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अगर भारत-पाकिस्तान में युद्ध छिड़ा तो क्या आम नागरिक भी बन सकते हैं सैनिक? जानें क्या कहता है कानून

  • May 9, 2025
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भारत और पाकिस्तान के बीच इस समय हालात बेहद तनावपूर्ण हैं। हाल ही में भारत ने पहलगाम आतंकी हमले का जवाब देते हुए “ऑपरेशन सिंदूर” को अंजाम दिया,

अगर भारत-पाकिस्तान में युद्ध छिड़ा तो क्या आम नागरिक भी बन सकते हैं सैनिक? जानें क्या कहता है कानून

भारत और पाकिस्तान के बीच इस समय हालात बेहद तनावपूर्ण हैं। हाल ही में भारत ने पहलगाम आतंकी हमले का जवाब देते हुए “ऑपरेशन सिंदूर” को अंजाम दिया, जिसमें भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान और पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर) में मौजूद 9 आतंकी ठिकानों को निशाना बनाकर तबाह कर दिया। इस ऑपरेशन के बाद पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई करते हुए भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में ड्रोन हमलों और गोलीबारी की घटनाएं कीं। इन हमलों में जम्मू-कश्मीर में 12 से अधिक निर्दोष नागरिकों की जान चली गई।

इस बढ़ते तनाव के बीच देशभर में आम नागरिकों के बीच एक सवाल उठ रहा है – अगर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ता है तो क्या आम आदमी भी जंग का हिस्सा बन सकता है?

क्या इतिहास में कभी ऐसा हुआ है?

आमतौर पर युद्ध लड़ने का काम सेना का होता है, जिसमें प्रशिक्षित सैनिक ही मैदान में उतरते हैं। लेकिन भारत के इतिहास में एक ऐसा समय भी आया था जब आम नागरिकों ने भी सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग दिया। साल 1971 की भारत-पाकिस्तान युद्ध की बात करें तो उस समय भारत के कई गांवों में स्थानीय लोग सेना के लिए खाना बनाकर भेजते थे, उन्हें जरूरी मदद पहुंचाते थे। कुछ बुजुर्ग तो आज भी गर्व से बताते हैं कि उन्होंने 1965 या 1971 की लड़ाई में सेना की मदद की थी। हालांकि उन्होंने सीधा युद्ध नहीं लड़ा, लेकिन उनका सहयोग अहम था।

क्या कोई कानून है जो आम लोगों को युद्ध में शामिल होने की अनुमति देता है?

कई देशों में जब सेना के संसाधन और सैनिक कम पड़ जाते हैं, तो सरकारें आम नागरिकों को खुली भर्ती के ज़रिए युद्ध में शामिल करती हैं। उदाहरण के तौर पर, रूस ने यूक्रेन युद्ध के दौरान आम नागरिकों को सेना में भर्ती किया, उन्हें ट्रेनिंग दी और युद्ध में भेजा।

भारत में अभी तक ऐसी कोई अनिवार्य भर्ती नीति नहीं है जहां आम नागरिकों को जबरन युद्ध में भेजा जाए। लेकिन अगर सरकार चाहे, तो स्वैच्छिक आधार पर नागरिकों की सेवा ली जा सकती है। यानी अगर कोई व्यक्ति खुद सेना में शामिल होना चाहता है या मदद करना चाहता है, तो उसे ट्रेनिंग देकर सहायता कार्यों में लगाया जा सकता है।

आम आदमी युद्ध में कैसे योगदान दे सकता है?

भले ही कोई आम नागरिक हथियार उठाकर जंग के मैदान में न उतरे, लेकिन वह कई तरीकों से देश की मदद कर सकता है:

  • मेडिकल सपोर्ट: डॉक्टर, नर्स या मेडिकल स्टाफ घायल सैनिकों की देखभाल में मदद कर सकते हैं।
  • लॉजिस्टिक्स और आपूर्ति: सेना को भोजन, दवाइयां, कपड़े और अन्य जरूरी सामान पहुंचाने में आम लोग सहयोग कर सकते हैं।
  • साइबर सुरक्षा और सूचना तकनीक: तकनीकी जानकार लोग साइबर हमलों से देश की रक्षा में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
  • राहत और पुनर्वास कार्य: युद्ध से प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना, भोजन और शरण देना।
  • अनुशासन और सहयोग: देश में कानून व्यवस्था बनाए रखना, अफवाहों से बचना और सरकार की गाइडलाइंस का पालन करना।

क्या भारत सरकार जबरदस्ती आम लोगों को युद्ध में भेज सकती है?

नहीं, भारत का संविधान और कानून नागरिकों को जबरन युद्ध में भेजने की अनुमति नहीं देता। सेना में शामिल होना या युद्ध में योगदान देना पूरी तरह स्वैच्छिक होता है। अगर कभी युद्ध जैसी स्थिति बनती है और सरकार को आम लोगों की मदद की आवश्यकता होती है, तो वह केवल स्वेच्छा से सेवा देने वालों को ही शामिल कर सकती है।

निष्कर्ष:

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के इस दौर में आम लोगों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। हालांकि आम नागरिक सीधी लड़ाई में शामिल नहीं होते, लेकिन उनके सहयोग, समर्थन और अनुशासन से ही सेना और सरकार युद्ध जैसी परिस्थितियों से मजबूती से निपट पाती हैं। देशभक्ति का मतलब केवल बंदूक उठाना नहीं होता, बल्कि हर उस कार्य में सहयोग देना होता है जो देश की रक्षा और सुरक्षा के लिए जरूरी हो।

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