Pakistan on the verge of bankruptcy: हर नागरिक पर ₹1.45 लाख का कर्ज, कैसे लड़ेगा भारत से जंग?
- April 26, 2025
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पाकिस्तान की आर्थिक हालत दिन पर दिन खराब होती जा रही है। एक तरफ देश आतंकवाद को पालने में जुटा है, वहीं दूसरी तरफ उसकी खुद की अर्थव्यवस्था
पाकिस्तान की आर्थिक हालत दिन पर दिन खराब होती जा रही है। एक तरफ देश आतंकवाद को पालने में जुटा है, वहीं दूसरी तरफ उसकी खुद की अर्थव्यवस्था
पाकिस्तान की आर्थिक हालत दिन पर दिन खराब होती जा रही है। एक तरफ देश आतंकवाद को पालने में जुटा है, वहीं दूसरी तरफ उसकी खुद की अर्थव्यवस्था गहरे संकट में डूबी हुई है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, पाकिस्तान के हर नागरिक पर औसतन ₹1.45 लाख का कर्ज चढ़ चुका है। ऐसे में सवाल उठता है कि जो देश अपने लोगों को बुनियादी सुविधाएं देने में विफल हो रहा है, वह भारत जैसे ताकतवर देश से जंग लड़ने की कल्पना भी कैसे कर सकता है?
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस हमले में 28 निर्दोष लोगों की हत्या और 20 से अधिक के घायल होने की खबर ने जनता में गहरा रोष भर दिया है। सरकार ने भी इस हमले के बाद कई ठोस कदम उठाए हैं। इस हमले के तार भी पाकिस्तान पोषित आतंकी संगठनों से जुड़ते नजर आए हैं। ऐसे में पाकिस्तान की दोहरी भूमिका — एक तरफ आतंकवाद को समर्थन और दूसरी तरफ खुद आर्थिक तबाही — अब साफ तौर पर दुनिया के सामने आ गई है।
पाकिस्तान इस वक्त कंगाली की दहलीज पर खड़ा है। सीईआईसी के आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2024 तक पाकिस्तान का एक्सटर्नल लोन 131.1 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था। यह कर्ज इतना भारी है कि देश के प्रत्येक नागरिक पर औसतन ₹1.45 लाख का बोझ है।
पाकिस्तान को अब ब्याज चुकाने के लिए भी पैसे नहीं बचे हैं। देश लगातार अलग-अलग देशों के दरवाजे खटखटा रहा है, ताकि कर्ज चुकाने की अवधि बढ़ाई जा सके। हालत इतनी बदतर हो चुकी है कि अब चीन को छोड़कर कोई भी बड़ा देश पाकिस्तान को नया कर्ज देने के लिए तैयार नहीं है।
सितंबर 2024 में पाकिस्तान के वित्त राज्य मंत्री अली परवेज मलिक ने खुलासा किया था कि देश को अगले चार वर्षों में लगभग 100 बिलियन डॉलर का एक्सटर्नल लोन चुकाना है। यह कार्य पाकिस्तान के लिए लगभग असंभव जैसा बन गया है। लगातार घटते विदेशी मुद्रा भंडार, बढ़ती महंगाई, और राजनीतिक अस्थिरता ने इस संकट को और गहरा कर दिया है।
वहीं, पाकिस्तान का निर्यात भी उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ रहा है, जिससे विदेशी मुद्रा की आमद में भी भारी कमी आई है। ऊपर से महंगी ऊर्जा आयात करने के कारण पाकिस्तान का व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है।
पाकिस्तान की सरकार आतंकवाद को समर्थन देने में जो संसाधन खर्च कर रही है, वह उसकी अर्थव्यवस्था पर और भी बड़ा बोझ बनता जा रहा है। आतंकवाद को पालने के लिए पैसा तो है, लेकिन नागरिकों के लिए रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है।
मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि पाकिस्तान की जनता महंगाई से कराह रही है। वहां रोजमर्रा की चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। पेट्रोल, गैस, आटा, दाल जैसी आवश्यक वस्तुएं आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गई हैं। बिजली संकट और बेरोजगारी ने लोगों की जिंदगी को और भी कठिन बना दिया है।
जिस देश की आधी से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे जी रही हो और जो खुद कर्ज में डूबा हो, वह भारत जैसे मजबूत और सशक्त देश से युद्ध छेड़ने की सोच भी कैसे सकता है? भारत न केवल सैन्य ताकत में पाकिस्तान से कई गुना आगे है, बल्कि उसकी आर्थिक, राजनीतिक और वैश्विक स्थिति भी कहीं अधिक मजबूत है।
भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, जबकि पाकिस्तान विदेशी मदद पर निर्भर एक टूटती हुई अर्थव्यवस्था का उदाहरण बन चुका है। भारत अपने दम पर रक्षा उपकरण तैयार कर रहा है, जबकि पाकिस्तान को सैन्य खर्च के लिए भी उधारी पर निर्भर रहना पड़ रहा है।
पाकिस्तान की मौजूदा हालत देखकर साफ कहा जा सकता है कि वह अपने ही घर को संभालने में नाकाम है। आतंकवाद को बढ़ावा देकर वह अपनी जनता के भविष्य को और भी अंधकारमय बना रहा है। कर्ज के इस गहरे दलदल से निकलना पाकिस्तान के लिए आसान नहीं होगा।
भारत को इससे सतर्क रहना होगा और अपनी सुरक्षा को और भी मजबूत बनाते हुए दुनिया को पाकिस्तान की सच्चाई से लगातार अवगत कराते रहना चाहिए। आने वाले समय में पाकिस्तान को अपनी नीतियों पर गहराई से विचार करना ही पड़ेगा, वरना आर्थिक पतन और वैश्विक अलगाव उसका अंजाम तय कर देंगे।