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karunanidhi memorial controversy: मंदिर शैली की सजावट पर उठे सियासी सवाल और DMK-BJP की जुबानी जंग

  • April 18, 2025
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चेन्नई स्थित दिवंगत एम करुणानिधि के स्मारक पर हाल ही में हुए एक सजावटी परिवर्तन ने तमिलनाडु की राजनीति में एक बार फिर गरमाहट ला दी है। राज्य

karunanidhi memorial controversy: मंदिर शैली की सजावट पर उठे सियासी सवाल और DMK-BJP की जुबानी जंग

चेन्नई स्थित दिवंगत एम करुणानिधि के स्मारक पर हाल ही में हुए एक सजावटी परिवर्तन ने तमिलनाडु की राजनीति में एक बार फिर गरमाहट ला दी है। राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच इस मुद्दे को लेकर तीखी बयानबाजी शुरू हो गई है। विवाद की जड़ है स्मारक की सजावट में शामिल एक संरचना, जो तमिलनाडु के प्रसिद्ध श्रीविल्लीपुथुर मंदिर के गोपुरम (गेट टॉवर) से प्रेरित प्रतीत होती है।

करुणानिधि स्मारक और नया विवाद

एम. करुणानिधि, जिनका 2018 में निधन हुआ था, तमिल राजनीति की सबसे प्रभावशाली हस्तियों में से एक रहे हैं। उनके सम्मान में मरीना बीच, चेन्नई पर एक भव्य स्मारक बनाया गया है। यह स्मारक लंबे समय से लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है, लेकिन हाल ही में इसमें जोड़ा गया एक नया डिज़ाइन विवाद का विषय बन गया है। स्मारक पर लगाए गए एक सजावटी तत्व की बनावट और संरचना बिल्कुल श्रीविल्लीपुथुर मंदिर के गोपुरम जैसी है, जिसे तमिलनाडु के धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक माना जाता है।

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बीजेपी का आरोप: ‘पाखंड और हिंदू भावनाओं का अपमान’

तमिलनाडु बीजेपी के उपाध्यक्ष नारायणन तिरुपति ने इस सजावट की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर साझा करते हुए करुणानिधि स्मारक से इस संरचना को तत्काल हटाने की मांग की। उन्होंने इसे “अहंकार की पराकाष्ठा” और “हिंदू धार्मिक भावनाओं का अपमान” करार दिया।

नारायणन तिरुपति ने कहा कि यह वही पार्टी (DMK) है, जिसने दशकों तक मंदिरों और धार्मिक प्रतीकों के खिलाफ बयान दिए, मंदिरों को सरकार के नियंत्रण में रखा और हिंदू रीति-रिवाजों का विरोध किया। अब वही पार्टी एक मंदिर प्रतीक का उपयोग अपने नेता के स्मारक की सजावट में कर रही है, जो उनकी कथित ‘तुष्टिकरण’ राजनीति और अवसरवाद को दर्शाता है।

बीजेपी नेताओं ने यह भी सवाल उठाया कि करुणानिधि, जिन्होंने स्वयं कभी ईश्वर में विश्वास नहीं जताया और धर्मनिरपेक्षता व तर्कवाद को प्राथमिकता दी, उनके स्मारक पर आखिर धार्मिक प्रतीक क्यों लगाए जा रहे हैं?

DMK का जवाब: संस्कृति का सम्मान और गलत व्याख्या

दूसरी ओर, DMK नेताओं ने इन आरोपों को नकारते हुए कहा कि स्मारक की सजावट का उद्देश्य तमिल संस्कृति और वास्तुकला की सुंदरता को दर्शाना है, न कि किसी धार्मिक भावना को आहत करना। पार्टी प्रवक्ताओं ने कहा कि गोपुरम जैसी संरचनाएं केवल धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि तमिल स्थापत्य और सांस्कृतिक पहचान का भी हिस्सा हैं।

DMK का कहना है कि यह सजावट करुणानिधि की तमिल संस्कृति के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है। उन्होंने हमेशा तमिल भाषा, कला, साहित्य और स्थापत्य की समृद्ध परंपराओं को बढ़ावा दिया। गोपुरम जैसी सजावट उस परंपरा का हिस्सा है, और इसका धार्मिक उद्देश्य नहीं, बल्कि सांस्कृतिक महत्व है।

करुणानिधि और द्रविड़ आंदोलन की विचारधारा

इस पूरे विवाद की पृष्ठभूमि को समझने के लिए करुणानिधि और द्रविड़ आंदोलन की विचारधारा को जानना जरूरी है। करुणानिधि पेरियार ई. वी. रामासामी द्वारा शुरू किए गए द्रविड़ आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक थे। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्राह्मणवादी वर्चस्व का विरोध, सामाजिक समानता की स्थापना, और तर्कवाद का प्रचार था।

DMK और इसके नेताओं ने वर्षों तक धार्मिक अंधविश्वासों और रूढ़ियों के खिलाफ आवाज उठाई। करुणानिधि स्वयं एक घोषित नास्तिक थे, और अक्सर धार्मिक रीति-रिवाजों पर कटाक्ष करते थे। ऐसे में उनके स्मारक पर एक मंदिर प्रतीक का शामिल होना स्वाभाविक रूप से कई सवाल खड़े करता है।

राजनीतिक पृष्ठभूमि में देखा जा रहा कदम?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद केवल सजावट तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी राजनीतिक रणनीति हो सकती है। भाजपा लंबे समय से तमिलनाडु में अपनी जड़ें मजबूत करने की कोशिश कर रही है, और हिंदू वोट बैंक को एकजुट करने की दिशा में लगातार प्रयास कर रही है। ऐसे में करुणानिधि स्मारक पर मंदिर प्रतीक का उपयोग, भाजपा के लिए एक सुनहरा मौका बन गया है DMK को ‘हिंदू विरोधी’ करार देने का।

दूसरी ओर, DMK की ओर से मंदिर शैली की सजावट यह संकेत हो सकता है कि पार्टी अब धार्मिक प्रतीकों से दूरी बनाने के बजाय तमिल संस्कृति के हिस्से के रूप में उन्हें आत्मसात करने की रणनीति अपना रही है।

जनता की प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया पर यह मुद्दा तेजी से वायरल हो रहा है। कुछ लोगों ने बीजेपी की आलोचना करते हुए कहा कि यह एक अनावश्यक मुद्दा है, जिसे राजनीतिक लाभ के लिए उठाया जा रहा है। वहीं कई अन्य लोगों ने सवाल किया कि करुणानिधि के विचारों के विपरीत जाकर ऐसी संरचना क्यों जोड़ी गई?

कुछ बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सुझाव दिया कि इस तरह के स्मारकों और सजावटी संरचनाओं को किसी भी राजनीतिक या धार्मिक रंग से बचाना चाहिए और इन्हें केवल सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से ही देखा जाना चाहिए।

निष्कर्ष: विरासत और विचारधारा के बीच टकराव

करुणानिधि स्मारक पर मंदिर प्रतीक की सजावट ने विचारधारा, विरासत और राजनीति के बीच एक जटिल टकराव को उजागर किया है। जहां एक ओर यह तमिल संस्कृति और स्थापत्य का उदाहरण माना जा सकता है, वहीं दूसरी ओर यह करुणानिधि और द्रविड़ आंदोलन की मूल विचारधारा से एक विचलन भी प्रतीत होता है।

इस विवाद ने यह भी दिखा दिया कि तमिलनाडु की राजनीति में धर्म, संस्कृति और पहचान के मुद्दे किस तरह से संवेदनशील हैं और किस तरह से उन्हें चुनावी रणनीतियों में इस्तेमाल किया जा सकता है।

भविष्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह स्मारक सजावट बनी रहती है या राजनीतिक दबाव के चलते इसे हटाया जाता है। लेकिन फिलहाल, करुणानिधि स्मारक पर गोपुरम की यह सजावट तमिल राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे चुकी है, जो जल्द खत्म होती नहीं दिखती।

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