तनाव से छोटा होता DNA: समय से पहले बुढ़ापे की बड़ी वजह और इससे बचने के उपाय
- July 9, 2025
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क्या आपने कभी सोचा है कि रोजमर्रा की भागदौड़, काम का दबाव या पारिवारिक तनाव सिर्फ आपके मूड और नींद पर ही असर नहीं डालते, बल्कि आपके DNA
क्या आपने कभी सोचा है कि रोजमर्रा की भागदौड़, काम का दबाव या पारिवारिक तनाव सिर्फ आपके मूड और नींद पर ही असर नहीं डालते, बल्कि आपके DNA
क्या आपने कभी सोचा है कि रोजमर्रा की भागदौड़, काम का दबाव या पारिवारिक तनाव सिर्फ आपके मूड और नींद पर ही असर नहीं डालते, बल्कि आपके DNA को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं? हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की एक रिसर्च में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि क्रोनिक स्ट्रेस यानी लंबे समय तक बना रहने वाला मानसिक तनाव आपके DNA के सिरों पर मौजूद टिलोमेर (Telomeres) को छोटा कर देता है। इससे व्यक्ति में समय से पहले एजिंग के लक्षण दिखने लगते हैं।
टिलोमेर हमारे DNA के सिरों पर मौजूद एक तरह का सुरक्षा कवच होता है। इसका काम कोशिकाओं को स्थिर और सुरक्षित बनाए रखना है, ठीक वैसे ही जैसे जूते के फीते के सिरों पर प्लास्टिक का कवर उन्हें टूटने से बचाता है। जब हमारी कोशिकाएं बार-बार विभाजित होती हैं, तो हर बार टिलोमेर थोड़ा छोटा हो जाता है। एक समय ऐसा आता है जब यह इतना छोटा हो जाता है कि कोशिका की उम्र खत्म हो जाती है। इसी प्रक्रिया को बायोलॉजिकल एजिंग या बॉडी एजिंग कहा जाता है।

रिसर्च बताती है कि जब हम लंबे समय तक तनावपूर्ण माहौल में रहते हैं—जैसे पारिवारिक समस्याएं, आर्थिक दबाव, ऑफिस वर्कलोड या रिश्तों में तनाव—तो शरीर में कोर्टिसोल जैसे स्ट्रेस हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है। इसका असर सीधे हमारे DNA पर पड़ता है, जिससे ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और इंफ्लेमेशन (सूजन) बढ़ने लगती है। इन कारणों से टिलोमेर तेजी से घटने लगते हैं, जिससे उम्र से पहले झुर्रियां, थकावट, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
इसका सबसे बुरा प्रभाव उन बच्चों और युवाओं पर देखा गया है जो बचपन से ही तनावपूर्ण वातावरण में पले-बढ़े हैं। जिन बच्चों को भावनात्मक या सामाजिक समर्थन नहीं मिलता, उनके टिलोमेर सामान्य से काफी छोटे पाए गए हैं। यहां तक कि मेडिकल इंटर्नशिप में काम कर रहे डॉक्टरों की DNA जांच में भी यह पाया गया कि सिर्फ एक साल के अंदर उनके टिलोमेर में तेजी से गिरावट आई। इसका मतलब यह है कि स्ट्रेस की वजह से युवाओं की कोशिकाएं भी समय से पहले बूढ़ी हो रही हैं।
अच्छी खबर यह है कि अगर समय रहते सही कदम उठाए जाएं, तो टिलोमेर की लंबाई को घटने से रोका जा सकता है या इसकी प्रक्रिया को धीमा किया जा सकता है। शोध में यह भी पाया गया है कि कुछ लाइफस्टाइल बदलाव जैसे योग, ध्यान, नियमित व्यायाम और पर्याप्त नींद न सिर्फ तनाव को कम करते हैं, बल्कि टिलोमेर को सुरक्षित भी रखते हैं।

तनाव को हल्के में लेना आपकी सेहत पर भारी पड़ सकता है। हार्वर्ड की रिसर्च ने साबित कर दिया है कि मानसिक तनाव केवल एक भावना नहीं, बल्कि यह शरीर के DNA तक को प्रभावित करता है। समय से पहले बुढ़ापा, झुर्रियां, थकावट, कमजोर इम्यून सिस्टम—ये सब तनाव का परिणाम हो सकते हैं। इसलिए, जरूरी है कि हम मानसिक स्वास्थ्य को उतनी ही प्राथमिकता दें जितनी शारीरिक स्वास्थ्य को। योग, ध्यान, नींद और स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर आप न सिर्फ बेहतर महसूस करेंगे, बल्कि अंदर से भी जवान बने रहेंगे।
हाँ, हार्वर्ड की रिसर्च के अनुसार क्रोनिक स्ट्रेस से DNA के सिरों पर मौजूद टिलोमेर छोटे हो जाते हैं, जिससे बॉडी एजिंग तेज होती है।
टिलोमेर छोटे होने से कोशिकाएं जल्दी बूढ़ी होती हैं, जिससे समय से पहले बुढ़ापा, थकावट और रोगों की आशंका बढ़ती है।
सीधा बढ़ाया नहीं जा सकता, लेकिन योग, ध्यान, व्यायाम और तनाव कम करके इसकी गिरावट को धीमा किया जा सकता है।
जो बच्चे तनावपूर्ण माहौल में पलते हैं, उनके टिलोमेर कम उम्र में ही छोटे हो सकते हैं, जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है।
योग, ध्यान, भरपूर नींद, नियमित व्यायाम और संतुलित दिनचर्या तनाव को कम करने के सबसे अच्छे उपाय हैं।