IMF की मदद पर टिकी पाकिस्तान की किस्मत – लोन नहीं मिला तो भूख और कंगाली का संकट
- May 9, 2025
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आज का दिन पाकिस्तान के लिए निर्णायक साबित हो सकता है, क्योंकि इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) आज 9 मई 2025 को पाकिस्तान को दिए जाने वाले कर्ज (लोन)
आज का दिन पाकिस्तान के लिए निर्णायक साबित हो सकता है, क्योंकि इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) आज 9 मई 2025 को पाकिस्तान को दिए जाने वाले कर्ज (लोन)
आज का दिन पाकिस्तान के लिए निर्णायक साबित हो सकता है, क्योंकि इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) आज 9 मई 2025 को पाकिस्तान को दिए जाने वाले कर्ज (लोन) की समीक्षा करने जा रहा है। इस बैठक को लेकर न केवल पाकिस्तान बल्कि पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं, क्योंकि यह फैसला उस देश की आर्थिक स्थिति को सीधा प्रभावित करेगा, जो पहले से ही भारी कर्ज़, गिरती अर्थव्यवस्था और सैन्य तनावों के दौर से गुजर रहा है। ऐसे समय में भारत ने भी अपनी रणनीति स्पष्ट करते हुए इस अहम बैठक में IMF के सामने सख्त रुख अपनाने का संकेत दे दिया है।
भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में सीमा पर सैन्य तनाव काफी बढ़ गया है। जम्मू-कश्मीर, पंजाब और राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों में पाकिस्तान द्वारा की गई सैन्य कार्रवाइयों का भारतीय सेना ने डटकर जवाब दिया है। ऐसे समय में जब पाकिस्तान की आंतरिक आर्थिक हालत नाजुक बनी हुई है, उसे IMF से राहत की उम्मीद थी, लेकिन अब भारत इस मामले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चुनौती देने की दिशा में बढ़ गया है।
आज होने वाली इस बैठक में IMF के कार्यकारी बोर्ड के सदस्य पाकिस्तान को दिए जाने वाले 1.3 बिलियन डॉलर के कर्ज की समीक्षा करेंगे। यह कर्ज ‘क्लाइमेट रेजिलिएंस लोन प्रोग्राम’ के तहत प्रस्तावित है। इसके साथ ही पाकिस्तान को दी जा रही 7 बिलियन डॉलर की ‘एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (EFF)’ की समीक्षा भी एजेंडे में शामिल है। इस बेलआउट प्रोग्राम की पहली किश्त पहले ही पाकिस्तान को मिल चुकी है, जबकि बाकी 6 बिलियन डॉलर की रकम अगले 37 महीनों में मिलने की उम्मीद जताई गई है।
भारत सरकार इस मामले को गंभीरता से लेते हुए IMF की बैठक में अपने कार्यकारी निदेशक के माध्यम से पाकिस्तान के खिलाफ अपना पक्ष रखने जा रही है। विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा, “हमारे पास IMF में एक कार्यकारी निदेशक मौजूद हैं। शुक्रवार को IMF बोर्ड की बैठक है और मुझे पूरा भरोसा है कि भारत का पक्ष वहां मजबूती से रखा जाएगा।”
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो वर्ल्ड बैंक के कार्यकारी निदेशक भी इस बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे और पाकिस्तान को दिए जा रहे फंड पर सवाल उठाएंगे। भारत का तर्क है कि पाकिस्तान लगातार आतंकवाद का समर्थन करता रहा है और उसकी अर्थव्यवस्था में दी जाने वाली सहायता का दुरुपयोग हो सकता है।
भारत ने IMF के सामने यह भी स्पष्ट किया है कि उसे अपना फैसला तथ्यों और ऐतिहासिक अनुभवों के आधार पर करना चाहिए। विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री ने कहा, “बोर्ड के सदस्यों को गहराई से आत्ममंथन करके यह सोचना होगा कि क्या ऐसे देश को बार-बार आर्थिक मदद दी जानी चाहिए, जो बार-बार असफल होता रहा है। पिछले 30 वर्षों में पाकिस्तान को IMF की ओर से कई बेलआउट पैकेज दिए गए, लेकिन उनमें से बहुत कम ही अपने उद्देश्यों को सफलतापूर्वक पूरा कर पाए।”
उन्होंने आगे कहा कि IMF को यह समझने की जरूरत है कि पाकिस्तान की सहायता का सही उपयोग नहीं हुआ है और यह आर्थिक सहायता अंततः क्षेत्रीय अस्थिरता को ही जन्म देती है। भारत लगातार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह कहता रहा है कि पाकिस्तान को दी जाने वाली किसी भी वित्तीय सहायता की कड़ी निगरानी की जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि इसका उपयोग केवल जनहित और विकास कार्यों में हो, न कि सैन्य या आतंकवादी गतिविधियों के लिए।
पाकिस्तान अब तक IMF के दरवाज़े पर 24 बार मदद मांगने जा चुका है। हर बार उसे अस्थायी राहत तो मिली है, लेकिन देश की नीतिगत अस्थिरता और आतंरिक कुप्रबंधन ने उसे दोबारा उसी स्थिति में ला खड़ा किया है। IMF का बेलआउट प्रोग्राम एक ऐसा तंत्र है, जिसके तहत किसी आर्थिक रूप से डूबते देश को अस्थायी राहत देने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है, ताकि वह अपने कर्जों को चुका सके और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित कर सके। लेकिन पाकिस्तान का रिकॉर्ड बताता है कि उसने कभी भी इस तरह की मदद से स्थायीत्व प्राप्त नहीं किया।
भारत की ओर से यह भी मांग उठाई गई है कि IMF और अन्य अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं पाकिस्तान को दी जा रही फंडिंग पर पुनर्विचार करें। भारत ने पाकिस्तान को ‘ग्रे लिस्ट’ में डालने का सुझाव भी दिया है, ताकि उसके ऊपर सख्त निगरानी रखी जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि दी गई आर्थिक मदद का कोई भी हिस्सा आतंकी संगठनों तक न पहुंचे।
भारत का यह रुख केवल सुरक्षा की दृष्टि से नहीं, बल्कि वैश्विक वित्तीय अनुशासन और जवाबदेही के दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण है। IMF जैसी संस्थाएं यदि बिना शर्त और निगरानी के सहायता देती हैं, तो यह न केवल अन्य जिम्मेदार देशों के साथ अन्याय है, बल्कि वैश्विक आर्थिक अनुशासन को भी कमजोर करता है। भारत का यह स्पष्ट मानना है कि अब समय आ गया है जब IMF को अपने फैसलों में केवल आर्थिक स्थिति ही नहीं, बल्कि देश की नीतिगत स्थिरता, आतंकी गतिविधियों से जुड़ा इतिहास और भविष्य की योजना को भी गंभीरता से देखना चाहिए।
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