हौसले की उड़ान: एसिड अटैक सर्वाइवर काफ़ी ने CBSE 12वीं में 95.6% स्कोर कर किया टॉप
- May 15, 2025
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जब किस्मत ने उन्हें एक कड़ी परीक्षा में डाला, तब उन्होंने हालात से लड़ने का फैसला किया। यह कहानी है चंडीगढ़ की रहने वाली काफ़ी की, जो सिर्फ
जब किस्मत ने उन्हें एक कड़ी परीक्षा में डाला, तब उन्होंने हालात से लड़ने का फैसला किया। यह कहानी है चंडीगढ़ की रहने वाली काफ़ी की, जो सिर्फ
जब किस्मत ने उन्हें एक कड़ी परीक्षा में डाला, तब उन्होंने हालात से लड़ने का फैसला किया। यह कहानी है चंडीगढ़ की रहने वाली काफ़ी की, जो सिर्फ तीन साल की उम्र में एसिड अटैक की शिकार हुईं। इस दर्दनाक हादसे में उनका चेहरा झुलस गया और उन्होंने अपनी आंखों की रोशनी खो दी। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। आज वही काफ़ी CBSE 2025 में 12वीं की परीक्षा में 95.6% अंक लाकर टॉपर बनी हैं।
यह सिर्फ एक परीक्षा में सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक ऐसे जज़्बे और संघर्ष की मिसाल है जो अंधकार में भी रास्ता ढूंढ लेता है। काफ़ी की यह उपलब्धि न सिर्फ उनके लिए, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो कभी न कभी जीवन में मुश्किलों से दो-चार होता है।
जब बच्चे खिलौनों और कहानियों की दुनिया में खोए रहते हैं, तब काफ़ी ने दर्द और संघर्ष को अपना साथी बना लिया था। तीन साल की मासूम उम्र में हुए एसिड अटैक ने उनकी पूरी ज़िंदगी को झकझोर कर रख दिया। चेहरा झुलस गया, दोनों आंखों की रोशनी चली गई, लेकिन उनका साहस नहीं डगमगाया।
परिवार ने हार नहीं मानी और काफ़ी को चंडीगढ़ के सेक्टर 26 स्थित “इंस्टीट्यूट फॉर द ब्लाइंड” में दाखिला दिलवाया, जहां से उनकी शिक्षा की नई शुरुआत हुई।
दृष्टिहीन होने के बावजूद काफ़ी ने पढ़ाई में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने टेक्नोलॉजी को हथियार बनाया और ऑडियो बुक्स, यूट्यूब लेक्चर्स जैसे माध्यमों से पढ़ाई की। Braille में पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने सामान्य छात्रों की तरह ही कठिन विषयों को समझा और खुद को साबित किया।
काफ़ी का कहना है, “मैंने कभी अपने आप को दूसरों से अलग नहीं समझा। मेरे पास आंखें नहीं हैं, लेकिन मेरे सपने हैं, और उन्हें मैं पूरा करूँगी।”
CBSE 12वीं में 95.6% स्कोर करना कोई पहली उपलब्धि नहीं है काफ़ी के लिए। इससे पहले उन्होंने 10वीं की परीक्षा में भी 95.2% अंक लाकर अपने स्कूल में टॉप किया था। लगातार उत्कृष्ट प्रदर्शन के चलते वे सभी शिक्षकों और छात्रों के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं।
उनकी सफलता का श्रेय वे अपने माता-पिता, शिक्षकों और तकनीक को देती हैं, जिसने उन्हें आत्मनिर्भर बनने में मदद की।
काफ़ी का अगला लक्ष्य है दिल्ली यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएशन करना। वे भारतीय राजनीति को गहराई से समझना चाहती हैं ताकि समाज में एक सकारात्मक बदलाव ला सकें। उनका अंतिम सपना है – IAS अधिकारी बनना।
वे कहती हैं, “मैंने जीवन में इतनी कठिनाइयाँ देखी हैं कि अब मैं दूसरों की मदद करना चाहती हूँ। एक IAS अधिकारी के रूप में मैं समाज में वह बदलाव लाना चाहती हूँ, जो मैंने खुद महसूस किया है।”
काफ़ी की कहानी सिर्फ एक टॉपर की नहीं, बल्कि उस सोच की है जो कहती है – ‘अगर हौसले बुलंद हों, तो कोई भी मुश्किल रास्ता नहीं रोक सकता।’ उनके संघर्ष और सफलता ने यह साबित कर दिया है कि किसी की शारीरिक अक्षमता उसे उसकी मंज़िल तक पहुँचने से नहीं रोक सकती।
वह समाज के लिए एक रोल मॉडल हैं – खासकर उन लड़कियों के लिए जो किसी भी रूप में उत्पीड़न या भेदभाव का शिकार हुई हैं।
काफ़ी की इस सफलता के पीछे उनकी मेहनत, शिक्षक का मार्गदर्शन और परिवार का साथ है। यह कहानी बताती है कि शिक्षा किसी की मोहताज नहीं होती – न रोशनी की, न हालात की। अगर इरादे मजबूत हों, तो हर चुनौती को मात दी जा सकती है।
काफ़ी की कहानी हमें यह सिखाती है कि ज़िंदगी में चाहे जितनी भी अंधेरी रातें हों, अगर दिल में उम्मीद की रोशनी हो तो सूरज जरूर निकलता है। उन्होंने न केवल अपनी आँखों की रोशनी खोने के बावजूद उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि “हिम्मत ए मर्दा तो मदद ए खुदा।”
CBSE टॉपर काफ़ी आज लाखों लोगों की प्रेरणा हैं। उनका सपना IAS बनकर देश की सेवा करना है, और हम सब दुआ करते हैं कि उनका यह सपना जल्द ही हकीकत बने।