Full Moon Ghee विवाद: नितिन कामत के निवेश वाले स्टार्टअप की सोशल मीडिया पर किरकिरी, वेबसाइट से गायब हुआ प्रोडक्ट
May 9, 2025
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हाल ही में सोशल मीडिया पर “Full Moon Ghee” नामक उत्पाद को लेकर एक बड़ा विवाद सामने आया है। यह घी Two Brothers Organic Farms द्वारा बेचा जा
हाल ही में सोशल मीडिया पर “Full Moon Ghee” नामक उत्पाद को लेकर एक बड़ा विवाद सामने आया है। यह घी Two Brothers Organic Farms द्वारा बेचा जा रहा था, जिसमें Zerodha के को-फाउंडर नितिन कामत की नॉन-प्रॉफिट संस्था रेनमैटर फाउंडेशन ने निवेश किया था। लेकिन सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग और आलोचनाओं के बाद यह प्रोडक्ट कंपनी की वेबसाइट से हटा लिया गया है।
इस पूरे मामले ने न सिर्फ स्टार्टअप की साख को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि “पारंपरिक प्रोडक्ट्स के मॉडर्न रीब्रांडिंग” पर भी नई बहस छेड़ दी है। आइए विस्तार से समझते हैं कि यह Full Moon Ghee क्या है, विवाद क्यों हुआ और इसने सोशल मीडिया और निवेशकों पर क्या असर डाला।
Full Moon Ghee: क्या है यह प्रोडक्ट?
Full Moon Ghee एक खास तरह का घी बताया गया था, जिसे पूर्णिमा की रात को बनाया जाता है। कंपनी के मुताबिक, गायों का दूध एक विशेष चंद्रमा ऊर्जा के समय निकाला जाता है और उससे पारंपरिक बिलौने की विधि से घी तैयार किया जाता है। इसका दावा था कि यह घी अधिक “ऊर्जावान”, “संतुलित” और “प्राकृतिक” है।
इस घी की कीमत भी बाजार में मिलने वाले सामान्य घी से कहीं अधिक थी। कंपनी इसे एक प्रीमियम आयुर्वेदिक प्रोडक्ट के तौर पर पेश कर रही थी।
विवाद की शुरुआत
विवाद तब शुरू हुआ जब सोशल मीडिया पर कुछ यूज़र्स ने इस प्रोडक्ट की वैज्ञानिकता पर सवाल उठाए।
कई यूजर्स ने पूछा कि “क्या चंद्रमा की स्थिति से घी की गुणवत्ता वास्तव में बदल सकती है?”
कुछ ने इसे “छद्म विज्ञान” और “बेहुदा मार्केटिंग” बताया।
एक वर्ग ने इसे “धार्मिक भावनाओं का व्यावसायीकरण” और “आम उपभोक्ताओं को भ्रमित करने वाली मार्केटिंग” करार दिया।
इन प्रतिक्रियाओं ने तेजी से तूल पकड़ा और ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म्स पर मीम्स और आलोचनाओं की बाढ़ आ गई।
नितिन कामत की भूमिका और निवेश का एंगल
Two Brothers Organic Farms को पिछले साल रेनमैटर फाउंडेशन से ₹58.2 करोड़ की फंडिंग मिली थी। यह फाउंडेशन नितिन कामत की पहल है, जो सस्टेनेबल और ऑर्गेनिक प्रोजेक्ट्स को समर्थन देती है।
नितिन कामत ने खुद ट्वीट कर यह स्पष्ट किया कि उन्होंने कंपनी के “सस्टेनेबिलिटी विज़न” में निवेश किया था, न कि किसी एक विशेष प्रोडक्ट को बढ़ावा देने के लिए। उन्होंने कहा कि रेनमैटर फाउंडेशन किसी भी ब्रांड के प्रोडक्ट मार्केटिंग में दखल नहीं देता।
हालांकि, आलोचकों का मानना है कि जब कोई हाई-प्रोफाइल निवेशक जुड़ा होता है, तो उससे कंपनी की विश्वसनीयता प्रभावित होती है, और ऐसे में जिम्मेदारी भी बनती है।
कंपनी की प्रतिक्रिया
विवाद बढ़ने के बाद Two Brothers Organic Farms ने Full Moon Ghee को अपनी वेबसाइट से हटा लिया। कंपनी ने कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है, लेकिन यह स्पष्ट है कि उन्होंने संकट को शांत करने की रणनीति अपनाई है।
कंपनी के बाकी ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स जैसे देसी गाय का घी, आटा, हनी आदि अब भी वेबसाइट पर उपलब्ध हैं, लेकिन Full Moon Ghee को बिना किसी नोटिस के हटा दिया गया।
सोशल मीडिया का असर और ब्रांड छवि
इस घटना ने यह साबित कर दिया कि आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया किसी भी ब्रांड के लिए वरदान भी है और संकट भी।
सकारात्मक प्रतिक्रिया ब्रांड को ऊंचाई पर ले जा सकती है,
लेकिन नकारात्मक माहौल एक ही रात में छवि को नुकसान पहुंचा सकता है।
इस केस में, Full Moon Ghee की प्राइसिंग, मार्केटिंग भाषा और पारंपरिक विश्वासों को वैज्ञानिक तथ्यों से जोड़ने की कोशिश ही विवाद का मुख्य कारण बनी।
वैकल्पिक सोच: मार्केटिंग बनाम विज्ञान
इस विवाद से यह भी उजागर हुआ कि कैसे कुछ कंपनियां पारंपरिक ज्ञान को “प्रसिद्धि और लाभ” के लिए रीब्रांड करती हैं।
एक तरफ इसे आयुर्वेदिक और संस्कृति-संबंधी प्रोडक्ट कहकर पेश किया गया,
तो दूसरी ओर मार्केटिंग में ऐसी बातें जोड़ दी गईं जो वैज्ञानिक कसौटी पर खरी नहीं उतरतीं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कोई प्रोडक्ट पारंपरिक विधियों पर आधारित हो, तो उसकी मार्केटिंग को तथ्यों और पारदर्शिता के साथ किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
Full Moon Ghee विवाद भारतीय स्टार्टअप ईकोसिस्टम के लिए एक महत्वपूर्ण सीख है। यह घटना बताती है कि प्रोडक्ट की सच्चाई और मार्केटिंग के बीच संतुलन बनाए रखना क्यों जरूरी है। साथ ही, यह निवेशकों के लिए भी एक संकेत है कि ब्रांड्स के साथ जुड़ते वक्त उनकी मार्केटिंग रणनीतियों पर भी ध्यान दिया जाए।
इस पूरे मामले ने दिखा दिया कि सोशल मीडिया के इस युग में किसी भी ब्रांड को उपभोक्ताओं की बुद्धिमत्ता और प्रश्न करने की प्रवृत्ति को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। पारंपरिकता का आदर करें, लेकिन उसे अंधश्रद्धा न बनाएं – यही इस विवाद से मिली सबसे बड़ी सीख है।