का टैक्स लिया जा सकता है।
  2. डिजिटल ट्रैकिंग: यह देखा जा सकता है कि व्यक्ति वास्तव में किस देश में रह रहा है। अब तो डिजिटल पेमेंट, लोकेशन ट्रैकिंग जैसे कई माध्यम मौजूद हैं।
  3. NRI टैक्स नियमों में सख्ती: सरकार यह निर्धारित कर सकती है कि NRI टैक्स छूट पाने के लिए व्यक्ति को केवल विदेश में रहना नहीं, बल्कि वहां सक्रिय रूप से काम या व्यापार करना चाहिए।
  4. इंसेंटिव बेस्ड टैक्स सिस्टम: टैक्स दरों को कम करने और टैक्स देने वालों को पुरस्कार देने जैसी नीतियां अपनाकर लोग खुद-ब-खुद टैक्स देने को तैयार हो सकते हैं।

निष्कर्ष

नीलेश शाह ने जो मुद्दा उठाया है, वह भारत की टैक्स प्रणाली में एक बड़े सुधार की आवश्यकता को उजागर करता है। जब तक टैक्स नियमों में पारदर्शिता और सख्ती नहीं लाई जाती, तब तक अमीर लोग 183 दिन विदेशों में बिताकर टैक्स बचाते रहेंगे। इससे केवल सरकार को ही नहीं, आम जनता को भी नुकसान होता है, जो ईमानदारी से टैक्स देती है।

अब समय आ गया है कि भारत भी अमेरिका जैसे देशों की तरह ‘एग्जिट टैक्स’ और सख्त टैक्स रेजीडेंसी नियमों की दिशा में कदम उठाए, ताकि टैक्स न्याय और आर्थिक समानता को सुनिश्चित किया जा सके।

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