प्रोफेसर महमूदाबाद की गिरफ्तारी पर सियासी तूफान: अभिव्यक्ति की आज़ादी बनाम सत्ता का दमन
May 19, 2025
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देश में एक बार फिर अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर बहस तेज़ हो गई है। मशहूर इतिहासकार और अशोका यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रोफेसर अली
देश में एक बार फिर अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर बहस तेज़ हो गई है। मशहूर इतिहासकार और अशोका यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी ने राजनीति को गरमा दिया है। हरियाणा पुलिस द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर सोशल मीडिया पर की गई पोस्ट को लेकर उनके खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की गईं और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। कांग्रेस ने इसे सीधे-सीधे लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया है।
कांग्रेस के मीडिया और प्रचार विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने केंद्र की भाजपा सरकार पर तीखा हमला बोला और कहा कि एक ‘विचारशील पोस्ट’ और “एक खास नाम” की वजह से एक शिक्षाविद् को जेल भेजा गया है, जबकि भाजपा के मंत्री और उपमुख्यमंत्री सशस्त्र बलों को अपमानित करने के बावजूद आज़ाद घूम रहे हैं।
क्या है पूरा मामला?
प्रोफेसर महमूदाबाद ने हाल ही में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर एक विस्तृत पोस्ट X (पूर्व ट्विटर) पर साझा किया था। इस पोस्ट में उन्होंने कथित रूप से हिंसा की आलोचना की और सांप्रदायिक राजनीति के विरुद्ध अपने विचार रखे। लेकिन भाजपा समर्थकों और कुछ संगठन इसे देशविरोधी मानते हुए उनके खिलाफ शिकायत लेकर पहुंचे और दो एफआईआर दर्ज की गईं। रविवार को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
कांग्रेस का कहना है कि यह गिरफ्तारी इस बात का प्रतीक है कि मौजूदा सरकार असहमति की आवाज़ों से डरती है और बुद्धिजीवियों को चुप कराने के लिए राज्य की मशीनरी का दुरुपयोग कर रही है।
कांग्रेस का तीखा हमला
पवन खेड़ा ने कहा, “उनकी एकमात्र गलती यह है कि उन्होंने यह पोस्ट लिखी और दूसरी गलती उनका नाम है।” उन्होंने सवाल उठाया कि जब भाजपा के नेता खुलेआम सेना का अपमान करते हैं, तब कोई एफआईआर या कार्रवाई क्यों नहीं होती?
खेड़ा ने मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह और राज्य के उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा के बयानों का जिक्र किया, जिसमें देवड़ा ने कहा था कि “सेना पीएम मोदी के चरणों में नतमस्तक है” और विजय शाह ने कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। हालांकि शाह ने माफी मांगी, लेकिन भाजपा ने कोई कार्रवाई नहीं की।
खेड़ा का आरोप है कि यह सब नरेंद्र मोदी सरकार के दोहरे मापदंड को दर्शाता है, जहां सत्ता के खिलाफ बोलने वालों को निशाना बनाया जाता है, जबकि सत्ताधारी पार्टी के नेताओं को छूट मिलती है।
अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सवाल
यह मामला सिर्फ एक गिरफ्तारी भर नहीं है, बल्कि व्यापक रूप से अभिव्यक्ति की आज़ादी और बौद्धिक स्वतंत्रता पर चोट मानी जा रही है। इतिहासकार, प्रोफेसर और शिक्षाविद लंबे समय से लोकतंत्र में अपनी आलोचनात्मक भूमिका निभाते आए हैं। लेकिन मौजूदा परिदृश्य में असहमति को “राष्ट्रद्रोह” या “हिंसा को उकसाने” जैसे आरोपों से दबाने की कोशिश की जा रही है।
पवन खेड़ा ने लिखा, “एक इतिहासकार को हिंसा के खिलाफ बोलने पर जेल भेजा गया। क्या यही नया भारत है? क्या अब सच बोलना अपराध बन गया है?” उन्होंने यह भी जोड़ा कि “यह किसी एक व्यक्ति की कहानी नहीं है, बल्कि यह बुद्धिजीवियों की चुप्पी खरीदने की व्यापक नीति है।”
निष्कर्ष: लोकतंत्र के लिए चेतावनी
प्रोफेसर महमूदाबाद की गिरफ्तारी और भाजपा नेताओं की बयानबाज़ी पर कार्रवाई न होना यह दर्शाता है कि सत्ता में बैठे लोगों के लिए एक अलग कानून और आम जनता या असहमति जताने वालों के लिए दूसरा। यह स्थिति केवल व्यक्ति विशेष की गिरफ्तारी नहीं, बल्कि लोकतंत्र के मूल्यों और स्वतंत्र विचारधारा पर हमला है।
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, जहां विचारों की विविधता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान द्वारा संरक्षित है, ऐसे घटनाक्रम चिंता का विषय हैं। यह आवश्यक है कि सरकारें आलोचना को दबाने की बजाय संवाद को प्राथमिकता दें।