देश में डिजिटल माध्यमों की पहुँच जितनी तेज़ी से बढ़ी है, उतनी ही तेजी से इस पर मौजूद सामग्री की गुणवत्ता और दिशा को लेकर चिंता भी बढ़ी है। खासकर सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर फैल रही अश्लील और आपत्तिजनक सामग्री पर अब सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख दिखाया है। कोर्ट ने न सिर्फ इस विषय पर अपनी चिंता व्यक्त की, बल्कि केंद्र सरकार से जवाब भी तलब किया है। सरकार ने आश्वासन दिया है कि वह इस गंभीर मसले पर ठोस कदम उठाने की प्रक्रिया में है।
मोबाइल हाथ में, कंट्रोल गायब – कोर्ट की चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आजकल छोटे-छोटे बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन है और वे बड़ी ही आसानी से सोशल मीडिया या ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर मौजूद किसी भी प्रकार की सामग्री तक पहुंच सकते हैं। यह न सिर्फ उनके मानसिक विकास के लिए हानिकारक है बल्कि समाज में गलत दिशा का प्रचार भी करता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अश्लील कंटेंट की कोई सीमा नहीं रही और इसे रोकने के लिए कानूनी ढांचा कमजोर साबित हो रहा है।
पांच याचिकाकर्ताओं ने उठाई आवाज
इस मामले में पूर्व सूचना आयुक्त उदय माहुरकर सहित पांच याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी। उन्होंने कहा कि भारत में मौजूद कानूनी व्यवस्था ओटीटी और सोशल मीडिया पर परोसी जा रही अश्लील सामग्री को नियंत्रित करने में पूरी तरह विफल रही है। उन्होंने बताया कि उन्होंने नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, उल्लू डिजिटल, आल्ट बालाजी, मेटा (फेसबुक-इंस्टाग्राम), एक्स (पूर्व ट्विटर), गूगल, एप्पल और मुबी जैसे प्लेटफॉर्म्स को इस बारे में लिखित शिकायतें भेजीं। लेकिन इन कंपनियों ने अपने जवाब में कहा कि वे किसी भी भारतीय कानून का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं।
चाइल्ड पोर्न तक मौजूद, फिर भी कार्रवाई नहीं
याचिकाकर्ताओं का दावा है कि इन प्लेटफॉर्म्स पर सॉफ्ट पोर्न, पोर्नोग्राफिक कंटेंट और यहां तक कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी तक की सामग्री मौजूद है। यह साफतौर पर भारतीय दंड संहिता (BNS), सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) और पॉक्सो एक्ट जैसे गंभीर कानूनों का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि इन प्लेटफॉर्म्स पर यह सब कुछ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर खुलेआम परोसा जा रहा है, जो महिलाओं और बच्चों के प्रति यौन अपराधों को बढ़ावा देता है।
सरकार और आयोगों को भी भेजा गया ज्ञापन
याचिकाकर्ताओं ने केंद्र सरकार के साथ-साथ राष्ट्रीय महिला आयोग और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को भी ज्ञापन भेजा है। उनका कहना है कि डिजिटल माध्यमों पर परोसी जा रही आपत्तिजनक सामग्री का सीधा असर देश की सामाजिक संरचना पर पड़ रहा है। बच्चों में मानसिक विकृति और युवाओं में अपराध की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने जताई सहमति, लेकिन कहा– यह सरकार का काम है
जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की दो जजों की बेंच ने याचिकाकर्ताओं की बातों से सहमति जताई। कोर्ट ने माना कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर अश्लीलता एक गंभीर सामाजिक चुनौती बन चुकी है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इसका समाधान निकालना और नीति बनाना सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और सभी निजी पक्षों को नोटिस जारी करते हुए जवाब दाखिल करने को कहा है।
सरकार ने कहा– सोच-विचार जारी है, जल्द उठाएंगे कदम
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। उन्होंने कोर्ट को बताया कि यह मामला केवल अश्लीलता तक सीमित नहीं है, बल्कि कई बार प्लेटफॉर्म्स पर उससे भी विकृत और शर्मनाक कंटेंट देखने को मिलता है। तुषार मेहता ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार इस विषय पर गंभीरता से विचार कर रही है और जल्द ही प्रभावी कदम उठाएगी। उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह केवल बच्चों के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के सभी वर्गों के लिए चिंताजनक है।
जिन कंपनियों को नोटिस मिला
इस याचिका में जिन डिजिटल कंपनियों को पक्ष बनाया गया है, उनमें सोशल मीडिया और ओटीटी के बड़े नाम शामिल हैं:
- एक्स (पूर्व ट्विटर)
- मेटा (फेसबुक व इंस्टाग्राम)
- नेटफ्लिक्स
- अमेज़न प्राइम वीडियो
- आल्ट बालाजी
- उल्लू डिजिटल
- मुबी
- गूगल
- एप्पल
इन सभी को सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा है कि उन्होंने इस तरह की सामग्री को कैसे और क्यों प्रसारित किया, और वे किस कानून के अंतर्गत खुद को निर्दोष मानते हैं।
आगे क्या हो सकता है?
अब जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सुनवाई शुरू कर दी है, तो उम्मीद की जा रही है कि केंद्र सरकार इस दिशा में नई गाइडलाइंस या डिजिटल कंटेंट को रेगुलेट करने वाला कड़ा कानून ला सकती है। यह फैसला डिजिटल स्पेस को साफ-सुथरा और बच्चों के लिए सुरक्षित बनाने में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
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