Owaisi attacks PM Modi: गरीब हिंदू-मुसलमानों के लिए पिछले 11 साल में क्या किया?
- April 15, 2025
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया बयान ने एक बार फिर देश की सियासत को गर्मा दिया है। हरियाणा में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया बयान ने एक बार फिर देश की सियासत को गर्मा दिया है। हरियाणा में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया बयान ने एक बार फिर देश की सियासत को गर्मा दिया है। हरियाणा में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और उसके संभावित उपयोग को लेकर टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि अगर वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का सही और ईमानदारी से उपयोग होता, तो मुस्लिम युवाओं को ‘पंचर’ बनाकर जीवन नहीं बिताना पड़ता। इस बयान पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने तीखा पलटवार किया है।
ओवैसी ने पूछा, “पिछले 11 सालों में प्रधानमंत्री मोदी ने गरीब भारतीयों, चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान, उनके लिए क्या किया?” इस बयान के पीछे न केवल राजनीतिक तंज है, बल्कि यह भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता, शिक्षा की स्थिति, बेरोजगारी और अल्पसंख्यकों की भूमिका को लेकर एक गंभीर बहस की मांग भी करता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि देश में वक्फ बोर्ड के पास लाखों हेक्टेयर जमीन है, जिसका अगर सही ढंग से उपयोग होता, तो यह समाज के कमजोर तबके – खासकर मुसलमानों, महिलाओं और बच्चों – के लिए वरदान साबित हो सकता था।
उन्होंने यह भी कहा कि “अगर वक्फ संपत्तियों का सदुपयोग होता, तो मुस्लिम युवाओं को पंचर जोड़ने का काम न करना पड़ता।” यह बयान न केवल मुस्लिम युवाओं की स्थिति पर सवाल उठाता है, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से वक्फ व्यवस्था की विफलता पर भी सवाल करता है।
ओवैसी ने इस बयान को पूरी तरह भ्रामक और अपमानजनक बताया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार को 11 साल हो चुके हैं, और इन वर्षों में क्या कोई ठोस नीति बनाई गई जिससे गरीबों को, खासकर मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों को आर्थिक या शैक्षणिक लाभ मिला हो?
उन्होंने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि भारत में 33% युवा न तो पढ़ाई कर रहे हैं, न ही काम कर रहे हैं – यानी वे ‘NEET’ श्रेणी (Not in Education, Employment or Training) में आते हैं। यह सिर्फ मुस्लिम समुदाय की समस्या नहीं है, बल्कि पूरे देश के युवाओं की समस्या है।
वक्फ संपत्ति मुसलमानों की धार्मिक और सामाजिक भलाई के लिए होती है। इसके तहत जमीनें, इमारतें और अन्य संपत्तियां आती हैं जिनका उपयोग समुदाय के हित के लिए होना चाहिए। लेकिन ओवैसी का आरोप है कि वक्फ कानून और उसका प्रशासन वर्षों से जानबूझकर कमजोर रखा गया है, ताकि इन संपत्तियों का दुरुपयोग होता रहे।
इसके अलावा, कई रिपोर्टों में यह भी सामने आया है कि वक्फ संपत्तियों पर अवैध कब्जे हैं, भ्रष्टाचार है, और सरकारी संरक्षण में इन संपत्तियों का गलत इस्तेमाल होता रहा है। अगर वक्फ संपत्तियों का सही प्रबंधन हो, तो यह न केवल मुस्लिम समाज बल्कि पूरे देश के लिए फायदेमंद हो सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने जिस ‘पंचर जोड़ने’ वाली टिप्पणी का इस्तेमाल किया, वह एक प्रतीकात्मक उदाहरण था, लेकिन इसका असर बहुत गहरा है। यह न केवल एक वर्ग विशेष को लक्ष्य बनाता है, बल्कि उनके कार्य और रोज़गार को नीचा दिखाने की कोशिश करता है। देश में पंचर जोड़ने वाला या कोई भी मेहनतकश व्यक्ति किसी से कम नहीं होता। मेहनत करने वालों का अपमान करना, चाहे वह किसी धर्म से हों, किसी भी नेता को शोभा नहीं देता।
ओवैसी का कहना बिल्कुल वाजिब है कि असली मुद्दा बेरोजगारी और शिक्षा की कमी है। अगर सरकार ने वास्तव में पिछले वर्षों में शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में सुधार किया होता, तो ना केवल मुस्लिम युवा, बल्कि हर जाति और धर्म का युवा आत्मनिर्भर होता।
राजनीति में अक्सर नेताओं द्वारा ऐसे बयान दिए जाते हैं जो एक विशेष समुदाय को निशाना बनाते हैं, और इससे ध्रुवीकरण होता है। यह बयान भी उसी श्रेणी में रखा जा सकता है। जब चुनाव नजदीक आते हैं, तो सत्ताधारी दलों द्वारा अल्पसंख्यकों पर अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष हमले आम हो जाते हैं।
लेकिन क्या इस तरह के बयानों से देश को कोई फायदा होता है? भारत एक युवा राष्ट्र है और आज देश को रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और तकनीकी विकास की ज़रूरत है। धार्मिक पहचान के नाम पर समाज को बांटना न तो लोकतंत्र के लिए अच्छा है और न ही देश की एकता के लिए।
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSSO) और सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, मुस्लिम समुदाय शिक्षा, रोजगार और सामाजिक विकास के मामले में अब भी पिछड़ा हुआ है। मुसलमानों की औसत शिक्षा दर, औसत आय, सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व, सभी क्षेत्रों में औसत से नीचे है।
अगर सरकार वाकई इस समुदाय को मुख्यधारा में लाना चाहती है, तो उसे व्यावहारिक कदम उठाने होंगे – जैसे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, कौशल विकास केंद्र, अल्पसंख्यक उद्यमियों के लिए फंडिंग, और नौकरियों में अवसर।
प्रधानमंत्री मोदी का बयान और ओवैसी की प्रतिक्रिया, दोनों ने देश को एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया है – क्या हम सही दिशा में बढ़ रहे हैं? क्या वाकई में हम गरीबों के जीवन में सुधार कर रहे हैं या सिर्फ चुनावी मंचों से उन्हें निशाना बना रहे हैं?
भारत को आगे ले जाने के लिए ज़रूरत है कि हम शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और न्याय जैसे मुद्दों पर बात करें। धार्मिक पहचान के आधार पर बयानबाज़ी करना, न केवल देश की एकता को चोट पहुंचाता है, बल्कि इससे गरीब और कमजोर वर्ग और पीछे छूट जाते हैं।
ओवैसी ने एक सीधा सवाल उठाया है – “पिछले 11 साल में गरीब हिंदू-मुसलमानों के लिए क्या किया गया?” यह सवाल केवल सरकार से नहीं, हम सभी से है।