भारत बना चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, लेकिन आम आदमी को क्या मिला?
- May 27, 2025
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हाल ही में भारत ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है – देश अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। भारत ने जापान को पीछे
हाल ही में भारत ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है – देश अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। भारत ने जापान को पीछे
हाल ही में भारत ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है – देश अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। भारत ने जापान को पीछे छोड़ते हुए यह मुकाम हासिल किया और अब अमेरिका, चीन और जर्मनी के बाद चौथे स्थान पर पहुंच गया है। यह खबर हर भारतीय को गर्व की अनुभूति कराती है। लेकिन इस आर्थिक तरक्की के बीच एक बड़ा सवाल उठता है – क्या इसका फायदा आम जनता को मिल रहा है?
कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने इसी मुद्दे को उठाते हुए केंद्र सरकार से तीखे सवाल किए हैं। उन्होंने भारत की GDP ग्रोथ की सराहना तो की, लेकिन साथ ही यह भी पूछा कि क्या यह ग्रोथ आम आदमी, गरीब, किसान और बेरोजगारों की जिंदगी में किसी बदलाव का कारण बनी?
नीति आयोग के CEO बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने भारत की प्रगति को वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों के अनुकूल बताया है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत अब 4 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बन चुका है। लेकिन सुप्रिया श्रीनेत के अनुसार, इस “अंक आधारित” विकास का वास्तविक लाभ जमीनी स्तर पर नहीं दिख रहा।
उन्होंने आंकड़ों के जरिए बताया कि भारत की प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income) अभी भी केवल 2800 अमेरिकी डॉलर है, जबकि:
यानि जिस जापान को भारत ने GDP के मामले में पीछे छोड़ा, उसकी प्रति व्यक्ति आय भारत से 12 गुना ज्यादा है।
कांग्रेस नेता ने यह भी इंगित किया कि भारत में आर्थिक असमानता तेजी से बढ़ रही है।
यह सब दर्शाता है कि बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद जनता आर्थिक रूप से संघर्ष कर रही है।
मनरेगा में रजिस्ट्रेशन कराने वालों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। इससे यह संकेत मिलता है कि ग्रामीण भारत में रोजगार के अवसर सीमित हो गए हैं।
साथ ही, बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दे भी जस के तस बने हुए हैं। युवाओं को नौकरी नहीं मिल रही, और आम आदमी की जेब महंगाई से खाली होती जा रही है। ऑटोमोबाइल सेक्टर जैसे इंडस्ट्री में भी स्लोडाउन देखा जा रहा है।
सुप्रिया श्रीनेत ने आंकड़ों के माध्यम से बताया कि:
UPA के 10 वर्षों में प्रति व्यक्ति आय 2.64 गुना बढ़ी जबकि NDA के 11 वर्षों में सिर्फ 1.8 गुना। साथ ही UPA की औसत GDP ग्रोथ रेट 7.5% थी जबकि NDA की 6.5% से भी कम।
GDP का बढ़ना निश्चित रूप से एक उपलब्धि है, लेकिन समानांतर रूप से सामाजिक और आर्थिक न्याय भी जरूरी है। GDP केवल औसत आर्थिक मूल्य दर्शाता है, न कि आम जनता की स्थिति। अगर आम आदमी को इस विकास से कोई लाभ नहीं हो रहा, तो GDP का यह आंकड़ा केवल “कागजी विकास” बनकर रह जाएगा।
भारत का चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना निश्चित रूप से गर्व का विषय है, लेकिन यह सवाल भी उतना ही जरूरी है कि इस तरक्की का लाभ कितने लोगों तक पहुंचा?
कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने यही मुद्दा उठाया है – आर्थिक विकास तब तक अधूरा है जब तक वह समाज के हर तबके तक नहीं पहुंचे।
अब यह जिम्मेदारी सरकार की है कि वह विकास की इस रफ्तार को समावेशी (inclusive) बनाए, ताकि गरीब, किसान, मजदूर, युवा और महिलाएं भी इसका लाभ महसूस कर सकें।
क्योंकि जब तक ‘सबका साथ, सबका विकास’ महज़ नारा बना रहेगा, तब तक GDP का आंकड़ा सिर्फ चंद लोगों की संपत्ति बढ़ाता रहेगा – और बाकी जनता सवाल पूछती रह जाएगी।