पाकिस्तान के अशांत प्रांत बलूचिस्तान में शुक्रवार, 25 अप्रैल को एक बड़ा आतंकी हमला हुआ है, जिसमें पाकिस्तानी सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा। इस हमले की जिम्मेदारी बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की मांग करने वाले उग्रवादी संगठन बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने ली है। जानकारी के अनुसार, यह हमला क्वेटा के पास मार्गट नामक इलाके में हुआ, जहां सेना के एक काफिले को रिमोट-कंट्रोल इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED) से निशाना बनाया गया। विस्फोट इतना जबरदस्त था कि सेना की गाड़ी पूरी तरह से नष्ट हो गई और उसमें सवार सभी 10 जवान मौके पर ही मारे गए।
बलूच लिबरेशन आर्मी ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए दावा किया है कि यह कार्रवाई पाकिस्तानी सेना के “कब्जे” के खिलाफ उनके संघर्ष का हिस्सा है। BLA के प्रवक्ता जियांद बलोच ने एक बयान में कहा कि उनके संगठन के लड़ाकों ने रिमोट IED की मदद से सेना की गाड़ी को उड़ा दिया, जिससे सेना को बड़ा नुकसान हुआ। उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि जब तक बलूचिस्तान को आजादी नहीं मिलती, ऐसे हमले जारी रहेंगे। उनके अनुसार, इस हमले में मारे गए सैनिकों में सूबेदार शहज़ाद अमीन, नायब सूबेदार अब्बास, सिपाही खलील, सिपाही जाहिद और सिपाही खुर्रम सलीम शामिल हैं।
कई वर्षों से जारी है BLA का संघर्ष
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है जो प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है, लेकिन लंबे समय से यह क्षेत्र राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा की चपेट में रहा है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि पाकिस्तान सरकार इस क्षेत्र के संसाधनों का शोषण कर रही है और उन्हें उनके अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है। बलूच लिबरेशन आर्मी इसी असंतोष की उपज है। BLA की स्थापना 1970 के दशक में हुई थी, हालांकि कुछ समय बाद यह संगठन निष्क्रिय हो गया था। लेकिन वर्ष 2000 में इसने एक बार फिर से खुद को सक्रिय किया और तब से यह लगातार पाकिस्तानी सेना व सरकार के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष में लगा हुआ है।
बलूचिस्तान में रहने वाले कई लोग मानते हैं कि भारत-पाकिस्तान के विभाजन के समय उन्हें एक स्वतंत्र देश बनना चाहिए था, लेकिन उन्हें जबरन पाकिस्तान में मिला दिया गया। इसी के खिलाफ BLA जैसे संगठनों ने हथियार उठा लिए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बलूच लिबरेशन आर्मी के पास करीब 6000 से ज्यादा लड़ाके हैं, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल हैं। इनका प्रशिक्षण और रणनीति पाकिस्तान की सेना को चुनौती देने के लिहाज से काफी मजबूत मानी जाती है।
पाकिस्तानी सेना ने नहीं दी कोई प्रतिक्रिया
इस हमले को लेकर अब तक पाकिस्तानी सेना की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। यह चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है, खासकर तब जब यह हमला इतने बड़े पैमाने पर हुआ और सेना को भारी नुकसान झेलना पड़ा। विश्लेषकों का मानना है कि सेना इस मुद्दे को लेकर रणनीतिक मौन अपना रही है ताकि विद्रोहियों को ज्यादा प्रचार न मिले। हालांकि बलूचिस्तान में आए दिन इस तरह की घटनाएं सामने आती रहती हैं, लेकिन इस बार हमले की तीव्रता और असर ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया का भी ध्यान खींचा है।
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे की तीखी प्रतिक्रिया
बलूच लिबरेशन आर्मी द्वारा किए गए इस हमले पर भारत की ओर से भी प्रतिक्रिया देखने को मिली है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसद डॉ. निशिकांत दुबे ने इस हमले को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट साझा किया है। उन्होंने लिखा,
“बलूची ने पाकिस्तान सेना को ठिकाने लगाया। पाकिस्तान अब हमारे टुकड़े-टुच्चे गैंग की तरह टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा, 56 इंच।”
उनके इस बयान को पाकिस्तान पर तीखा हमला माना जा रहा है, जिसमें यह संकेत भी दिया गया है कि बलूचिस्तान में अलगाववाद की आग अब और भड़क सकती है।
बलूचिस्तान में बढ़ती अस्थिरता
बलूचिस्तान में पिछले कुछ वर्षों में हिंसा की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं। यहां BLA के अलावा कई अन्य विद्रोही संगठन भी सक्रिय हैं जो स्वतंत्र बलूचिस्तान की मांग कर रहे हैं। इन संगठनों का कहना है कि पाकिस्तान सरकार बलूच लोगों के साथ अन्याय कर रही है और उनके प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जा रहा है। कई मानवाधिकार संगठनों ने भी बलूचिस्तान में कथित सैन्य दमन और मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है।
पाकिस्तान सरकार का आरोप है कि इन विद्रोही संगठनों को विदेशी शक्तियों, खासकर भारत से समर्थन मिल रहा है। हालांकि भारत इस बात का खंडन करता रहा है और इसे पाकिस्तान की आंतरिक विफलता का परिणाम बताता है।
निष्कर्ष
क्वेटा के पास हुए इस भीषण हमले ने एक बार फिर से बलूचिस्तान में जारी विद्रोह और पाकिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जिस प्रकार से BLA ने खुलेआम इस हमले की जिम्मेदारी ली है और भविष्य में और हमलों की चेतावनी दी है, उससे यह साफ है कि बलूच विद्रोह अब और उग्र रूप ले सकता है। पाकिस्तान के लिए यह एक गंभीर सुरक्षा चुनौती है, जिसका समाधान केवल सैन्य कार्रवाई से नहीं, बल्कि राजनीतिक संवाद और स्थानीय लोगों की वास्तविक समस्याओं को समझने से ही संभव है।
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