News

सिंधु जल संधि पर उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के बीच छिड़ा वाकयुद्ध: तुलबुल प्रोजेक्ट बना विवाद की जड़

  • May 16, 2025
  • 0

जम्मू-कश्मीर की सियासत में एक बार फिर तीखी जुबानी जंग देखने को मिली है, इस बार वजह बनी है सिंधु जल संधि और उससे जुड़ा तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट।

सिंधु जल संधि पर उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के बीच छिड़ा वाकयुद्ध: तुलबुल प्रोजेक्ट बना विवाद की जड़

जम्मू-कश्मीर की सियासत में एक बार फिर तीखी जुबानी जंग देखने को मिली है, इस बार वजह बनी है सिंधु जल संधि और उससे जुड़ा तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व ट्विटर) पर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती के बीच इस मुद्दे पर जुबानी जंग ने तूल पकड़ लिया है। एक ओर जहां उमर अब्दुल्ला सिंधु जल संधि को जम्मू-कश्मीर के खिलाफ बताते हुए तुलबुल प्रोजेक्ट की बहाली की मांग कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर महबूबा मुफ्ती इसे एक खतरनाक कदम बता रही हैं।

कैसे शुरू हुआ विवाद?

यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने उत्तर कश्मीर की प्रसिद्ध वुलर झील का एक वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किया। वीडियो के साथ उन्होंने लिखा कि अब जबकि भारत ने सिंधु जल संधि को सस्पेंड कर दिया है, तो तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट को फिर से शुरू किया जाना चाहिए। उन्होंने इसे राज्य के लिए फायदे का सौदा बताया।

Abdullah and Mehbooba Mufti

लेकिन उमर अब्दुल्ला की इस मांग को महबूबा मुफ्ती ने अनुचित ठहराया। उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर राजनीतिक फायदा उठाना राज्य और देश के हित में नहीं है। उन्होंने सिंधु जल संधि को भारत-पाकिस्तान के बीच एक शांति समझौता बताया और कहा कि इस समझौते से छेड़छाड़ खतरनाक परिणाम ला सकती है।

उमर अब्दुल्ला का पलटवार

महबूबा मुफ्ती के बयान के बाद उमर अब्दुल्ला ने भी पलटवार करने में देर नहीं लगाई। उन्होंने कहा कि महबूबा मुफ्ती को सिंधु जल संधि के ऐतिहासिक अन्याय की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। उनके अनुसार, इस संधि की वजह से जम्मू-कश्मीर को अपने ही जल संसाधनों पर नियंत्रण नहीं मिल पाया है और यह राज्य के साथ विश्वासघात जैसा है।

उन्होंने आगे लिखा, “सालों से जम्मू-कश्मीर को अपने प्राकृतिक संसाधनों से वंचित रखा गया है। सिंधु जल संधि ने हमारे हक को छीन लिया है। अब जब इस संधि को लेकर केंद्र सरकार ने सख्त रुख अपनाया है, तो हमें भी अपने अधूरे पड़े प्रोजेक्ट्स को पुनर्जीवित करने का अवसर मिलना चाहिए।”

तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट क्या है?

तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट (TNP) एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिसकी शुरुआत 1984 में हुई थी। यह प्रोजेक्ट जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा जिले में स्थित वुलर झील पर बनाया जाना था, जिसका उद्देश्य झेलम नदी में जल प्रवाह को नियंत्रित करना और कश्मीर घाटी में जल परिवहन को बेहतर बनाना था।

लेकिन पाकिस्तान ने इस प्रोजेक्ट पर आपत्ति जताई थी, यह कहते हुए कि यह सिंधु जल संधि का उल्लंघन है। इसके बाद यह प्रोजेक्ट 1987 में रोक दिया गया और तब से अधर में लटका हुआ है।

सिंधु जल संधि पर बहस क्यों?

1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता से सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर हुए थे। इसके तहत भारत ने तीन पूर्वी नदियों – सतलुज, ब्यास और रावी – पर नियंत्रण प्राप्त किया, जबकि तीन पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम और चिनाब – का अधिकतर पानी पाकिस्तान को दिया गया।

कई विशेषज्ञों और नेताओं का मानना है कि इस संधि ने जम्मू-कश्मीर जैसे जलसमृद्ध राज्य के साथ अन्याय किया है क्योंकि वह अपनी ही नदियों के जल का पूर्ण रूप से उपयोग नहीं कर सकता।

Abdullah and Mehbooba Mufti

राजनीतिक निहितार्थ

उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के बीच यह जुबानी जंग सिर्फ एक जल परियोजना तक सीमित नहीं है। यह जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक विचारधाराओं और नीतिगत मतभेदों को भी उजागर करता है। उमर अब्दुल्ला जहां केंद्र के साथ सहयोग करके राज्य को विकास के रास्ते पर ले जाने की बात करते हैं, वहीं महबूबा मुफ्ती अधिक संवेदनशीलता और कूटनीतिक संतुलन की पक्षधर हैं।

क्या कहती है जनता?

इस बहस ने जनता के बीच भी चर्चा को जन्म दे दिया है। कुछ लोग उमर अब्दुल्ला की इस पहल को सकारात्मक कदम मानते हैं जो जम्मू-कश्मीर के हित में है, वहीं कुछ लोगों का मानना है कि ऐसे संवेदनशील मामलों पर सोच-समझकर ही कोई निर्णय लेना चाहिए, क्योंकि इससे भारत-पाकिस्तान के बीच रिश्तों पर असर पड़ सकता है।

निष्कर्ष

सिंधु जल संधि और तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट पर छिड़ा यह विवाद सिर्फ एक तकनीकी या पर्यावरणीय मुद्दा नहीं है, बल्कि यह जम्मू-कश्मीर की आर्थिक, राजनीतिक और भू-राजनीतिक स्थिति से गहराई से जुड़ा हुआ है। उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के बीच इस बहस ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राज्य के जल संसाधनों पर अधिकार को लेकर सियासत अभी और गरमाने वाली है। अब देखना यह होगा कि केंद्र सरकार और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को किस तरह से संभाला जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *