800 साल पुरानी ममी के गाल में मिला रहस्यमयी टैटू: वैज्ञानिकों को हैरान कर रही है 800 साल पुरानी स्याही
May 26, 2025
0
इतिहास और पुरातत्व की दुनिया में आए दिन नई खोजें होती रहती हैं, लेकिन कुछ खोजें ऐसी होती हैं जो वैज्ञानिकों को भी हैरान कर देती हैं। हाल
इतिहास और पुरातत्व की दुनिया में आए दिन नई खोजें होती रहती हैं, लेकिन कुछ खोजें ऐसी होती हैं जो वैज्ञानिकों को भी हैरान कर देती हैं। हाल ही में दक्षिण अमेरिका में मिली एक 800 साल पुरानी महिला की ममी ने भी कुछ ऐसा ही कर दिखाया है। इस ममी के गाल पर बना एक टैटू न केवल साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा है, बल्कि इसकी स्थिति और संरचना आज भी वैसी की वैसी बनी हुई है। वैज्ञानिक इस बात को लेकर चकित हैं कि आखिर 800 साल बाद भी ये टैटू कैसे बरकरार है।
टैटू ने बदला अध्ययन का रुख
यह ममी दक्षिण अमेरिका की एक महिला की बताई जा रही है, जिसकी मृत्यु लगभग 800 साल पहले हुई थी। शरीर को प्राचीन ममीकरण प्रक्रिया द्वारा संरक्षित किया गया था। यह ममी लगभग 100 साल पहले इटली के एक संग्रहालय को दान में दी गई थी। अब ट्यूरिन विश्वविद्यालय के मानवविज्ञानी और पुरातत्वविदों की एक टीम इसका विश्लेषण कर रही थी, तभी उन्होंने महिला के गाल पर काले रंग का एक विशेष डिजाइन देखा।
गाल पर बने इस टैटू की पुष्टि के बाद वैज्ञानिकों का ध्यान ममी के अध्ययन से हटकर उस टैटू की ओर चला गया। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि आखिर वह कौन-सी स्याही थी जो 800 साल बाद भी अपने रंग और डिज़ाइन को बनाए हुए है, जबकि आम तौर पर त्वचा पर बने टैटू समय के साथ मिट जाते हैं — खासकर चेहरे जैसे संवेदनशील हिस्से पर।
कैसे की गई टैटू की पहचान?
टैटू की पहचान करना आसान नहीं था। शुरू में ममी के गाल पर एक कालापन नज़र आया, जिसे पहले मामूली धब्बा समझा गया। लेकिन जब ध्यान से देखा गया तो उसमें एक खास डिजाइन का पैटर्न दिखाई दिया। इसके बाद वैज्ञानिकों ने आधुनिक इमेजिंग तकनीकों का सहारा लिया। इन्फ्रारेड स्कैनिंग, थ्रीडी मैपिंग और उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग तकनीकों की मदद से उस डिज़ाइन की गहराई से जांच की गई।
जांच में यह स्पष्ट हो गया कि वह टैटू ही था — और वह भी एक पारंपरिक शैली में बना हुआ। यह खोज सिर्फ टैटू तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसने उस काल की टैटू संस्कृति, सौंदर्य मान्यताओं और औषधीय ज्ञान को लेकर भी नए सवाल खड़े कर दिए हैं।
टैटू की स्याही बनी रहस्य
सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर 800 साल पहले इस्तेमाल की गई स्याही में ऐसा क्या था, जिसने उसे अब तक टिके रहने दिया। आम तौर पर टैटू बनाने के लिए जो प्राकृतिक स्याही इस्तेमाल होती है — जैसे कोयले की राख, पौधों का रस या खनिज तत्व — वे समय के साथ त्वचा में घुलकर फीके पड़ जाते हैं। पर इस ममी के मामले में ऐसा नहीं हुआ।
वैज्ञानिक मानते हैं कि शायद उस काल में कुछ खास तकनीकों या प्राकृतिक अवयवों का प्रयोग किया गया होगा, जिनकी संरचना आज भी रहस्य बनी हुई है। अब वैज्ञानिक टैटू में इस्तेमाल की गई स्याही के रासायनिक घटकों की जांच कर रहे हैं, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वह कितनी टिकाऊ और विशेष थी।
कौन थी यह महिला?
हालांकि महिला की पहचान अब तक स्पष्ट नहीं हो सकी है, लेकिन उसकी ममी की स्थिति से अनुमान लगाया जा रहा है कि वह कोई खास सामाजिक वर्ग या धार्मिक समूह की सदस्य रही होगी। ममी को बैठी हुई मुद्रा में संरक्षित किया गया है — जो उस समय के कुछ विशिष्ट समुदायों में सम्मान और गरिमा की प्रतीक मानी जाती थी।
टैटू का डिज़ाइन भी यह संकेत देता है कि इसका कोई सांस्कृतिक या धार्मिक महत्व रहा होगा। प्राचीन समाजों में टैटू सिर्फ सौंदर्य के लिए नहीं, बल्कि पहचान, चिकित्सा या आध्यात्मिक सुरक्षा के प्रतीक के रूप में भी बनाए जाते थे।
ममीकरण की प्रक्रिया
ममी बनाना कोई सामान्य प्रक्रिया नहीं है। इसमें मृत शरीर को खास तरह के लेप, तेल और कपड़ों से लपेटा जाता है ताकि वह सड़-गल न सके। इस प्रक्रिया का उद्देश्य होता है शरीर को यथासंभव लंबे समय तक सुरक्षित रखना। दक्षिण अमेरिका में ममीकरण की परंपरा हजारों साल पुरानी है और वहां की जलवायु और तकनीकें इस कार्य में मदद करती थीं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
ट्यूरिन विश्वविद्यालय के प्रमुख मानवविज्ञानी जियानलुइगी मंगियापेन ने कहा, “हमने पहले कभी गाल पर इतने पुराने टैटू को इस स्पष्टता से नहीं देखा। यह ना सिर्फ एक आश्चर्यजनक खोज है बल्कि यह मानव इतिहास, प्राचीन चिकित्सा, और टैटू तकनीक को लेकर हमारे ज्ञान को गहराई दे सकती है।”
निष्कर्ष
यह खोज इतिहास के उस पन्ने को खोलने का प्रयास है, जहां सौंदर्य, विज्ञान और संस्कृति आपस में जुड़ते हैं। 800 साल पुरानी ममी के गाल में टैटू का मिलना एक ऐसा रहस्य है, जो आने वाले वर्षों में प्राचीन सभ्यताओं की समझ को नया दृष्टिकोण दे सकता है। यह सिर्फ एक टैटू नहीं, बल्कि उस समय के जीवन, विज्ञान और कला की एक अमिट छाप है, जिसे अब वैज्ञानिक आधुनिक तकनीकों से पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।