ऑपरेशन सिंदूर पर क्यों आमने-सामने हैं संजय राउत और प्रियंका चतुर्वेदी? शिवसेना यूबीटी में मतभेद की तस्वीर
May 19, 2025
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भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए ऑपरेशन सिंदूर को लेकर देश की राजनीति में हलचल मच गई है। यह ऑपरेशन आतंकवाद के खिलाफ भारत की सख्त नीति और
भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए ऑपरेशन सिंदूर को लेकर देश की राजनीति में हलचल मच गई है। यह ऑपरेशन आतंकवाद के खिलाफ भारत की सख्त नीति और उसकी वैश्विक छवि को दिखाने का एक बड़ा प्रयास बताया जा रहा है। लेकिन, इसी बीच शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) यानी यूबीटी के दो वरिष्ठ नेताओं, सांसद संजय राउत और राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी, की राय इस मुद्दे पर बिलकुल जुदा है।
एक तरफ़ संजय राउत इसे राजनीतिक नौटंकी बता रहे हैं, तो दूसरी ओर प्रियंका चतुर्वेदी इसे भारत की जवाबी लड़ाई और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को बेनकाब करने का मिशन बता रही हैं।
संजय राउत की तीखी प्रतिक्रिया
संजय राउत ने ऑपरेशन सिंदूर पर खुलकर नाराज़गी जताई। उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) इस पूरे अभियान को राजनीतिक फायदा उठाने के लिए इस्तेमाल कर रही है।
उन्होंने कहा, “शिवसेना यूबीटी के लोकसभा में 9 सांसद हैं, लेकिन हमें इस डेलीगेशन में शामिल करने की बात तक नहीं हुई।”
उन्होंने इस डेलीगेशन को “नौटंकी” करार देते हुए पूछा, “ये क्या करने जा रहे हैं? क्या आप अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देना चाहते हैं?”
राउत ने आगे यह भी कहा कि अगर यह वाकई “ऑल पार्टी डेलीगेशन“ है, तो इसमें सभी प्रमुख दलों के नेताओं को शामिल करना चाहिए था। उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसा डेलीगेशन कश्मीर जाना चाहिए था, जहां आतंकवाद और पाकिस्तान की गतिविधियों का सीधा असर होता है।
प्रियंका चतुर्वेदी का मिशन आधारित दृष्टिकोण
वहीं शिवसेना यूबीटी की ही नेता प्रियंका चतुर्वेदी इस ऑपरेशन और डेलीगेशन का हिस्सा बनी हैं और उन्होंने इसे एक गंभीर और ज़रूरी मिशन बताया।
उन्होंने साफ किया कि यह कोई पीआर स्टंट नहीं, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति स्पष्ट करने का कदम है।
प्रियंका ने कहा:
“हम इसे सशस्त्र बलों के समर्थन में कर रहे हैं। यह उन सभी नागरिकों के लिए है जो आतंकवादी हमलों के शिकार हुए हैं।”
उन्होंने सोशल मीडिया पर भी पोस्ट किया, जिसमें लिखा:
“ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत में पीआर का इस्तेमाल कोई आश्चर्य की बात नहीं है, लेकिन सच्चाई सामने आएगी और आतंकवाद के हिमायती बेनकाब होंगे।”
प्रियंका ने बताया कि वह माननीय रविशंकर प्रसाद के नेतृत्व में पश्चिमी यूरोप जा रही हैं, ताकि पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को दी जा रही शह को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उजागर किया जा सके।
पार्टी के भीतर मतभेद या रणनीतिक भूमिका?
इस पूरे प्रकरण से एक सवाल उठता है—क्या यह शिवसेना यूबीटी के भीतर वैचारिक मतभेद का संकेत है या फिर दोनों नेताओं की भूमिका और दृष्टिकोण अलग-अलग हैं?
संजय राउत पार्टी के तेज़-तर्रार प्रवक्ता माने जाते हैं और वो अकसर BJP की आलोचना खुलकर करते हैं। उनकी चिंता पार्टी को नजरअंदाज किए जाने को लेकर है।
वहीं प्रियंका चतुर्वेदी एक राज्यसभा सांसद हैं और उनकी भूमिका नीति निर्माण और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की छवि को लेकर ज्यादा होती है।
इसलिए, यह संभव है कि दोनों की आलोचना और समर्थन पार्टी लाइन से इतर, उनकी भूमिका और राजनीतिक दृष्टिकोण के अनुसार हो।
राजनीतिक नफा-नुकसान
इस विवाद का असर शिवसेना यूबीटी की सार्वजनिक छवि पर जरूर पड़ेगा। एक ओर जहां पार्टी का एक धड़ा केंद्र की आलोचना करता दिख रहा है, वहीं दूसरा धड़ा सहयोग करता नजर आ रहा है।
इससे यह संदेश भी जा सकता है कि पार्टी अंदर से असमंजस की स्थिति में है या फिर रणनीतिक रूप से दोहरी भूमिका निभा रही है—एक विरोध की, दूसरी सहभागिता की।
निष्कर्ष
ऑपरेशन सिंदूर को लेकर शिवसेना यूबीटी के दो वरिष्ठ नेताओं की राय में फर्क भारतीय राजनीति में दलगत राजनीति और व्यक्तिगत दृष्टिकोण के टकराव को उजागर करता है।
इन बयानों से यह स्पष्ट होता है कि आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दों पर भी भारतीय राजनीति में एकता की बजाय मतभेद और रणनीतिक टकराव दिखता है, जो लंबे समय में देश की विदेश नीति और सामूहिक प्रयासों को प्रभावित कर सकता है।