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Jammu and Kashmir professor’s allegation: “सेना ने की बेरहमी से पिटाई” – राजौरी में उठे सवाल, सेना ने दिए जांच के आदेश

  • April 21, 2025
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जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले से एक संवेदनशील और चौंकाने वाली खबर सामने आई है, जहां एक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर लियाकत अली ने भारतीय सेना के जवानों पर मारपीट

Jammu and Kashmir professor’s allegation: “सेना ने की बेरहमी से पिटाई” – राजौरी में उठे सवाल, सेना ने दिए जांच के आदेश

जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले से एक संवेदनशील और चौंकाने वाली खबर सामने आई है, जहां एक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर लियाकत अली ने भारतीय सेना के जवानों पर मारपीट का गंभीर आरोप लगाया है। यह घटना सीमावर्ती गांव लाम के पास हुई, जहां प्रोफेसर का कहना है कि उन्हें बिना किसी कारण के रोका गया और बेरहमी से पीटा गया

इस मामले ने स्थानीय स्तर पर चिंता और गुस्से की लहर पैदा कर दी है, वहीं सेना ने इस आरोप को गंभीरता से लेते हुए आंतरिक जांच के आदेश जारी कर दिए हैं। इस पूरे मामले ने सेना और आम नागरिकों के बीच के संबंध, मानवाधिकारों की रक्षा, और सीमावर्ती इलाकों में नागरिकों की सुरक्षा जैसे मुद्दों को एक बार फिर चर्चा के केंद्र में ला दिया है।

कौन हैं प्रोफेसर लियाकत अली?

प्रोफेसर लियाकत अली एक शिक्षाविद् हैं और जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में एक यूनिवर्सिटी से जुड़े हुए हैं। उन्हें समाज में एक सम्मानित और शांतिप्रिय व्यक्ति माना जाता है। उनका काम क्षेत्रीय शिक्षा और युवाओं के विकास से जुड़ा रहा है।

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हाल ही में उन्होंने आरोप लगाया कि जब वे लाम गांव के पास से गुजर रहे थे, तब सेना के जवानों ने उन्हें रोका, उनकी पहचान पूछी, और फिर बिना किसी ठोस कारण के बुरी तरह पीटा। उनका कहना है कि उन्हें सिर और शरीर पर गंभीर चोटें आई हैं, जिसके लिए उन्हें मेडिकल सहायता लेनी पड़ी।

घटना की जानकारी: क्या हुआ उस दिन?

प्रोफेसर लियाकत के अनुसार, वह 17 अप्रैल 2025 को सीमावर्ती इलाके लाम में किसी निजी कार्य से गए थे। लौटते समय सेना के एक दल ने उन्हें रोका, पूछताछ की, और अचानक शारीरिक हिंसा शुरू कर दी। उनका आरोप है कि उन्होंने बार-बार अपनी पहचान बताई, लेकिन फिर भी उनके साथ अत्यधिक बल प्रयोग किया गया।

उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा:

“मैंने उन्हें बताया कि मैं एक यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हूं, लेकिन उन्होंने मेरी एक नहीं सुनी। उन्होंने मुझे जमीन पर गिरा कर पीटा, मेरे सिर पर चोट आई, और मुझे अपमानित किया गया।”

सेना के प्रवक्ता ने कहा:

“भारतीय सेना हमेशा नागरिकों के सम्मान और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध रही है। इस प्रकार की किसी भी घटना को स्वीकार नहीं किया जा सकता। जांच के आदेश दे दिए गए हैं और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित की जाएगी।”

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स्थानीय प्रतिक्रिया

घटना के बाद राजौरी जिले में स्थानीय लोगों में रोष और चिंता देखी जा रही है। कई सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने इस घटना की निंदा की और तत्काल कार्रवाई की मांग की।

स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों और बुद्धिजीवियों ने भी आवाज उठाई है कि सेना और नागरिकों के बीच विश्वास की डोर कमजोर नहीं होनी चाहिए, और ऐसी घटनाएं उस विश्वास को आघात पहुंचाती हैं।

मानवाधिकार और सुरक्षा का संतुलन

इस घटना ने एक बार फिर से यह सवाल खड़ा किया है कि सुरक्षा और मानवाधिकारों के बीच कैसे संतुलन बनाया जाए। जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में सेना की मौजूदगी जरूरी है, लेकिन साथ ही वहां के नागरिकों के अधिकारों की रक्षा भी उतनी ही अहम है।

ऐसी घटनाएं न केवल व्यक्तिगत नुकसान का कारण बनती हैं, बल्कि पूरे समुदाय में भय और असुरक्षा की भावना को जन्म देती हैं।

कानूनी प्रक्रिया और अपेक्षित कदम

इस मामले में कानूनी प्रक्रिया के तहत:

  1. प्रोफेसर की मेडिकल रिपोर्ट दर्ज की गई है।
  2. स्थानीय पुलिस ने बयान लिया है और FIR दर्ज करने की प्रक्रिया चल रही है।
  3. सेना की इंटरनल जांच टीम को आदेश दिए गए हैं।
  4. मानवाधिकार आयोग को भी सूचित किया जा सकता है, यदि पीड़ित पक्ष इसकी मांग करता है।

अगर जांच में यह पाया जाता है कि जवानों ने अपनी सीमाएं लांघी हैं, तो उन्हें कानूनी कार्रवाई और विभागीय दंड का सामना करना पड़ेगा।

सेना और समाज के रिश्ते: एक नाजुक संतुलन

भारतीय सेना को देश के नागरिकों की रक्षा और सेवा का प्रतीक माना जाता है। सेना के जवान सीमावर्ती इलाकों में दिन-रात डटे रहते हैं, ताकि आम नागरिक सुरक्षित रहें। लेकिन अगर इसी सेना पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगने लगें, तो वह पूरा तंत्र कमजोर हो जाता है।

इसलिए बेहद जरूरी है कि सेना:

  • ऐसे मामलों में पारदर्शिता बनाए रखे,
  • जवाबदेही सुनिश्चित करे,
  • और नागरिकों के साथ संवाद को बेहतर बनाए।

निष्कर्ष

प्रोफेसर लियाकत अली की आपबीती एक गंभीर मामला है, जिसे सिर्फ एक ‘घटना’ नहीं माना जा सकता। यह उन कई अनकहे और अनदेखे संघर्षों का प्रतीक है, जिनसे सीमावर्ती इलाके के लोग हर दिन जूझते हैं।

सेना द्वारा जांच के आदेश देना एक सकारात्मक पहल है, लेकिन इस जांच के निष्कर्ष और उस पर की गई कार्रवाई यह तय करेंगे कि नागरिकों का विश्वास कायम रह पाता है या नहीं।

हमें एक ऐसा तंत्र चाहिए जिसमें सुरक्षा बल और नागरिक आपस में सहयोगी बनकर रहें, न कि भय और शंका के वातावरण में। क्योंकि एक सशक्त राष्ट्र तभी बनता है, जब उसकी सेना और जनता दोनों एक-दूसरे पर भरोसा कर सकें।

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