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Digital Footprint से हुआ खुलासा: पाकिस्तान का कनेक्शन आया सामने

  • April 24, 2025
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जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को गहरे सदमे में डाल दिया है। इस हमले में 27 निर्दोष लोगों की जान चली गई, जिससे

Digital Footprint से हुआ खुलासा: पाकिस्तान का कनेक्शन आया सामने

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को गहरे सदमे में डाल दिया है। इस हमले में 27 निर्दोष लोगों की जान चली गई, जिससे हर भारतीय का दिल आहत है और चारों ओर गुस्से का माहौल है। लोग सरकार से कड़े और निर्णायक कदम उठाने की मांग कर रहे हैं। इस बीच सुरक्षा एजेंसियों ने भी अपनी जांच प्रक्रिया को तेज़ कर दिया है। लेकिन इस बार हथियारों और ठिकानों से आगे बढ़कर एक नई चीज़ जांच के केंद्र में आई है – डिजिटल फुटप्रिंट (Digital Footprint)

अब आपके मन में यह सवाल आना स्वाभाविक है कि आखिर यह डिजिटल फुटप्रिंट क्या होता है? और इसकी मदद से आतंकियों तक कैसे पहुंचा जा रहा है? आइए इसे सरल और आसान भाषा में समझते हैं।

क्या होता है डिजिटल फुटप्रिंट?

जैसे किसी रेतीली ज़मीन पर चलने से पैरों के निशान बनते हैं, ठीक वैसे ही जब हम इंटरनेट पर कोई भी गतिविधि करते हैं – चाहे वो कुछ गूगल करना हो, सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट करना हो, किसी वेबसाइट पर जाना हो या कोई ऐप इस्तेमाल करना हो – तब हम अपने पीछे डिजिटल दुनिया में एक नज़र न आने वाला निशान छोड़ते हैं। इन गतिविधियों का जो डेटा बनता है, उसे ही डिजिटल फुटप्रिंट कहा जाता है।

यह डिजिटल फुटप्रिंट बताता है कि हमने कब, कहां, क्या किया – जैसे कि किस वेबसाइट पर गए, क्या देखा, किनसे बात की, और कितनी देर तक किसी पेज पर रुके। यही फुटप्रिंट, जांच एजेंसियों के लिए एक तरह का सुराग होता है जिससे वो किसी भी व्यक्ति की डिजिटल गतिविधियों को ट्रैक कर सकते हैं।

डिजिटल फुटप्रिंट के प्रकार

डिजिटल फुटप्रिंट दो तरह के होते हैं:

  1. Active Digital Footprint (सक्रिय डिजिटल निशान) – यह वह होता है जिसे हम जानबूझकर छोड़ते हैं, जैसे सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट करना, किसी तस्वीर को लाइक करना, या कमेंट करना।
  2. Passive Digital Footprint (निष्क्रिय डिजिटल निशान) – यह वह होता है जो हमारी जानकारी के बिना बनता है, जैसे किसी वेबसाइट पर बिताया गया समय, माउस की मूवमेंट, या किस पेज पर कितनी देर रुके। यह डेटा साइट्स और ऐप्स ऑटोमैटिकली इकट्ठा करते हैं।

आतंकियों का पाकिस्तान से लिंक कैसे मिला?

जब पहलगाम हमले के बाद जांच एजेंसियों ने घटनास्थल से मिले इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज़ – जैसे मोबाइल फोन, रेडियो, लैपटॉप आदि – की जांच शुरू की, तो उनमें कुछ ऐसे डिजिटल सुराग मिले जो भारत की सीमाओं से पार पाकिस्तान की ओर इशारा कर रहे थे।

जांच में यह भी सामने आया कि आतंकियों ने ऐसे एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप्स का इस्तेमाल किया था जिनसे उनकी बातचीत को ट्रैक करना काफी मुश्किल होता है। लेकिन भारतीय एजेंसियों ने डिजिटल फुटप्रिंट का इस्तेमाल करते हुए यह जान लिया कि बातचीत के सिग्नल पाकिस्तान के मुजफ्फराबाद, कराची और कुछ अन्य ठिकानों से हो रही थी।

इन जगहों को पहले से ही एजेंसियां आतंकियों के ‘सेफ हाउस’ के तौर पर चिन्हित कर चुकी थीं। इन डिजिटल सुरागों ने यह साबित कर दिया कि हमले की साजिश भारत से बाहर बैठकर रची गई थी।

क्यों जरूरी है डिजिटल फुटप्रिंट की जानकारी?

आज की डिजिटल दुनिया में केवल बंदूक और बारूद से नहीं, बल्कि डेटा से भी युद्ध लड़ा जा रहा है। डिजिटल फुटप्रिंट ऐसी सूचनाएं होती हैं जो दिखती नहीं, लेकिन उनमें सच्चाई छिपी होती है। इन्हें ट्रैक करना कठिन ज़रूर है, लेकिन एक बार सही ढंग से पकड़ में आ जाएं, तो पूरी साजिश का पर्दाफाश हो सकता है।

यही वजह है कि पहलगाम हमले में सिर्फ गोलीबारी और धमाकों की जांच नहीं हो रही, बल्कि आतंकियों द्वारा छोड़े गए हर डिजिटल सुराग को खंगाला जा रहा है। डेटा की ताकत अब खुफिया एजेंसियों के सबसे अहम हथियारों में से एक बन गई है।

आम लोग भी छोड़ते हैं डिजिटल निशान

यह ज़रूरी नहीं कि सिर्फ आतंकवादी ही डिजिटल फुटप्रिंट छोड़ते हैं। आप और हम – जब भी इंटरनेट पर कुछ सर्च करते हैं, यूट्यूब पर वीडियो देखते हैं, इंस्टाग्राम पर पोस्ट करते हैं या किसी वेबसाइट पर जाते हैं – हम भी अपना डिजिटल निशान छोड़ते हैं।

कभी आपने गौर किया होगा कि आप एक बार मोबाइल पर कोई प्रोडक्ट सर्च करते हैं और फिर कुछ ही देर में उसी से जुड़े विज्ञापन हर वेबसाइट पर दिखने लगते हैं। यह आपके द्वारा छोड़े गए डिजिटल फुटप्रिंट का ही परिणाम होता है।

निष्कर्ष

डिजिटल फुटप्रिंट अब सिर्फ एक तकनीकी शब्द नहीं, बल्कि देश की सुरक्षा का अहम हिस्सा बन चुका है। पहलगाम हमले में इसी तकनीक ने आतंकियों की लोकेशन, उनके नेटवर्क और पाकिस्तान से कनेक्शन को उजागर किया है। आने वाले समय में डिजिटल जांच और भी मजबूत होगी, जिससे देश की सुरक्षा एजेंसियां साइबर वॉरफेयर के लिए और अधिक सशक्त बनेंगी।

अगर हम भी अपने डिजिटल फुटप्रिंट को लेकर सजग हो जाएं, तो साइबर सुरक्षा के स्तर पर भी देश को एक मज़बूत आधार मिल सकता है।

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