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Imam’s son, ISI chief and now Pak Army chief: जनरल आसिम मुनीर की कट्टर सोच का सच

  • May 1, 2025
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पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर इन दिनों अपनी विचारधारा और बयानों को लेकर चर्चा में हैं। हाल ही में दिए गए उनके एक भाषण में उन्होंने ‘टू-नेशन

Imam’s son, ISI chief and now Pak Army chief: जनरल आसिम मुनीर की कट्टर सोच का सच

पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर इन दिनों अपनी विचारधारा और बयानों को लेकर चर्चा में हैं। हाल ही में दिए गए उनके एक भाषण में उन्होंने ‘टू-नेशन थ्योरी’ यानी दो-राष्ट्र सिद्धांत को फिर से हवा दी और पाकिस्तान के निर्माण को एक धार्मिक लड़ाई करार दिया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि पाकिस्तान इसलिए बना क्योंकि मुसलमान और हिंदू दो अलग-अलग कौमें हैं और ये एक साथ नहीं रह सकते थे। ऐसे विचार आज के दौर में कट्टरपंथ की गूंज लगते हैं। तो आखिर जनरल आसिम मुनीर कौन हैं? और उनके सोच की जड़ें कहां से आती हैं?

धार्मिक पृष्ठभूमि से शुरुआत

जनरल आसिम मुनीर एक मौलवी के बेटे हैं। उनके पिता एक मस्जिद में इमाम थे और यही धार्मिक माहौल उनके शुरुआती जीवन की पहचान बना। बचपन से ही उन्हें इस्लामिक सिद्धांतों की शिक्षा मिली और वे कुरान के हाफिज़ (यानी जिसने पूरा कुरान कंठस्थ किया हो) भी हैं। पाकिस्तान में सेना के उच्च अधिकारियों में हाफिज-ए-कुरान होना बहुत कम देखा गया है, और इसी वजह से आसिम मुनीर को एक “धार्मिक सिपाही” के तौर पर भी देखा जाता है।

उनकी परवरिश एक रूढ़िवादी और कट्टर धार्मिक माहौल में हुई, जिसका असर उनके व्यक्तित्व और सोच पर साफ दिखता है। उन्होंने इस्लामाबाद के सैन्य स्कूलों से शिक्षा ली और फिर पाकिस्तान मिलिट्री अकादमी (PMA) से कमीशन प्राप्त किया।

Imam son ISI chief

ISI प्रमुख से सेना प्रमुख तक का सफर

आसिम मुनीर ने अपने सैन्य करियर की शुरुआत फ्रंटियर फोर्स रेजीमेंट से की थी। उन्होंने सऊदी अरब में सैन्य सेवा भी दी और फिर पाकिस्तान में विभिन्न खुफिया पदों पर तैनात रहे। उन्हें सबसे ज्यादा प्रसिद्धि तब मिली जब वे ISI (Inter-Services Intelligence) के चीफ बने। वे पहले ऐसे ISI प्रमुख थे जो सेना प्रमुख बनने से पहले सैन्य खुफिया एजेंसी MI और ISI दोनों का नेतृत्व कर चुके थे।

ISI प्रमुख के रूप में उनका कार्यकाल विवादों से भरा रहा। उन्होंने आतंकवाद विरोधी अभियानों में सख्ती दिखाई लेकिन उनके नेतृत्व में एजेंसी की छवि धार्मिक एजेंडा चलाने वाली संस्था की तरह भी उभरी। उन्होंने मदरसों और धार्मिक संगठनों के संपर्कों को मजबूत किया और सेना के भीतर एक ‘इस्लामी राष्ट्रवाद’ को प्रोत्साहन देने वाले अधिकारी के रूप में जाने गए।

‘टू-नेशन थ्योरी’ का पुनरुत्थान

2025 में अपने एक भाषण के दौरान जनरल मुनीर ने खुलकर ‘टू-नेशन थ्योरी’ को फिर से उभारा। उन्होंने कहा,

“आपको अपने बच्चों को बताना होगा कि हमारे बुजुर्गों ने पाकिस्तान क्यों बनाया। हमने खुद को हिंदुओं से हर दृष्टि से अलग माना — धार्मिक रूप से, सांस्कृतिक रूप से और राजनीतिक रूप से। हम एक राष्ट्र नहीं थे, हम दो राष्ट्र थे।”

यह बयान न केवल भारत के खिलाफ नफरत को हवा देता है, बल्कि पाकिस्तान में भी एक कट्टर इस्लामी राष्ट्र की छवि को मजबूत करता है। इस बयान ने पाकिस्तान की सेना की धर्मनिरपेक्षता पर सवाल खड़े कर दिए हैं, जो अब एक धार्मिक संस्थान के रूप में उभरती दिख रही है।

कट्टर सोच या रणनीतिक चाल?

जनरल मुनीर की विचारधारा को लेकर दो तरह की राय है। एक पक्ष मानता है कि वे genuinely धार्मिक व्यक्ति हैं जो इस्लामिक मूल्यों को सेना में स्थापित करना चाहते हैं। वहीं दूसरा पक्ष इसे एक रणनीतिक कदम मानता है। पाकिस्तान में सेना लंबे समय से सत्ता की सबसे ताकतवर संस्था रही है और धार्मिक एजेंडा उसे जनसमर्थन जुटाने का जरिया देता है।

आंतरिक अस्थिरता, आर्थिक संकट और वैश्विक मंच पर अलगाव के बीच, कट्टर धार्मिक विचारों को प्रोत्साहित कर सेना खुद को ‘इस्लाम के रक्षक’ के रूप में प्रस्तुत करना चाहती है — और आसिम मुनीर इसका चेहरा हैं।

भारत के प्रति रुख

जनरल मुनीर का भारत को लेकर नजरिया भी स्पष्ट है — शत्रुता। कश्मीर मुद्दे पर उनकी भाषा हमेशा आक्रामक रही है। वे पाकिस्तान की सुरक्षा नीति में भारत को ‘अंतिम शत्रु’ के रूप में चित्रित करते हैं। ऐसे में भारत-पाक संबंधों में किसी सकारात्मक मोड़ की संभावना उनके कार्यकाल में बहुत कम दिखती है।

निष्कर्ष

जनरल आसिम मुनीर केवल एक फौजी नहीं हैं, वे पाकिस्तान के भीतर एक नई विचारधारा के प्रवक्ता बनते जा रहे हैं — एक ऐसा पाकिस्तान जो धार्मिक पहचान के नाम पर सेना को राजनीति से ऊपर रखता है। उनके नेतृत्व में पाकिस्तान की फौज अब केवल सुरक्षा बल नहीं, बल्कि एक ‘इस्लामिक सैन्य सत्ता’ की छवि लेती जा रही है।

आखिरकार, सवाल यही है — क्या 21वीं सदी में इस तरह की कट्टर सोच से पाकिस्तान तरक्की करेगा, या फिर एक बार फिर नफरत की आग में खुद को ही जलाएगा?

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