विदेशों में पाकिस्तान के आतंक की पोल खोलने से भारत को क्या लाभ मिलेगा? ऑपरेशन सिंदूर की रणनीति और असर
May 19, 2025
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भारत ने एक बार फिर पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बेनकाब करने की रणनीति अपनाई है। पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 भारतीय नागरिकों की हत्या के
भारत ने एक बार फिर पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बेनकाब करने की रणनीति अपनाई है। पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 भारतीय नागरिकों की हत्या के बाद भारत ने 59 सदस्यीय ऑल पार्टी प्रतिनिधिमंडल को दुनिया के अलग-अलग देशों में भेजने का फैसला लिया है। यह प्रतिनिधिमंडल उन देशों में जाकर पाकिस्तान के आतंकवाद को उजागर करेगा जहां उसकी छवि अब भी ‘पीड़ित राष्ट्र’ के रूप में देखी जाती है।
इस लेख में जानेंगे कि क्या भारत को इससे कोई कूटनीतिक और सामरिक लाभ मिल सकता है, और यह रणनीति आतंकवाद के खिलाफ भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को कैसे मजबूत करती है।
पहलगाम हमला और भारत की प्रतिक्रिया
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 26 नागरिकों की हत्या ने देश को झकझोर कर रख दिया। इस हमले की जिम्मेदारी द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली, जो लश्कर-ए-तैयबा का ही एक मुखौटा संगठन माना जाता है।
इस जघन्य कृत्य के जवाब में भारत ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर जवाबी कार्रवाई करते हुए मुरीदके और बहावलपुर में स्थित लश्कर और जैश के मुख्यालयों को ऑपरेशन सिंदूर के तहत निशाना बनाया।
अब भारत का अगला कदम है—पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर आतंकवाद का संरक्षक सिद्ध करना।
विदेशों में पाकिस्तान को बेनकाब करने का उद्देश्य
वैश्विक दबाव बनाना: भारत की सबसे बड़ी रणनीति है पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाना, जिससे उसके खिलाफ संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक मंचों पर कार्रवाई हो सके।
आईएमएफ और वित्तीय एजेंसियों पर प्रभाव: प्रतिनिधिमंडल इन मंचों पर आईएमएफ जैसी संस्थाओं से यह सवाल उठाएगा कि आखिर आतंकवाद को पालने वाले देश को कर्ज क्यों दिया जा रहा है। यह आर्थिक दृष्टिकोण से पाकिस्तान को अस्थिर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
छवि निर्माण: यह प्रयास भारत को एक आतंक विरोधी देश और वैश्विक शांति के समर्थक राष्ट्र के रूप में स्थापित करता है। इससे न केवल राजनीतिक फायदा होता है, बल्कि विदेशी निवेश और रणनीतिक साझेदारियों में भी भारत की साख बढ़ती है।
अतीत में कूटनीतिक विकल्पों के नतीजे
भारत का यह कदम नया नहीं है। 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के बाद भी तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने इसी तरह की कूटनीतिक रणनीति अपनाई थी।
यूएनएससी 1267 समिति के तहत लश्कर के आतंकियों को सूचीबद्ध किया गया।
जमात-उद-दावा (JUD) को आतंकवादी संगठन घोषित किया गया।
जकी-उर-रहमान लखवी जैसे आतंकियों पर वैश्विक पाबंदियां लगीं।
इन प्रयासों का ही नतीजा था कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ने लगा और उसकी अर्थव्यवस्था पर भी इसका असर दिखा।
टीआरएफ को आतंकी संगठन घोषित कराने की कोशिश
भारत अब टीआरएफ को एक स्वतंत्र आतंकी संगठन के रूप में सूचीबद्ध करवाने के लिए यूएनएससी में जोरशोर से अभियान चला रहा है।
मई और नवंबर 2024 में भारत ने यूएन को रिपोर्ट दी थी जिसमें टीआरएफ की भूमिका को लश्कर और जैश के समर्थन में बताया गया।
यूएनएससी पैनल के सामने भारत की टीम पहले ही इस बात को रख चुकी है कि पाकिस्तान के दबाव में टीआरएफ हमलों की जिम्मेदारी से मुकरता है।
अगर टीआरएफ को यूएन द्वारा आतंकी संगठन घोषित कर दिया गया, तो पाकिस्तान के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफाई देना और मुश्किल हो जाएगा।
पाकिस्तान की आर्थिक कमजोरी पर वार
भारत प्रतिनिधिमंडल के माध्यम से यह सवाल उठाएगा कि पाकिस्तान जो आतंकियों को समर्थन देता है, उसे आईएमएफ जैसे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से सहायता क्यों मिल रही है?
यह एक रणनीतिक आर्थिक कूटनीति है, जो पाकिस्तान को न केवल राजनयिक रूप से, बल्कि आर्थिक रूप से भी घेरने की कोशिश है।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एकरूपता का संदेश
भारत इस प्रतिनिधिमंडल के माध्यम से यह भी दिखाना चाहता है कि देश की सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियां आतंकवाद के मुद्दे पर एकजुट हैं। चाहे वो बीजेपी हो, कांग्रेस या शिवसेना-यूबीटी, इस साझा मंच से भारत की एकता और गंभीरता का संदेश पूरी दुनिया तक जाएगा।
निष्कर्ष
विदेशी धरती पर पाकिस्तान के आतंक की पोल खोलने का सीधा लाभ भारत को मिलेगा—वैश्विक समर्थन, कूटनीतिक दबाव और पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय छवि का ह्रास।
साथ ही, यह प्रयास भारत को आतंकवाद के खिलाफ एक सशक्त वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में प्रस्तुत करेगा।
ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ एक सैन्य या राजनीतिक कदम नहीं, बल्कि एक व्यापक कूटनीतिक रणनीति है जिसका असर आने वाले वर्षों में भारत की विदेश नीति, सुरक्षा और वैश्विक प्रभाव में साफ़ दिखाई देगा।