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सुप्रीम कोर्ट ने POCSO मामले में आरोपी को बरी किया: पीड़िता की भावनाओं और कानूनी जटिलताओं के बीच ऐतिहासिक फैसला

  • May 24, 2025
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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) एक्ट के तहत दोषी ठहराए गए एक युवक को बरी कर एक ऐतिहासिक और विचारणीय

सुप्रीम कोर्ट ने POCSO मामले में आरोपी को बरी किया: पीड़िता की भावनाओं और कानूनी जटिलताओं के बीच ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) एक्ट के तहत दोषी ठहराए गए एक युवक को बरी कर एक ऐतिहासिक और विचारणीय फैसला सुनाया। इस फैसले में कोर्ट ने माना कि भले ही कानूनी तौर पर जो घटना घटी, वह अपराध की श्रेणी में आती है, लेकिन पीड़िता ने कभी इसे अपराध के रूप में स्वीकार नहीं किया। यह निर्णय भारतीय न्यायिक प्रणाली और सामाजिक ढांचे दोनों के लिए आंखें खोलने वाला है।

घटना की पृष्ठभूमि

यह मामला पश्चिम बंगाल से संबंधित है, जहां एक युवक पर नाबालिग लड़की के साथ यौन संबंध बनाने का आरोप था। निचली अदालत ने आरोपी को दोषी करार देते हुए 20 साल की सजा सुनाई थी। बाद में 2023 में कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया और आरोपी को बरी कर दिया। हालांकि, हाईकोर्ट की टिप्पणियों में कुछ विवादास्पद बातें शामिल थीं—जिनमें नाबालिग लड़कियों की यौन इच्छाओं और नैतिकता पर सवाल उठाए गए।

POCSO

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

हाईकोर्ट की टिप्पणियों पर उठे विवाद के बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए इस मामले को फिर से खोला। 20 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और आरोपी को फिर से दोषी करार दिया। लेकिन इसके बावजूद कोर्ट ने तत्काल सजा नहीं सुनाई।

सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता की वर्तमान स्थिति और उसकी मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक दशा को समझने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्देश दिया। इस समिति में NIMHANS और TISS जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के विशेषज्ञ और एक बाल कल्याण अधिकारी शामिल थे।

समिति की रिपोर्ट और उसकी अहमियत

समिति की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया कि घटना ने पीड़िता को कानूनी तौर पर तो आहत नहीं किया, लेकिन उसके बाद की कानूनी प्रक्रिया, सामाजिक बहिष्कार और परिवार का समर्थन न मिलना उसके लिए कहीं अधिक पीड़ादायक रहा। रिपोर्ट में कहा गया कि पीड़िता ने कभी भी उस कृत्य को अपराध के रूप में नहीं देखा, बल्कि वह अब आरोपी की पत्नी है और उनके एक बच्चा भी है।

रिपोर्ट ने यह भी बताया कि पीड़िता अब अपने पति को सजा से बचाने के लिए भावनात्मक रूप से प्रतिबद्ध है और अपने परिवार की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: अनुच्छेद 142 का प्रयोग

इन तथ्यों और रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विशेष अधिकार का प्रयोग करते हुए आरोपी को सजा न देने का फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता को समाज, कानूनी व्यवस्था और उसके परिवार ने विफल किया, जिससे वह सही निर्णय लेने की स्थिति में कभी नहीं आ सकी।

कोर्ट ने यह भी कहा कि पीड़िता को पहले चरण में कोई सुरक्षित और सूचित विकल्प नहीं मिला। उसके निर्णय पर समाज ने सवाल उठाए, कानूनी प्रक्रिया ने उसे और अधिक परेशान किया और अंततः वह उस स्थिति में पहुंची जहां वह अब केवल अपने परिवार को बचाना चाहती है।

राज्य सरकार और मंत्रालय को निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को कई निर्देश जारी किए हैं। इनमें सुझावों के आधार पर भविष्य में अन्य आदेश पारित करने की बात भी शामिल है, ताकि ऐसे मामलों में पीड़िता की मानसिक और सामाजिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए अधिक न्यायपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जा सके।

निष्कर्ष

इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि केवल कानून के शब्दों के आधार पर न्याय करना पर्याप्त नहीं है। न्याय की परिभाषा में मानवीय दृष्टिकोण, पीड़िता की भावनाएं, सामाजिक परिस्थिति और कानूनी प्रक्रिया का प्रभाव भी शामिल होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल कानून की व्याख्या में एक नई दिशा प्रदान करता है, बल्कि यह समाज को भी यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम वास्तव में पीड़िता की मदद कर रहे हैं या उसे और अधिक पीड़ा दे रहे हैं।

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