तेल के बदले हथियार: क्या वर्ल्ड वॉर-3 की पटकथा लिखी जा रही है
- July 8, 2025
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दुनिया के कूटनीतिक समीकरणों में कच्चा तेल अब केवल ईंधन नहीं, बल्कि एक नई मुद्रा बन चुका है — हथियारों की करेंसी। हाल के वर्षों में वैश्विक शक्तियों
दुनिया के कूटनीतिक समीकरणों में कच्चा तेल अब केवल ईंधन नहीं, बल्कि एक नई मुद्रा बन चुका है — हथियारों की करेंसी। हाल के वर्षों में वैश्विक शक्तियों
दुनिया के कूटनीतिक समीकरणों में कच्चा तेल अब केवल ईंधन नहीं, बल्कि एक नई मुद्रा बन चुका है — हथियारों की करेंसी। हाल के वर्षों में वैश्विक शक्तियों के बीच जो डील्स सामने आई हैं, वे यही संकेत देती हैं कि तेल के बदले हथियारों का कारोबार तेज़ी से बढ़ रहा है। ईरान, चीन, रूस, अमेरिका और यहां तक कि भारत और पाकिस्तान भी इस खेल में शामिल हैं। यह सब कुछ उस दिशा में इशारा करता है जो विश्व शांति के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है — विश्व युद्ध-3।
ईरान अपने हथियारों के ज़खीरे को फिर से मज़बूत करने की कोशिश कर रहा है। इसके लिए वह चीन को कच्चा तेल बेच रहा है और बदले में अत्याधुनिक मिसाइल, जेट और डिफेंस सिस्टम खरीद रहा है। चीन ईरान का सबसे बड़ा तेल खरीदार बन गया है, और इस संबंध ने ईरान को अमेरिका और इजराइल के खिलाफ एक सुरक्षा कवच प्रदान किया है। साथ ही, ईरान रूस से भी सैन्य मदद ले रहा है जिससे उसका यूरेनियम कार्यक्रम सुरक्षित रह सके।
रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद वह भारी मात्रा में कच्चा तेल भारत और चीन को डिस्काउंट पर बेच रहा है। इससे उसे हथियारों की फैक्ट्रियों को चालू रखने के लिए पर्याप्त फंड मिल रहा है। पिछले दो वर्षों में तेल से रूस की आय 189 अरब डॉलर से घटकर 151 अरब डॉलर रह गई, लेकिन फिर भी वह अपनी सैन्य क्षमताओं को लगातार बढ़ा रहा है। अमेरिका इस पर सख्त है और रूसी तेल खरीदने वालों पर भारी टैरिफ लगाने की योजना बना रहा है।
रूस के खिलाफ युद्ध में अमेरिका यूक्रेन को सैन्य सहायता लगातार भेज रहा है। इसके बदले यूक्रेन ने अपने खनिज संसाधनों पर अमेरिका से समझौता किया है। खासतौर पर डोनेट्स्क बेसिन और काला सागर क्षेत्र में मौजूद खनिजों पर अमेरिकी नज़र है। इससे यह साफ होता है कि खनिज और तेल अब युद्ध की रणनीति के केंद्र बन चुके हैं।
पाकिस्तान भी अब चीन से अपने डिफेंस सिस्टम को मजबूत कर रहा है। बदले में वह अपने संसाधनों — जैसे कोयला, गैस और ज़मीन — का उपयोग कर रहा है। सीपीईसी प्रोजेक्ट इसका एक बड़ा उदाहरण है। चीन की नजर पाकिस्तान के 175 बिलियन टन कोयले पर है जिसकी वैल्यू कच्चे तेल के सबसे बड़े भंडार से भी अधिक आंकी जा रही है।
भारत भी अपने डिफेंस सेक्टर को मज़बूत करने में लगा है। फ्रांस से रफाल डील, जर्मनी से सबमरीन, रूस और अमेरिका से रक्षा समझौते — ये सब इसकी गवाही देते हैं। SIPRI की रिपोर्ट के अनुसार, 2020 से 2024 के बीच भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक रहा है। भारत के डिफेंस बजट में लगातार इज़ाफा हो रहा है और अब यह देश आत्मनिर्भरता की ओर भी कदम बढ़ा रहा है।
आज दुनिया के ताकतवर देश कच्चे तेल और प्राकृतिक संसाधनों को हथियारों के बदले में इस्तेमाल कर रहे हैं। यह स्थिति गंभीर है क्योंकि इससे स्पष्ट है कि हर देश युद्ध की तैयारी कर रहा है — चाहे वह खुलकर हो या रणनीतिक रूप में। क्या यह संकेत है कि वर्ल्ड वॉर-3 की पटकथा धीरे-धीरे तैयार हो रही है? जवाब समय देगा, लेकिन हालात निश्चित रूप से चिंताजनक हैं।
5 महत्वपूर्ण FAQs
ईरान मुख्य रूप से चीन और रूस से हथियार खरीद रहा है, और इसके लिए वह अपने कच्चे तेल का उपयोग भुगतान के रूप में कर रहा है।
रूस डिस्काउंट पर भारत और चीन को कच्चा तेल बेचकर हथियारों का निर्माण कर रहा है ताकि यूक्रेन युद्ध को जारी रखा जा सके।
अमेरिका यूक्रेन को सैन्य सहायता दे रहा है, जिसके बदले में यूक्रेन अपने खनिज संसाधनों तक अमेरिका को पहुंच दे रहा है।
हां, पाकिस्तान चीन को अपने कोयले, ज़मीन और संसाधनों के बदले हथियार और सैन्य मदद ले रहा है।
तेल और संसाधनों के बदले हथियारों की बढ़ती खरीद-फरोख्त और देशों के सैन्य खर्च में इज़ाफा संकेत देता है कि दुनिया एक बड़े टकराव की ओर बढ़ रही है।