Case of alleged assault on professor in Rajouri, Jammu and Kashmir: सेना ने दिए जांच के आदेश
April 19, 2025
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जम्मू-कश्मीर का राजौरी जिला एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार वजह आतंकवाद या सीमा पार गोलीबारी नहीं, बल्कि एक स्थानीय प्रोफेसर के साथ कथित मारपीट
जम्मू-कश्मीर का राजौरी जिला एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार वजह आतंकवाद या सीमा पार गोलीबारी नहीं, बल्कि एक स्थानीय प्रोफेसर के साथ कथित मारपीट का मामला है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) में कार्यरत प्रोफेसर लियाकत अली ने सेना के जवानों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि सीमावर्ती गांव लाम के पास उन्हें बेरहमी से पीटा गया, जिससे उनके सिर में गंभीर चोटें आईं। इस मामले ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में हलचल मचा दी है, वहीं सेना ने मामले की निष्पक्ष जांच के आदेश दिए हैं।
घटना का विवरण
प्रोफेसर लियाकत अली के अनुसार, यह घटना राजौरी जिले के लाम गांव के पास घटी, जो नियंत्रण रेखा (LoC) के समीप स्थित है। बताया गया कि इलाके में सेना द्वारा वाहनों की नियमित जांच की जा रही थी। इसी दौरान जब प्रोफेसर अली वहां से गुजर रहे थे, तब सेना के कुछ जवानों ने उन्हें रोका और बिना किसी स्पष्ट कारण के उनके साथ मारपीट की।
प्रोफेसर का कहना है कि उन्हें उकसाने या कोई भी आक्रामक व्यवहार किए बिना ही जवानों ने बुरी तरह से पीटा। इस हमले में उनके सिर पर गंभीर चोटें आईं और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। सोशल मीडिया पर भी घटना की तस्वीरें और वीडियो सामने आए हैं, जिनमें अली के घायल अवस्था में होने की पुष्टि होती है।
सेना की प्रतिक्रिया
घटना की जानकारी मिलते ही सेना ने तत्परता दिखाई और मामले की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिए। सेना के एक प्रवक्ता ने बयान जारी कर कहा कि, “हम इस घटना को गंभीरता से ले रहे हैं। सेना नागरिकों की सुरक्षा और सम्मान की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। यदि किसी भी सैनिक ने नियमों का उल्लंघन किया है, तो उसके खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।”
सेना की इस त्वरित प्रतिक्रिया को कुछ हलकों में सकारात्मक कदम माना जा रहा है, जिससे यह संकेत मिलता है कि सेना अपनी छवि को लेकर संवेदनशील है और नागरिकों के साथ किसी भी प्रकार के दुर्व्यवहार को सहन नहीं करेगी।
स्थानीय प्रशासन की भूमिका
स्थानीय प्रशासन ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया है। राजौरी के जिला आयुक्त और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी घटना स्थल पर पहुंचे और प्रोफेसर से मुलाकात कर उनका बयान दर्ज किया। मेडिकल रिपोर्ट में चोटों की पुष्टि होने के बाद प्रशासन ने सेना को लिखित रूप में घटना की जानकारी दी।
इस घटना को लेकर पुलिस ने भी अलग से प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है ताकि स्थिति की पूरी जानकारी हासिल की जा सके। प्रशासन ने आश्वासन दिया है कि यदि जांच में कोई दोषी पाया जाता है, तो उसे कानून के अनुसार दंडित किया जाएगा।
सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया
प्रोफेसर लियाकत अली के साथ हुई घटना पर समाज के विभिन्न वर्गों ने चिंता व्यक्त की है। मानवाधिकार संगठनों और शिक्षाविदों ने इसे अस्वीकार्य बताया है। कई राजनीतिक दलों ने भी इस घटना की निंदा की और निष्पक्ष जांच की मांग की है।
एक प्रमुख राजनीतिक नेता ने कहा, “शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति के साथ ऐसी बर्बरता चिंता का विषय है। यदि इस तरह के व्यवहार को नजरअंदाज किया गया, तो आम नागरिकों में सुरक्षा की भावना खत्म हो जाएगी।”
सोशल मीडिया पर भी यह मामला तेजी से वायरल हो रहा है, जहां लोग अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं और न्याय की मांग कर रहे हैं।
प्रोफेसर लियाकत अली का बयान
प्रोफेसर अली ने मीडिया से बातचीत में कहा, “मैं हमेशा कानून का पालन करता आया हूं। उस दिन भी मैं सिर्फ अपने काम से घर लौट रहा था। मुझे नहीं पता कि जवानों ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया। मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया गया जैसे मैं कोई अपराधी हूं। मैं चाहता हूं कि मुझे न्याय मिले और दोषियों को सजा दी जाए।”
उनका बयान साफ दर्शाता है कि घटना का गहरा मनोवैज्ञानिक असर भी उन पर पड़ा है।
न्यायिक और संवैधानिक पहलू
किसी भी लोकतांत्रिक देश में सेना का स्थान बहुत उच्च होता है, लेकिन यह भी उतना ही जरूरी है कि सेना की कार्रवाई संविधान के दायरे में हो। यदि कोई नागरिक बिना वजह हिंसा का शिकार होता है, तो यह न केवल उसके अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि सुरक्षा बलों की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है। ऐसे में अगर जांच में यह साबित होता है कि प्रोफेसर अली के साथ अनावश्यक हिंसा की गई, तो दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होना जरूरी है।
आगे की राह
इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में नागरिकों और सेना के बीच विश्वास बनाए रखना कितना जरूरी है। सेना द्वारा जांच का आदेश देना एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन इसके बाद कार्रवाई कितनी पारदर्शी और निष्पक्ष होती है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।
साथ ही, यह मामला सरकार और प्रशासन के लिए एक अवसर है कि वह यह दिखाए कि देश में कानून का शासन है और कोई भी, चाहे वह कितनी ही ऊंची पदवी पर क्यों न हो, कानून से ऊपर नहीं है।
निष्कर्ष
राजौरी में प्रोफेसर लियाकत अली के साथ हुई कथित मारपीट की घटना ने कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े किए हैं। क्या नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली सेना कभी-कभी खुद नागरिक अधिकारों का उल्लंघन कर रही है? क्या संवेदनशील इलाकों में जवानों को और बेहतर प्रशिक्षण और संवेदनशीलता की आवश्यकता है?
इस घटना की निष्पक्ष जांच और उचित कार्रवाई से न केवल पीड़ित को न्याय मिलेगा, बल्कि यह संदेश भी जाएगा कि भारत में हर नागरिक की गरिमा और सुरक्षा सर्वोपरि है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह घटना एक सीख बनेगी और भविष्य में ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति नहीं होगी।