बांग्लादेश के तख्तापलट की आहट: क्या मुहम्मद यूनुस बचा पाएंगे देश और अपनी साख?
- May 23, 2025
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बांग्लादेश एक बार फिर अस्थिरता के भंवर में फंसा नजर आ रहा है। अगस्त 2024 में जब शेख हसीना ने अचानक देश छोड़ दिया, तब किसी को अंदेशा
बांग्लादेश एक बार फिर अस्थिरता के भंवर में फंसा नजर आ रहा है। अगस्त 2024 में जब शेख हसीना ने अचानक देश छोड़ दिया, तब किसी को अंदेशा
बांग्लादेश एक बार फिर अस्थिरता के भंवर में फंसा नजर आ रहा है। अगस्त 2024 में जब शेख हसीना ने अचानक देश छोड़ दिया, तब किसी को अंदेशा नहीं था कि आने वाले कुछ महीनों में बांग्लादेश राजनीतिक उथल-पुथल का केंद्र बन जाएगा। अब देश की अंतरिम सत्ता नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के हाथों में है, लेकिन यह जिम्मेदारी उनके लिए ‘कांटों का ताज’ बनती जा रही है।
सेना, राजनीतिक दलों और जनता के बीच बढ़ते असंतोष ने देश को एक बार फिर तख्तापलट के मुहाने पर ला खड़ा किया है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है: क्या यूनुस खुद को और देश को इस संकट से उबार पाएंगे? आइए संभावित रास्तों पर नजर डालते हैं:
यूनुस सरकार द्वारा अवामी लीग को बैन करना बेहद विवादास्पद फैसला साबित हुआ है। यह वही पार्टी है जिसे बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान ने खड़ा किया था, और जिसकी नेता शेख हसीना थीं। इस निर्णय से देश की एक बड़ी आबादी और विपक्षी शक्तियां नाराज हैं। वहीं दूसरी ओर, बीएनपी को लगता है कि अब सत्ता उनके करीब है, लेकिन वे आशंकित हैं कि कोई “किंग्स पार्टी” जैसे Nahid Islam की NCP को आगे कर सारा खेल बदल दिया जाए।
अगर यूनुस वाकई लोकतांत्रिक ढांचे को बचाना चाहते हैं, तो उन्हें सभी प्रमुख राजनीतिक दलों को एक टेबल पर लाना होगा। उन्हें सर्वदलीय संवाद की शुरुआत करनी चाहिए जिससे एक ऐसा सहमति मॉडल तैयार हो सके जो देश को फिर से लोकतंत्र की राह पर ला सके।
सेना प्रमुख जनरल वाकर उज जमां लगातार चुनाव की तारीख तय करने का दबाव बना रहे हैं। उनका साफ संदेश है: “जल्द चुनाव कराओ और सेना के मामलों में हस्तक्षेप बंद करो।” यूनुस का रुख अब तक टालमटोल वाला रहा है, लेकिन हालात अब इतने नाजुक हैं कि चुनाव की घोषणा में देर देश के लिए विनाशकारी हो सकती है।
अगर यूनुस दिसंबर 2025 तक चुनाव कराने का भरोसा भी दे दें, तो यह सेना के लिए एक शांतिपूर्ण समाधान का संकेत हो सकता है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से अमेरिका और यूरोपीय यूनियन, भी इस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दे सकते हैं।
फिलहाल बांग्लादेश की सेना दो खेमों में बंटी हुई है। एक ओर जनरल वाकर-उज़-ज़मां हैं जो भारत समर्थक माने जाते हैं, और दूसरी तरफ लेफ्टिनेंट जनरल फैज़ुर रहमान, जिन्हें पाकिस्तान समर्थित और भारत विरोधी माना जा रहा है। हाल ही में फैज़ुर रहमान ने ISI प्रमुख से मुलाकात कर बवाल खड़ा कर दिया।
यह भी खबर है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार खलीलुर रहमान फैज़ुर को सेना प्रमुख बनाने की योजना बना रहे हैं। ऐसे में यूनुस को बेहद संतुलित नीति अपनानी होगी। अगर वे किसी एक धड़े का मोहरा बनते हैं, तो तख्तापलट की आशंका और भी प्रबल हो सकती है।
यूनुस की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत रही है, खासकर मानवाधिकार और शांति के क्षेत्र में। उन्हें अपनी इसी छवि का लाभ उठाकर अमेरिका, भारत, यूरोपीय यूनियन और संयुक्त राष्ट्र जैसे संस्थानों का समर्थन हासिल करना चाहिए। एक अंतरराष्ट्रीय गठजोड़ न सिर्फ सेना पर दबाव बनाएगा, बल्कि देश के भीतर भी लोकतंत्र के लिए जनसमर्थन बढ़ाएगा।
हालिया दिनों में बांग्लादेश में कट्टर इस्लामी संगठनों को खुली छूट मिलती दिख रही है। यह न सिर्फ सामाजिक तानेबाने के लिए खतरा है बल्कि इससे सेना को सत्ता पर कब्जा करने का और भी मजबूत बहाना मिल सकता है। यूनुस को सख्त कदम उठाकर इन ताकतों पर लगाम लगानी होगी, ताकि कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़े नहीं।
मार्च 2025 में जब यूनुस ने तख्तापलट की आशंका को “झूठा” बताया था, तब शायद उन्हें खुद भी अंदाजा नहीं था कि हालात इतने गंभीर हो जाएंगे। लेकिन अब जब राष्ट्रपति तक यह कहने लगे हैं कि “बंगबंधु की विरासत को मिटाया नहीं जा सकता,” तब यूनुस को समझना होगा कि सिर्फ अंतरिम प्रधानमंत्री बनना काफी नहीं है — उन्हें एक राष्ट्र निर्माता की भूमिका निभानी होगी।