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बेटी ने दवा खाकर दी परीक्षा, किया स्कूल टॉप – लेकिन रिजल्ट से पहले चली गई इस दुनिया से

  • May 6, 2025
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पश्चिम बंगाल के आसनसोल से एक ऐसी खबर सामने आई है, जिसने हर किसी की आंखें नम कर दीं। उमरानी गोराई महिला कल्याण स्कूल की छात्रा थैबी (Thaibi)

बेटी ने दवा खाकर दी परीक्षा, किया स्कूल टॉप – लेकिन रिजल्ट से पहले चली गई इस दुनिया से

पश्चिम बंगाल के आसनसोल से एक ऐसी खबर सामने आई है, जिसने हर किसी की आंखें नम कर दीं। उमरानी गोराई महिला कल्याण स्कूल की छात्रा थैबी (Thaibi) ने 10वीं की बोर्ड परीक्षा में न सिर्फ अपने स्कूल में टॉप किया, बल्कि जिलेभर में 8वां स्थान भी हासिल किया। लेकिन दुख की बात यह है कि थैबी ये खुशी देख नहीं सकी। परीक्षा का रिजल्ट आने से महज 17 दिन पहले ही थैबी का निधन हो गया। उसके माता-पिता और स्कूल के शिक्षक जब टॉपर्स की लिस्ट में उसका नाम देख पाए, तो खुशी से ज्यादा आंखों में आंसू थे।

बीमारी के बावजूद परीक्षा में बैठी

थैबी एक मेधावी छात्रा थी। वह पढ़ाई को लेकर हमेशा गंभीर रहती थी। परीक्षा से कुछ दिन पहले ही उसकी तबीयत खराब होने लगी थी। परिवार वालों ने जब उसे डॉक्टर को दिखाया, तो पता चला कि वह जॉन्डिस से पीड़ित है। हालत गंभीर थी, लेकिन थैबी ने हिम्मत नहीं हारी। उसने दवाइयों के सहारे परीक्षा देने का फैसला किया।

हर पेपर के दिन वह दवा लेकर एग्जाम सेंटर पहुंचती थी। उसका शरीर कमजोर होता जा रहा था, लेकिन उसका जज्बा कम नहीं हुआ। उसने पूरे मन से परीक्षा दी और उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन किया। परीक्षा खत्म होने तक उसकी हालत और बिगड़ती गई। इसके बाद परिजनों ने उसका इलाज तेज करवा दिया, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।

पढ़ाई के प्रति जुनून ने छोड़ा गहरा असर

थैबी सिर्फ एक छात्रा नहीं थी, वह अपने स्कूल की प्रेरणा भी थी। शिक्षकों के अनुसार वह क्लास में हमेशा अव्वल रहती थी और उसका सपना था कि वह बड़ा अफसर बने। उसका पढ़ाई के प्रति जुनून हर किसी को प्रेरित करता था। बीमारी के बावजूद परीक्षा देना, वह भी इतनी मेहनत और लगन से, ये बताता है कि वह कितनी जुझारू थी।

किया स्कूल टॉप

जब उसका नाम रिजल्ट की टॉपर लिस्ट में आया, तो पूरे स्कूल में सन्नाटा छा गया। शिक्षक और स्टाफ उसकी फोटो को निहारते रहे, किसी की आंखें सूखी नहीं थीं। परिवार के लिए ये गर्व का पल था, लेकिन साथ ही एक ऐसा दर्द भी, जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है।

परिवार के सपनों का केंद्र थी थैबी

थैबी अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। मां-बाप की सारी उम्मीदें उसी से जुड़ी थीं। उन्होंने उसके बेहतर भविष्य के लिए हर संभव कोशिश की थी। वे चाहते थे कि उनकी बेटी एक दिन बड़ा नाम कमाए। जब रिजल्ट आया और उन्होंने देखा कि थैबी ने टॉप किया है, तो उनकी आंखों से आंसू रुक नहीं पाए। वो पल ऐसा था जब खुशी और गम दोनों एकसाथ उमड़ पड़े।

समाज को भी मिला संदेश

थैबी की कहानी सिर्फ एक परीक्षा की नहीं है, यह हिम्मत, जुनून और कर्तव्यपरायणता की मिसाल है। उसने दिखा दिया कि मुश्किल हालातों में भी अगर इंसान ठान ले, तो कुछ भी असंभव नहीं है। उसका ये संघर्ष हर छात्र के लिए एक प्रेरणा बन गया है।

आज जब बच्चे छोटी-छोटी वजहों से परीक्षा छोड़ने का फैसला कर लेते हैं, ऐसे में थैबी की कहानी बताती है कि सच्चा परिश्रम क्या होता है। उसने अंतिम सांस तक हार नहीं मानी। भले ही वह आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उसका नाम, उसकी मेहनत, और उसका संघर्ष हमेशा याद रखा जाएगा।

सरकार और स्कूल प्रशासन से अपील

ऐसे छात्रों की याद में अगर स्कूल एक स्कॉलरशिप योजना शुरू करे या किसी पुरस्कार का नाम ‘थैबी मेमोरियल अवॉर्ड’ रखे, तो यह न सिर्फ उसकी स्मृति को जीवित रखेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी मेहनत और संघर्ष का महत्व समझाने में मदद करेगा। यह एक छोटा सा कदम होगा, लेकिन इसका असर दूरगामी होगा।

निष्कर्ष:

थैबी भले ही इस दुनिया को अलविदा कह चुकी है, लेकिन उसकी मेहनत, लगन और संघर्ष ने जो संदेश छोड़ा है, वो अमिट है। वह हर उस छात्र की प्रेरणा बन गई है जो कठिन हालातों में भी हार नहीं मानता। उसका नाम आने वाले समय में हमेशा सम्मान से लिया जाएगा। थैबी की कहानी हमें ये सिखाती है कि सच्चा संघर्ष कभी व्यर्थ नहीं जाता, चाहे परिणाम हम देखें या न देख पाएं।

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