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A doctor beat up a 70-year-old man in Chhatarpur district hospital: मानवता पर सवाल

  • April 21, 2025
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स्वास्थ्य सेवाएं किसी भी समाज की रीढ़ होती हैं, जहां डॉक्टरों को भगवान का दर्जा दिया जाता है। लेकिन जब यही ‘भगवान’ अपनी मर्यादा भूल जाएं और मरीजों

A doctor beat up a 70-year-old man in Chhatarpur district hospital: मानवता पर सवाल

स्वास्थ्य सेवाएं किसी भी समाज की रीढ़ होती हैं, जहां डॉक्टरों को भगवान का दर्जा दिया जाता है। लेकिन जब यही ‘भगवान’ अपनी मर्यादा भूल जाएं और मरीजों या उनके परिजनों के साथ दुर्व्यवहार करें, तो सवाल उठना लाज़मी है। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के सरकारी अस्पताल से आई एक खबर ने पूरे राज्य में सनसनी फैला दी है। एक 70 वर्षीय बुजुर्ग व्यक्ति को डॉक्टर द्वारा थप्पड़ मारना, लातें मारना और अस्पताल से घसीटकर बाहर निकालना न केवल अमानवीय है, बल्कि यह हमारे सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की संवेदनशीलता पर भी सवाल खड़े करता है।

घटना का विवरण

यह घटना 17 अप्रैल 2025, गुरुवार को छतरपुर जिला अस्पताल में हुई। पीड़ित बुजुर्ग, जिनका नाम जोशी (बदला हुआ नाम) बताया जा रहा है, अपनी पत्नी की मेडिकल जांच के लिए अस्पताल पहुंचे थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जोशी अस्पताल में कतार में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। काफी देर इंतजार करने के बाद जब उन्होंने डॉक्टर से मिलने की कोशिश की, तो डॉक्टर ने अचानक अपना आपा खो दिया।

पीड़ित के अनुसार, डॉक्टर ने पहले उन्हें फटकार लगाई और फिर बिना किसी पूर्व चेतावनी के लात-घूंसे मारने लगे। वहां मौजूद कुछ मरीजों ने घटना का वीडियो बना लिया, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। वीडियो में साफ दिख रहा है कि डॉक्टर बुजुर्ग को गालियां देते हुए उन्हें घसीटते हुए अस्पताल से बाहर निकाल रहा है।

Chhatarpur district hospital

बुजुर्ग की आपबीती

जोशी ने रोते हुए अपनी आपबीती मीडिया को सुनाई। उन्होंने कहा, “मैं कई घंटों से लाइन में खड़ा था। मेरी पत्नी की तबीयत खराब थी और हमें जल्दी इलाज की जरूरत थी। जब मेरी बारी आई तो डॉक्टर ने कहा कि मैंने लाइन तोड़ी है। मैंने सफाई दी लेकिन उन्होंने मेरी एक नहीं सुनी और मुझे मारा।”

बुजुर्ग की यह व्यथा न सिर्फ दिल दहला देने वाली है, बल्कि यह इस बात का प्रतीक है कि कैसे एक सामान्य नागरिक को अपने ही देश की सार्वजनिक व्यवस्था से जूझना पड़ता है।

अस्पताल प्रशासन का पक्ष

इस पूरे मामले पर अस्पताल प्रशासन का बयान भी सामने आया है। अस्पताल के अधिकारियों ने दावा किया कि बुजुर्ग व्यक्ति लाइन तोड़कर अपनी बारी से पहले अंदर घुस गए थे, जिससे डॉक्टर के साथ बहस हो गई। उन्होंने कहा कि डॉक्टर ने मरीज को लाइन में वापस भेजने की कोशिश की, लेकिन बात बिगड़ गई।

हालांकि, इस बयान से लोगों की नाराजगी और बढ़ गई। सवाल यह है कि यदि मरीज ने गलती की भी थी, तो क्या डॉक्टर को मारपीट करने का अधिकार है?

कानूनी कार्रवाई और प्रशासन की प्रतिक्रिया

घटना के बाद सोशल मीडिया पर जनता का गुस्सा फूट पड़ा। ट्विटर, फेसबुक और व्हाट्सएप पर वीडियो वायरल होने के बाद स्थानीय प्रशासन को हरकत में आना पड़ा। जिला कलेक्टर ने मामले की जांच के आदेश दिए और संबंधित डॉक्टर को फिलहाल ड्यूटी से हटा दिया गया है।

पुलिस ने भी पीड़ित की शिकायत दर्ज की है और आईपीसी की धारा 323 (मारपीट) और 504 (शब्दों या इशारों द्वारा अपमान) के तहत मामला दर्ज किया है। हालांकि, कई सामाजिक संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि डॉक्टर के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं।

मामले का सामाजिक प्रभाव

इस तरह की घटनाएं न सिर्फ मरीजों के मन में डर पैदा करती हैं, बल्कि डॉक्टर-पेशेंट के संबंधों को भी कमजोर करती हैं। भारत में पहले ही सरकारी अस्पतालों की हालत दयनीय है—अपर्याप्त स्टाफ, लंबी कतारें, और संसाधनों की कमी। ऐसे में अगर डॉक्टरों का व्यवहार भी हिंसक और अपमानजनक हो, तो आम नागरिक इलाज के लिए कहां जाए?

बुजुर्गों के साथ इस तरह का दुर्व्यवहार हमारे सामाजिक मूल्यों को भी शर्मसार करता है। एक 70 साल का व्यक्ति, जो अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा इस देश की सेवा में बिता चुका है, उसके साथ ऐसा सलूक पूरी व्यवस्था के संवेदनहीन होने की निशानी है।

डॉक्टरों की जिम्मेदारी और प्रशिक्षण

डॉक्टरों को सिर्फ मेडिकल ज्ञान नहीं, बल्कि नैतिक और सामाजिक प्रशिक्षण की भी जरूरत होती है। मेडिकल कॉलेजों में ‘कंपैशन’, ‘कम्युनिकेशन स्किल्स’ और ‘ह्यूमैनिटी’ जैसे विषयों को गंभीरता से शामिल किया जाना चाहिए। एक डॉक्टर का काम सिर्फ दवाइयां देना नहीं है, बल्कि मरीज को मानसिक रूप से सहारा देना भी है।

सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों पर काम का दबाव जरूर होता है, लेकिन यह उन्हें मरीजों के साथ दुर्व्यवहार करने का लाइसेंस नहीं देता।

क्या है समाधान?

  1. सीसीटीवी निगरानी – हर अस्पताल में सीसीटीवी कैमरों की निगरानी होनी चाहिए, जिससे इस तरह की घटनाएं रिकॉर्ड हों और जवाबदेही तय की जा सके।
  2. सेंसिटिविटी ट्रेनिंग – डॉक्टरों और स्टाफ को मानव व्यवहार और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रशिक्षण देना अनिवार्य होना चाहिए।
  3. जनता की शिकायत प्रणाली – एक प्रभावशाली और सक्रिय शिकायत निवारण तंत्र होना चाहिए, जिससे मरीज या उनके परिजन तुरंत रिपोर्ट कर सकें।
  4. डॉक्टरों की मनोवैज्ञानिक जांच – तनावग्रस्त डॉक्टरों की समय-समय पर काउंसलिंग और मानसिक स्वास्थ्य जांच होनी चाहिए।
  5. कानूनी सख्ती – ऐसे मामलों में कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि यह एक उदाहरण बने।

निष्कर्ष

छतरपुर के जिला अस्पताल में हुई यह घटना महज एक अकेली घटना नहीं है, बल्कि यह उस गहराई से जड़ जमाई समस्या का उदाहरण है, जो भारत की स्वास्थ्य प्रणाली में मौजूद है। डॉक्टरों को जहां सम्मान और सुरक्षा मिलनी चाहिए, वहीं मरीजों को भी गरिमा और सहानुभूति का हक है। समाज तभी आगे बढ़ सकता है जब हर नागरिक, चाहे वह डॉक्टर हो या मरीज, एक-दूसरे का सम्मान करे।

इस घटना ने मानवता को झकझोर कर रख दिया है। उम्मीद है कि प्रशासन न केवल इस घटना पर कार्रवाई करेगा, बल्कि भविष्य में ऐसे हादसों को रोकने के लिए ठोस कदम भी उठाएगा।

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